Tuesday, September 21, 2010

खासी तिंग्या का खास अंदाज़ लिए तन्हा राहों में कुछ ढूँढने निकले हैं गुमशुदा बिक्रम घोष और राकेश तिवारी



ताज़ा सुर ताल ३६/२०१०


विश्व दीपक - 'ताज़ा सुर ताल' में आप सभी का फिर एक बार बहुत बहुत स्वागत है! पिछले हफ़्ते हमने एक ऒफ़बीट फ़िल्म 'माधोलाल कीप वाकिंग्‍' के गानें सुने थे, और आज भी हम एक ऒफ़बीट फ़िल्म लेकर हाज़िर हुए हैं। इस फ़िल्म के भी प्रोमो टीवी पर दिखाई नहीं दिए और कहीं से इसकी चर्चा सुनाई नहीं दी। यह फ़िल्म है 'गुमशुदा'।

सुजॊय - अपने शीर्षक की तरह ही यह फ़िल्म गुमशुदा-सी ही लगती है। सुना है कि यह एक मर्डर मिस्ट्री की कहानी पर बनी फ़िल्म है जिसका निर्माण किया है सुधीर डी. आहुजा ने और निर्देशक हैं अशोक विश्वनाथन। फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं रजत कपूर, विक्टर बनर्जी, सिमोन सिंह, राज ज़ुत्शी और प्रियांशु चटर्जी। फ़िल्म में संगीत है बिक्रम घोष का और गानें लिखे हैं राकेश त्रिपाठी ने।

विश्व दीपक - सुजॊय जी, ये बिक्रम घोष कहीं वही बिक्रम घोष तो नहीं हैं जो एक नामचीन तबला वादक हैं और जिनका फ़्युज़न संगीत में भी दबदबा रहा है?

सुजॊय - जी हाँ, आपने बिल्कुल ठीक पहचाना, और आपको यह भी बता दूँ कि बिक्रम के पिता हैं पंडित शंकर घोष जो एक जानेमाने तबला वादक रहे हैं जिन्होंने उस्ताद अली अक़बर ख़ान और पंडित रविशंकर जैसे मैस्ट्रोस का संगत किया है।

विश्व दीपक - जहाँ तक फ़िल्मी करीयर का सवाल है, बिक्रम घोष का हिंदी फ़िल्मों में यह पदार्पण है, जबकि बांगला फ़िल्मों में वो संगीत दे चुके हैं।

सुजॊय - हाँ, उनके संगीत से सजी कुछ बांगला फ़िल्में हैं इति श्रीकांत (२००४), देवकी (२००५), नील राजार देशे (२००८), और पियालीर पासवर्ड (२००९)। साल २००९ में एक फ़िल्म बनी थी अंग्रेज़ी, हिंदी और गुजराती में 'लिटल ज़िज़ू' के नाम से जिसमें बिक्रम घोष ने गिउलियानो मोदारेली के साथ मिलकर संगीत दिया था। और आइए अब बातों को देते हैं विराम और सुनते हैं 'गुमशुदा' का पहला गीत सुनिधि चौहान की आवाज़ में।

गीत - तन्हा राहें


विश्व दीपक - "तन्हा राहें मेरी उलझी सी क्यों लगे, एक नया अरमाँ फिर भी दिल में जगे, ढूंढे नज़रें मेरी अंजानी मंज़िलें, साया भी क्यों मेरा अब फ़साना लगे"; क्योंकि यह एक मर्डर मिस्ट्री फ़िल्म है, इसलिए इस फ़िल्म के गीतों से हमें उसी तरह की उम्मीदें रखनी चाहिए। और इस पहले गीत में भी एक क़िस्म का सस्पेन्स छुपा सा लगता है, जैसे कोई राज़, कोई डर छुपा हुआ हो। सुनिधि की आवाज़ में यह गीत सुन कर फ़िल्म 'दीवानगी' के शीर्षक गीत की याद आ गई। "सपनों से कह दो अब मुझे ना ठगे", गीतकार राकेश तिवारी के इन बोलों में नई बात नज़र आई है।

सुजॊय - और गीत के संगीत संयोजन से भी सस्पेन्स टपक रहा है। साज़ों के इस्तेमाल में भी विविधता अपनाई गई है। परक्युशन से लेकर लातिनो कार्निवल म्युज़िक के नमूने सुने जा सकते हैं इस गीत में। गायकी के बारे में यही कह सकते हैं कि यह स्टाइल सुनिधि का मनचाहा स्टाइल है और इसलिए शायद इस गीत को गाना उनके लिए बायें हाथ का खेल रहा होगा। इस तरह के गानें उन्होंने शुरु से ही बहुत से गाए हैं, इसलिए गायकी के लिहाज़ से कोई नई बात नहीं है इसमें।

विश्व दीपक - आइए अब बढ़ते हैं दूसरे गीत की ओर, इस बार आवाज़ है सोनू निगम की। जब फ़िल्म का शीर्षक ही है 'गुमशुदा' तो इस फ़िल्म के किसी गीत में अगर ढूंढने की बात हो तो इसमें हैरत वाली कोई बात नहीं, है न? इस गीत के बोल हैं "ढूंढो, गली गली डगर डगर नगर नगर शहर शहर अरे ढूंढो, हर सफ़र दर बदर आठों पहर शाम-ओ-सहर अरे ढूंढो"।

