Monday, January 25, 2010

रण में उलझे रामू संगीत के साथ समझौता कर गए....



ताज़ा सुर ताल 04/ 2010

ताज़ा सुर ताल के मंच पर मुझे देखकर आपको हैरानी ज़रूर हो रही होगी... हो भी क्यों न, जब मुझे हीं हैरानी हो रही है तो आपका हैरान होना तो लाजिमी है। बात दर-असल यह है कि सुजोय जी अभी कुछ दिनों तक कुछ ज्यादा हीं व्यस्त रहने वाले हैं.. कुछ व्यक्तिगत कारण हैं शायद... तो इसलिए सजीव जी ने यह काम मुझे सौंपा है.... अरे डरिये मत, मैं इस मंच पर बस इस हफ़्ते हीं नज़र आऊँगा, अगले हफ़्ते से सुजोय जी वापस कमान संभाल लेंगे। तो आज के इस अंक में मुझे झेलने के लिए कमर कस लीजिए...वैसे परसो तो मैं आने हीं वाला हूँ महफ़िल-ए-गज़ल की नई कड़ी के साथ, तब आप भाग नहीं पाईयेगा।

अब चूँकि सुजोय जी नहीं, इसलिए उनका वह अंदाज़ भी नहीं। आज की संगीत-समीक्षा एक सीधी-सादी समीक्षा होगी, बिना किसी लाग-लपेट के, बिना किसी वाद-विवाद के... और न हीं अपने विचार रखने के लिए सजीव जी दूरभाष (टेलीफोन...शुद्ध हिन्दी में इसलिए लिखा क्योंकि पिछली कड़ी में एक मित्र ने आंग्ल भाषा से बचने की सलाह दी थी) के सहारे हाज़िर होंगे। तो खोलते हैं पिटारी और देखते हैं कि भानूमति की इस पिटारी में आज किस चलचित्र के गानों की किस्मत बंद है..

आज से लगभग पंद्रह साल पहले एक फिल्म आई थी "रंगीला".. निर्देशक थे श्री रामगोपाल वर्मा। उस फिल्म में संगीत था ए०आर०रहमान का। संगीत के मामले में वह फिल्म मील का एक पत्थर मानी जाती है। आज भी जब कहीं से "हाय रामा ये क्या हुआ" की स्वर-लहरियाँ बहती हुई आती हैं तो दिल मचलने को बेताब हो उठता है.... ऐसा जादू था उस फिल्म के गानों का। ऐसा नहीं था कि उस फिल्म में बस गाने हीं थे, बल्कि कहानी भी अव्वल दर्जे की थी। देखकर और सुनकर लगता था कि रामगोपाल वर्मा ने फिल्म के हर हिस्से पर बराबर काम किया है। फिल्म सफल हुई हीं हुई, गाने भी मक़बूल हुए। फिर लगा कि रामू आगे भी ऐसा कुछ कर दिखाएँगे... लेकिन न जाने रामू को क्या हो गया, कहानी पर काम करना तो उन्हें याद रहा लेकिन संगीत को वो धीरे-धीरे दर-किनार करते चले गए। इन पंद्रह सालों में मुझे बस "सत्या" हीं एक ऐसी फिल्म नज़र आ रही है, जिनके गानों में भी बराबर का दम था। "विशाल" के संगीत और "गुलज़ार" साहब के गीतों ने बहुत दिनों के बाद रामू के फिल्म के गानों से निम्न दर्जे का लेबल हटाया था। बाकी फिल्मों की अगर गिनती करें तो बस "दौड़", "मस्त" और "कंपनी" के गाने हीं सुनने लायक थे... और वे भी कुछ हीं। आजकल तो लगता है कि रामू ने कसम ले रखी है कि संगीत पर कम खर्च किया जाए और इसी कारण उन्होंने संगीत को पार्श्व-संगीत में तब्दील कर दिया है।

इन दिनों रामू एक अलग तरह का प्रयोग कर रहे हैं और वह प्रयोग है एक फिल्म में पाँच-पाँच, छह-छह संगीतकारों को मौका देने का। शायद इसके पीछे उनकी यह मंशा रहती होगी कि हर संगीतकार से उसका बढिया काम लिया जाए ताकि पूरी एलबम लोगों को पसंद आए। पर दिक्कत यह है कि ऐसा हो नहीं पाता। कोशिश तो यह होती है कि अलग-अलग मसाले मिलाकर एक बढिया रेशिपी तैयार की जाए लेकिन मसालों की सही मात्रा न मिलने से रेशिपी एक खिचड़ी मात्र बनके रह जाती है। अब आज की हीं फिल्म को ले लीजिए... फिल्म का नाम है "रण"। "अमिताभ बच्चान" अभिनीत इस फिल्म में नौ संगीतकारों ने संगीत दिया है.. वैसे इन नौ में से दो संगीतकार-जोड़ी हैं तो गिनती में बस सात हीं आएँगे। तो ये सारे संगीतकार हैं: धर्मेश भट्ट, संदीप पाटिल, जयेश गाँधी, बापी-टुटुल, संजीव कोहली, इमरान-विक्रम और अमर मोहिले। फिल्म में गीत लिखे हैं वायु, सरिम मोमिन, संदीप सिंह और प्रशांत पांडे ने। इस फिल्म के ज्यादातर गाने एंथम की तरह हैं यानि कि "गान" की तरह। तो चलिए एक-एक करके हम सारे गानों का मुआयना करते हैं।

