'ओल्ड इज़ गोल्ड' शनिवार विशेष की सातवीं कड़ी में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है, और आप सभी को एक बार फिर से ईद-उल-फ़ित्र की हार्दिक मुबारक़बाद। दोस्तों, कल गणेश चतुर्थी का पावन दिन है, जो महाराष्ट्र और मुंबई में दस दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव का पहला दिन भी होता है। बड़े ही धूम धाम से यह त्योहार पश्चिम भारत में मनाया जाता है। मुझे भी दो बार पुणे में इस त्योहार को देखने और मनाने का अवसर मिला था जब मेरी पोस्टिंग् वहाँ पर थी। इस बार के 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें 'के लिए हमने जिस ईमेल को चुना है उसे लिखा है पुणे के श्री योगेश पाटिल ने। आपको याद होगा कि योगेश जी के अनुरोध पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के 'पसंद अपनी अपनी' शृंखला में हमने "तस्वीर-ए-मोहब्बत थी जिसमें" गीत सुनवाया था। ये वोही योगेश पाटिल हैं जिन्होंने गणेश उत्सव से जुड़ी अपने बचपन का एक संस्मरण हमें लिख भेजा है। उनका ईमेल अंग्रेज़ी में आया है, जिसका हिंदी अनुवाद कुछ इस तरह का बनता है....
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नमस्ते!
मैं योगेश पाटिल पुणे में रहता हूँ। आशा है आप ने मुझे याद रखा है। इससे पहले भी मैंने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में अपनी पसंद का एक गीत सुना था। आज मैं यह ईमेल 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' के लिए भेज रहा हूँ।
यह संस्मरण ८० के दशक का है जब मैं बहुत छोटा था। यह भी पुणे की ही बात है। गणपति विसर्जन का दिन था। मैं और मेरा बड़ा भाई विसर्जन समारोह देखने गए थे। निकलते वक़्त मम्मी ने मेरे भाई को सख़्त निर्देश दिया कि वो हर पल मेरा हाथ पकड़े रखेगा क्योंकि भीड़ ही इतनी ज़बरद्स्त हुआ करती थी। लेकिन एक जगह जाकर भीड़ इतनी ज़्यादा अचानक बढ़ गई और अफ़रा-तफ़री सी मच गई और मेरा हाथ मेरे भाई के हाथ से छूट गया। और हम दोनों एक दूसरे से अलग हो गए। लाउडस्पीकर की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि ना मेरी आवाज़ उस तक पहुँच सकती थी ना उसकी आवाज़ मुझ तक। मैं डर गया और समझ नहीं आ रहा था कि किस तरफ़ जाऊँ। मैं रोने लग पड़ा लेकिन उस भीड़ में किसे सुनाई देने वाला था! भीड़ में धक्के खाते हुए इधर से उधर, यहाँ से वहाँ होने लगा। मेरी तो जैसे जान निकली जा रही थी। मैं यहाँ वहाँ भटकता हुआ अपने भाई को ढूँढ़ता हुआ चलता चला जा रहा था। करीब दो घंटे इस तरह से भटकने के बाद मेरी जान में जान आई यह देख कर कि मैं अपने घर के पास ही आ गया हूँ। और मैं डरते डरते घर के अंदर प्रवेश किया। अंदर जाकर देखा कि सब परेशन बैठे हैं। मेरा भाई जो अभी अभी घर पहुँचा था एक कोने में काला मुख किए खड़ा था। यह भाँप कर अब मेरे गाल पर भी एक तमाचा पड़ने वाला है, मैं रोने लग पड़ा और इसे हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर दिया तमाचे से बचने के लिए। आज इतने साल गुज़र चुके हैं, लेकिन यह घटना जैसे मेरे दिल पर एक अमिट छाप की तरह बन गई है।
क्योंकि गणपति उत्सब शुरु होने ही वाला है, तो आप मेरे इस संसमरण के साथ फ़िल्म 'इलाका' का "देवा ओ देवा गली गली में तेरे नाम का है शोर", यह गीत सुनवा दीजिएगा।
आभार सहित,
योगेश पाटिल
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हाँ, तो योगेश जी, वाक़ई बड़ा ही डरावना अनुभव रहा होगा। यह तो बप्पा का ही चमत्कार और आशीर्वाद था कि उन्होंने आपको सही सलामत घर पहूँचा दिया। लेकिन यकीन मानिए कि आप को वापस घर लौटा देख आपके माता पिता को इतनी ख़ुशी हुई होगी कि आप पर वैसे भी तमाचे नहीं पड़ते। :-) ख़ैर, आपने बिलकुल सटीक समय पर यह ईमेल हमें भेजा है। कल गणेश चतुर्थी है, आइए आपके अनुरोध पर गणपति बप्पा की वंदना करते हुए आशा भोसले, किशोर कुमार और साथियों का गाया फ़िल्म 'इलाका' का यह गीत सुनें जो फ़िल्माया गया है माधुरी दीक्षित और मिथुन चक्रबर्ती पर।
गीत - देवा ओ देवा गली गली में (इलाका - आशा व किशोर)
'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें' 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का एक ऐसा साप्ताहिक स्तंभ है जिसमें हम आप ही के ईमेल शामिल करते हैं जिनमें आप अपने किसी याद या संस्मरण से हमारा परिचय करवाते हैं। आप सभी से ग़ुज़ारिश है कि युंही ईमेल भेजते रहिए। जिन दोस्तों के ईमेल शामिल हो चुके हैं वो दोबारा ईमेल भेज सकते हैं, लेकिन उन दोस्तों से, जिन्होंने अभी तक हमें एक भी ईमेल नहीं किया है, उनसे तो ख़ास अनुरोध करते हैं कि जल्द से जल्द इस स्तंभ का हिस्सा बनें और अपनी रंग बिरंगी यादों के ज़रिए इस स्तंभ को और भी ज़्यादा विविध व रंगीन बनाने में हमारा सहयोग करें। और कुछ नहीं तो अपने पसंद के गानें ही लिख भेजिए ना! इसी उम्मीद के साथ कि oig@hindyugm.com पर आपने ईमेल का ताँता लग जाएगा, आज हम विदा ले रहे हैं, कल से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर एक बेहद ख़ास शृंखला शुरु होने जा रही है। तो पधारना ना भूलिएगा शाम ६:३० बजे। तब तक के लिए हमें दीजिए इजाज़त, लेकिन आप बने रहिए 'आवाज़' के साथ, और आप सभी को एक बार फिर से गणेश चतुर्थी और गणपति उत्सव की हार्दिक शुभकमनाएँ, नमस्कार!
प्रस्तुति: सुजॊय
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श्रोता का कहना है :
SABKO GANEHS CHATURTHI KII SHUBHKAAMNAYE
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