Tuesday, September 23, 2008

सुनिए 'हाहाकार' और 'बालिका से वधू'



सूखी रोटी खायेगा जब कृषक खेत में धरकर हल,
तब दूँगी मैं तृप्ति उसे बनकर लोटे का गंगाजल।
उसके तन का दिव्य स्वेदकण बनकर गिरती जाऊँगी,
और खेत में उन्हीं कणों से मैं मोती उपजाऊँगी।
फूलों की क्या बात? बाँस की हरियाली पर मरता हूँ।
अरी दूब, तेरे चलते, जगती का आदर करता हूँ।
इच्छा है, मैं बार-बार कवि का जीवन लेकर आऊँ,
अपनी प्रतिभा के प्रदी से जग की अमा मिटा जाऊँ।-विश्चछवि ('रेणुका' काव्य-संग्रह से)


उपर्युक्त पंक्तियाँ पढ़कर किस कवि का नाम आपके दिमाग में आता है? जी हाँ, जिसने खुद जैसे जीव की कल्पना की जीभ में भी धार होना स्वीकारा था। माना था कि कवि के केवल विचार ही बाण नहीं होते वरन जिसके स्वप्न के हाथ भी तलवार से लैश होते हैं। आज यानी २३ सितम्बर २००८ को पूरा राष्ट्र या यूँ कह लें दुनिया के हर कोने में हिन्दी प्रेमी उसी राष्ट्रकवि रामधारी दिनकर की १००वीं जयंती मना रहे हैं। आधुनिक हिन्दी काव्य राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना का शंखनाद करने वाले युग-चारण नाम से विख्यात, "दिनकर" का जन्म २३ सितम्बर १९०८ ई. को बिहार के मुंगेर ज़िले के सिमरिया घाट नामक गाँव में हुआ था. इन की शिक्षा मोकामा घाट के स्कूल तथा फिर पटना कॉलेज से हुई जहाँ से उन्होंने इतिहास विषय लेकर बी. ए. (ऑनर्स) की परीक्षा उत्तीर्ण की. एक विद्यालय के प्रधानाचार्य, सब-रजिस्ट्रार, जन-संपर्क विभाग के उप निदेशक, भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार आदि विभिन्न पदों पर रहकर उन्होंने अपनी प्रशासनिक योग्यता का परिचय दिया. साहित्य-सेवाओं के लिए उन्हें डी. लिट. की मानक उपाधि, विभिन्न संस्थाओं ने उनकी पुस्तकों पर पुरस्कार ( साहित्य अकादमी तथा ज्ञानपीठ ) और भारत सरकार ने पद्मभूषण के उपाधि प्रदान कर उन्हें समानित किया.

कभी इसी कवि ने कहा था-

प्यारे स्वदेश के हित अंगार माँगता हूँ।
चढ़ती जवानियों के शृंगार माँगता हूँ। -- 'आग की भीख' ('सामधेनी' से)


इसी सप्ताह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन अग्रयुवक शहीद भगत सिंह की भी जयंती है। क्या संयोग है कि एक ही सप्ताह में राष्ट्रकवि और राष्ट्रपुत्र का जन्मदिवस है! शायद राष्ट्रकवि ने भगत सिंह के सम्मान में और उनके जैसे वीरों में देशप्रेम की आग भरने के लिए ही कहा होगा-

यह झंडा, जिसको मुर्दे की मुट्ठी जकड़ रही है,
छिन न जाय, इस भय से अब भी कसकर पकड़ रही है,
थामो इसे, शपथ लो, बलि का कोई क्रम न रुकेगा,
चाहे जो हो जाय, मगर यह झण्डा नहीं झुकेगा।
इस झण्डे में शान चमकती है मरनेवालों की,
भीमकाय पर्वत से मुट्ठी भर लड़नेवालों की। --- 'सरहद के पार' से ('सामधेनी' से)