"सिक्कों की भूख"/"वंदे मातरम" इस फिल्म का टाईटल ट्रेक है। गाने की शुरूआत विभिन्न चैनलों के मुख्य समाचारों(हेड लाईन्स) से होती है.. फिर यह गाना "रण है" में तब्दील हो जाता है। गाने में शुद्ध हिन्दी के शब्दों का बढिया इस्तेमाल हुआ है और यही इस गाने की यू०एस०पी० भी है। गीतकार के रूप में वायु सफल हुए हैं। इस गाने को संगीत से सजाया है धर्मराज भट्ट और संदीप पाटिल ने और आवाज़ें हैं वर्दन सिंह, अदिति पौल और शादाब फरीदी की। गाने का "वंदे मातरम" नाम बस इसलिए दिया जाना कि इसके इंटरल्युड में "वंदे मातरम" का आलाप लिया गया है, ज्यादा जमता नहीं। वैसे क्या आपको याद है कि रण का पहला प्रोमो "जन गण मन रण है" गाने के साथ रीलिज हुआ था। यह अलग बात है कि वह गाना विवाद में आने के कारण फिल्म से हटा लिया गया लेकिन मेरे अनुसार आज की स्थिति पर वही गाना ज्यादा सही बैठता है। आप अगर सुनना चाहें तो यहाँ जाएँ। आखिर हमें भी तो यह जानने का हक़ है कि आज के हालात में हमारा राष्ट्रगान सही मायने में क्या बनकर रह गया है। लेकिन नहीं...सरकार हमें यह भी अधिकार नहीं देना चाहती और इसीलिए हार मानकर रामू को "जन गण मन" की बजाय "वंदे मातरम" का रूपांतरण करना पड़ा। रामू तो अब यही कहेंगे कि "अधिकार हरेक हम खो बैठे, अब रूपांतरण भी रण है.."।



इस फिल्म का अगला गाना है "रिमोट को बाहर फेंक"। "जाईयेगा नहीं मेरा मतलब दूसरे चैनल पर" .. इस पंक्ति की इतनी बार पुनरावृत्ति होती है कि आप परेशान होकर अगले गाने की ओर बढ जाते हैं। यह गाना पूरी तरह से हेडलाईन्स से बनाया गया है... अगर आपको हेडलाईन्स में रूचि है तो आप सुन सकते हैं..मुझे नहीं.. इसलिए मैं आगे बढता हूँ। सुखविंदर की आवाज़ में बापी-टुटुल के संगीत से सजा और सरिम मोमिन का लिखा अगला गाना है "काँच के जैसे"। इस गाने में सुखविंदर की आवाज़ के रेंज का भरपूर इस्तेमाल किया गया है। बोल अच्छे हैं लेकिन संगीत उतना जोरदार नहीं.. फिर भी यह गाना सुना जाने लायक तो जरूर है। वैसे उम्मीद की जा सकती है कि दृश्यों के साथ इस गाने का असर ज्यादा होगा.. क्योंकि इस गाने में नायक का दर्द उभरकर आता है और दर्द जताने में अमिताभ बच्चन का कोई सानी नहीं।



अगले गाने में संजीव कोहली ने "रण है" को एक अलग हीं रूप दिया है। शब्द आसान हो गए हैं और उनमें उर्दू का पुट डाला गया है। फिर भी "रण है" कहने का अंदाज लगभग वही है जो "सिक्कों की भूख" में था। यह गाना भी गीतकार "सरिम मोमिन" के नाम जाता है। संगीतकार के पास करने को इसमें कुछ खास नहीं है।



