शिशिर पारखी हिंद युग्म संगीत परिवार के अहम् स्तम्भ हैं. अपनी मखमली आवाज़ और बेजोड़ ग़ज़ल गायन से पिछले लगभग ९-१० महीनों से आवाज़ के श्रोताओं का दिल जीतते रहे हैं. अपनी ग़ज़लों के माध्यम से उन्होंने कई बड़े और उस्ताद शायरों के कलामों को बेहद खूबसूरत अंदाज़ में हमारे रूबरू रखा है. "एहतराम" की सफलता के बाद आजकल शिशिर अपनी दूसरी एल्बम की तैयारी में हैं. देश विदेश के विभिन्न शहरों में कार्यक्रमों में शिरकत के दौरान भी वो आवाज़ पर आना नहीं भूलते, और बीच बीच में अपनी रिकॉर्डइंग हमें भेज कर अपनी आवाज़ के बदलते रूपों से हमें अवगत भी कराते रहते हैं. ऐसी ही उनकी भेजी एक ग़ज़ल आज हम आप सब के साथ बाँट रहे हैं जिसे उन्होंने धुन और अपनी आवाज़ देकर सजाया है. आज जिस शायर को शिशिर हमारे रूबरू लेकर आये हैं वो उस्ताद शायर हैं, मिर्जा यास यगाना चंगेजी (शायर के बारे में अधिक जानकारी जल्द ही उपलब्ध होगी)
मुझे दिल की खता पर 'यास' शर्माना नहीं आता.
पराया जुर्म अपने नाम लिखवाना नहीं आता
बुरा हो पा-ए-सरकश का कि थक जाना नहीं आता
कभी गुम राह हो कर राह पर आना नहीं आता
मुझे ऐ नाखुदा आखिर किसी को मुँह दिखाना है
बहाना करके तनहा पार उतर जाना नहीं आता
मुसीबत का पहाड़ आखिर किसी दिन कट ही जायेगा,
मुझे सर मार कर तेशे से मर जाना नहीं आता
असीरों शौक़-ए-आजादी मुझे भी गुदगुदाती है
मगर चादर से बाहर पाँव फैलाना नहीं आता
दिल-ए -बेहौसला है इक ज़रा सी टीस का मेहमाँ
वो आंसू क्या पिएगा जिसे गम खाना नहीं आता
शिशिर की इस कोशिश पर अपनी राय अवश्य रखियेगा.
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6 श्रोताओं का कहना है :
असीरों शौक़-ए-आजादी मुझे भी गुदगुदाती है
मगर चादर से बाहर पाँव फैलाना नहीं आता
बहुत ही बढ़िया शेर.आवाज व धुन भि शानदार
शानदार आवाज में शानदार ग़ज़ल है .बधाई .
Waah ! waah ! Waah !
Aanand aa gaya........jitna sundar swar hai utni hi umda gazal hai....Waah!!
Sunwane ke liye bahut bahut aabhar.
बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल है.
मुझे दिल की खता पर 'यास' शर्माना नहीं आता.
पराया जुर्म अपने नाम लिखवाना नहीं आता
बड़ी हीं खूबसूरत गज़ल और उतनी हीं खूबसूरत आवाज़।
मज़ा आ गया।
-विश्व दीपक
Aap sab ko bohot bohot dhanyawaad.
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