इस राष्ट्रकवि ने कविता को परिभाषित करते हुए कहा था-

बड़ी कविता कि जो इस भूमि को सुंदर बनाती है,
बड़ा वह ज्ञान जिससे व्यर्थ की चिन्ता नहीं होती।
बड़ा वह आदमी जो जिन्दगी भर काम करता है,
बड़ी वह रूह जो रोये बिना तन से निकलती है।---- 'स्वप्न और सत्य' ('नील कुसुम' से)



"दिनकर" के कुछ काव्य संकलन :

१ रश्मिरथी
२ कुरुक्षेत्र
३ चक्रवाल
४ रसवंती
५ नीम के पत्ते
६ संचयिता
७ आत्मा की आँखें
८ उर्वशी
९ दिनकर की सूक्तियां
१० मुक्ति - तिलक
११ सीपी और शंख
१२ दिनकर के गीत
१३ हारे को हरिनाम
१४ राष्मिलोक
१५ धुप और धुंआ
१६ कोयला और कवित्व ..... इत्यादि ..

हम रामधारी जी के साहित्य की मीमांसा करें तो छोटी मुँह बड़ी बात होगी। हमने सोचा कि आवाज़ के माध्यम से इस महाकवि को कैसे श्रद्धासुमन अर्पित करें। जिन खोजा, तिन पाइयाँ, अमिताभ मीत मिले, जो साहित्यकारों में सबसे अधिक दिनकर से प्रभावित हैं। मीत का परिवार भी साहित्य का रसज्ञ था। मीत को बचपन में इस राष्ट्रकवि का सानिध्य भी मिला। मीत का सपना ही है कि दिनकर की 'रश्मिरथी' को इस मंच से दुनिया के समक्ष 'आवाज़' के रूप में लाया जाय।

मीत ने दिनकर की दो प्रसिद्ध कविताओं 'हाहाकार' ('हुंकार' कविता-संग्रह से) और 'बालिका से वधू' ('रसवन्ती' कविता-संग्रह से) अपनी आवाज़ दी है। सुनें और राष्ट्रकवि को अपनी श्रद्धाँजलि दें।

हाहाकार


बालिका से वधू




प्रस्तुति- अमिताभ 'मीत'


कविता पृष्ठ पर पढ़ें वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश रावतानी की कलम से 'दिनकर-चंद स्मृतियाँ'


कलम आज उनकी जय बोल- शोभा महेन्द्रू की प्रस्तुति

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6 श्रोताओं का कहना है :

"Nira" का कहना है कि -

bahut sunder shabdon ki rachna hain, aor inko gaya bhi bahut acha hai.

Randhari ji ke bhare mein padhkar bahut acha laga.

Smart Indian का कहना है कि -

दिनकर जी के ऊपर इतनी सुंदर प्रस्तुति के लिए अमिताभ जी और हिंद-युग्म को बधाई. लेख और कविता पाठ दोनों ही पसन्द आए. वर्तनी में एकाध जगह मामूली सुधार की आवश्यकता है मगर कुल मिलाकर यह प्रस्तुति बहुत खूब रही. महान कवियों पर ऐसी प्रस्तुतियों का भविष्य में भी स्वागत है.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` का कहना है कि -

मीत भाई ,
दिनकर चाचाजी पर आपकी ये प्रस्तुति बेहद अच्छी रही -
आभार व बधाई
- लावण्या

Sajeev का कहना है कि -

मीत भाई बेहद सुंदर, आपका सौभाग्य है की आपको राष्टकवि का सानिध्य मिला, आपकी आवाज़ बहुत बढ़िया लगी, आगे भी यह क्रम जारी रखियेगा, राष्ट्रकवि को मेरा शत शत नमन

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

मीत जी,

आपकी आवाज़ बहुत फील के साथ आती है। कविता प्रेमियों को आपके ग़ज़ब का उपहार दिया है। मुझे तक अब 'रश्मिरथी' का इंतज़ार सा हो गया है। आपका मैं हृदय से आभारी हूँ।

शोभा का कहना है कि -

दिनकर जी की कवितायें सदा ही उर्जा प्रदान करती हैं. कविता सुनकर अच्छा लगा. युग्म की इस प्रयास के लिए बधाई.

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