"गली-गली में शोर है" गाना मेरा पसंदीदा है, लेकिन यह गाना हर जगह सुना नहीं जा सकता। कारण? कारण है इस गाने में गालियों का इस्तेमाल। गालियों को इस तरह से "बीप" किया गया है कि आप आसानी से सही शब्द भांप लेंगे... शायद छुपाने की यह एक कला है... कहते हैं ना साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। सुनने वाला बड़े हीं आराम से गालियों को पकड़ सकता है। बस डर इस बात का है कि फिल्म रीलिज होने पर यह गाना रामू के लिए गले का घेघ न बन जाए, क्योंकि इस तरह का प्रयोग आज से पहले किसी ने नहीं किया.. किसी मेनस्ट्रीम फिल्म में खुलेआम गालियाँ सुनाना। वैसे अगर कोई मुझसे पूछे तो मुझे यह गाना बस इन गालियों के कारण हीं पसंद है। हो सकता है कि इस बात पर आप मुझसे खफ़ा हो जाएँ या फिर आप मुझे एक बुरा इंसान मानने लगें लेकिन सच तो सच है। इस गाने को लिखा है "संदीप सिंह" ने, संगीत से सजाया है "इमरान-विक्रम" ने और आवाज़ें हैं "जोजो" और "अर्ल डिसूजा" की। खैर गलियों वाला ये गाना तो हम नहीं सुना रहे, सुनिए "जाईयेगा नहीं..."



इस फिल्म के अगले दो गाने हैं "बेशर्म" और "मेरा भारत महान"। "बेशर्म" को सुनकर "कदम-कदम बढाए जा" की याद आती है। गाने के माध्यम से जनता को जगाने की कोशिश की जा रही है.. इन बासठ सालों में जनता के सीने पर जो घाव चस्पां हुए हैं, यह गाना उन घावों को कुरेदने का काम करता है ताकि लोगों को दर्द का एहसास हो... वे अब नहीं जगेंगे तो कब जगेंगे, तब जब घाव नासूर बन जाएगा। "बेशर्म ओ बेहया तू ज़िंदा लाश बन गया"- प्रशांत पांडे के शब्द कारगर हैं, बस धार थोड़ी और तेज होती तो क्या बात थी। संगीतकार ने ज्यादा मेहनत नहीं की है और इसीलिए गायक के पास करने को कुछ खास नहीं है। "मेरा भारत महान" एक व्यंग्य के लहजे में लिखा गया है। एक पूरानी कहावत है या शायद नाना पाटेकर का संवाद है कि "सौ में अस्सी/पंचानवे बेईमान, फिर भी मेरा देश महान", यह गाने बस इसी पंक्ति के इर्द-गिर्द बुना गया है। "कुणाल गांजावाला" बहुत दिनों के बाद सुनाई दिये हैं... सरिम मोमिन के शब्दों को अमर मोहिले ने संगीतबद्ध किया है। गाना एक बार सुना जा सकता है... पसंद आ जाए तो बार-बार सुनिए, लेकिन इसकी कम हीं संभावना है।



संगीतकारों ने मेहनत तो काफी की है, लेकिन उनकी तुलना में बाजी मारी है गीतकारों ने। एलबम सुनने के बाद आपको बस बोल हीं याद रहेंगे। वैसे बोल भी याद रह जाएँ तो गनीमत है क्योंकि एक या दो गानों को छोड़कर बाकी के बोलों में भी कुछ खास दम नहीं है।

समीक्षा - विश्व दीपक तनहा

रण के संगीत को आवाज़ रेटिंग **१/२
जैसा कि वी डी ने बताया कि रण के संगीत में कुछ खास ऐसा नहीं है जो सुनने वालों को भाये, चूँकि फिल्म एक तीव्र गति की हार्ड कोर फिल्म होनी चाहिए संगीत को पार्श्व की तरह ही इस्तेमाल किया जायेगा, फिल्म की थीम के साथ ये गीत न्याय करते होंगें, जिन्हें परदे पर सही देखा सुना जा सकता है, पर एक ऑडियो के रूप में इसे सुनना बहुत अच्छा अनुभव नहीं हो सकता...शब्दों में मामले में गीतकारों ने मेहनत की है, पर हर गीत में शब्द और उपदेश कुछ जरुरत से अधिक हो गए हैं...बहरहाल एल्बम को ढाई तारों से अधिक रेटिंग नहीं दी जा सकती

अब पेश है आज के तीन सवाल-

TST ट्रिविया # १०-एक फिल्म जिसमें मात्र ३ किरदार थे, रामू ने सुशांत सिंह को "इंस्पेक्टर कुरैशी" का किरदार पहनाया था, इसी नाम का एक और किरदार उसके बाद की एक फिल्म में रामू ने फिर रचा, कौन सी थी वो फिल्म और किसने निभाया था उस किरदार को.

TST ट्रिविया # ११-इन्टरनेट मूवी डाटाबेस में शीर्ष ५० क्राईम/एक्शन फिल्म सूची में रामू कि वो कौन सी फिल्म है जो भारतीय फिल्मों में सबसे अधिक रेंक लेकर विराजमान है.

TST ट्रिविया # १२-हॉलीवुड की फिल्म "प्रीडेटर" से प्रेरित रामू की वो कौन सी फिल्म है, जिसके प्रचार प्रसार ने फिल्म से अधिक ख्याति पायी


TST ट्रिविया में अब तक -
अभी भी हैं सीमा जी सबसे आगे....मुबारक हो..मोहतरमा...

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