गीत - ढूंढो


सुजॊय - इस गीत में अगर ढूंढ़ने जाएँ तो बिक्रम घोष का ज़बरदस्त ऒरकेस्ट्रेशन मिलता है। वैसे गीत का जो बेसिक ट्युन है वह सीधा सादा सा है, एल्किन अरेंजमेण्ट में हेवी ऒरकेस्ट्रेशन का प्रयोग हुआ है। भारतीय और विदेशी साज़ों का अच्छा फ़्युज़न हुआ है। कुछ कुछ क़व्वली शैली का भी सहारा लिया गया है। कहीं कहीं हार्ड रॊक शैली का भी असर मिलता है।

विश्व दीपक - गीतकार राकेश तिवारी की बात करें तो वो एक कोलकाता बेस्ड स्क्रीनप्ले राइटर, संवाद लेखक, गीतकार और निर्देशक हैं। १४ नवंबर १९७० को कोलकाता में जन्में राकेश ने मुंबई मायानगरी की तरफ़ रूख किया साल २००० में। निम्बस टेलीविज़न के साथ उन्होंने काम करना शुरु किया और एशियन स्काइशॊप के लिए बहुत से विज्ञापन लिखे। लेकिन २००२ में वो कोलकाता वापस आ गए और यहीं पर काम करना शुरु कर दिया। राकेश तिवारी करीब १० टीवी धारावाहिक लिख चुके हैं और फ़िल्मों के लिए १६० से उपर गीत लिख चुके हैं। उन्होंने एक बंगला फ़िल्म 'बोनोभूमि' में एक हिंदी गीत भी लिखा है जो फ़िल्म का एकमात्र ऒरिजिनल गीत है।

सुजॊय - 'गुमशुदा' फ़िल्म में कुल ६ गीत हैं और हर गीत एक एकल गीत है और हर गीत में अलग आवाज़ है। सुनिधि चौहान और सोनू निगम के बाद अब इस गीत में आवाज़ जून बनर्जी की है।

गीत - किसने पहचाना


विश्व दीपक - स्पैनिश प्रभाव का एक और उदाहरण था यह गीत, जिसमें अकोस्टिक स्पैनिश लूप पूरे गीत में छाया हुआ है। "किसने पहचाना खेल मन का अंजाना", इस गीत में भी वही सस्पेन्स, वही अद्‍भुत रस! अब तो भई एक जैसा लगने लगा है। "तन्हा राहें" गीत का ही एक्स्टेंशन लगा यह गीत। बस ऒरकेस्ट्र्शन में थोड़ा हेर फेर है।

सुजॊय - इस गीत की गायिका जून बनर्जी एक उभरती गायिका हैं। बांगला फ़िल्मों में उन्होंने कई गीत गाए हैं। हिंदी फ़िल्मों की बात करें तो जून ने २००९ में 'रात गई बात गई' में अनुराग शर्मा के साथ एक युगल गीत गाया था, उससे पहले 'गांधी माइ फ़ादर' में भी उनकी आवाज़ सुनाई दी थी। २००७ में शंकर अहसान लॊय के संगीत में जून बनर्जी ने शंकर महादेवन और विशाल दादलानी के साथ मिलकर 'हाइ स्कूल म्युज़िकल-२' में "उड़ चले" गीत गाया था।

विश्व दीपक - और अब चौथा गीत और चौथी आवाज़, रोनिता डे की, बोल "चुप था पानी चुप थी लहर, एक हवा का झोंका, उठ गया है भँवर"।

गीत - चुप था पानी


सुजॊय - इस गीत में भी वही सपेन्स और डर छुपा है, "गहरा घना दलदल, धंस गया है कमल, कौन किसको रोके, कहदे रुक जा संभल, आनेवाले कल में बीता कल क्यों मिले, ख़्वाबों के रंगों में क्यों ख्वाहिशें घुले"। इस गीत में कोरस का गाया "उंगली पकड़ के मीर मौला रस्ता बता दे मेरे मौला" सुनने में अच्छा लगता है।

विश्व दीपक - अगर आपको इससे पहले के दो गीत ज़्यादा नहीं भाये हों तो इस गीत में बिक्रम घोष ने पूरी कोशिश की है कि उन गीतों की ख़ामियों को पूरा कर दे। अच्छा कॊम्पोज़िशन है और रोनिता डे ने अच्छा निभाया है इसको। और इस गीत में भी परक्युशन का इस्तेमाल सुनाई देता है।

सुजॊय - अब एक रॊक नंबर रुपंकर की आवाज़ में। जी हाँ, वही रुपंकर जो आज बंगाल के एक जाने माने और कामयाब गायक हैं। इनका पूरा नाम है रुपंकर बागची। बंगाल में इनके गाए बांगला गीतों के हज़ारों लाखों चाहने वाले हैं। उनके गाए ग़ैर-फ़िल्मी ऐल्बम्स, फ़िल्मी गीत और विज्ञापन जिंगल्स घर घर गूंज रहे हैं बंगाल में। उन्हें कई पुरस्कारों से भी नवाज़ा जा चुका है। टीवी धारावाहिक 'शोनार होरिन' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ टाइटल गीत का 'टेलीसम्मान' ख़िताब मिला, तो फ़िल्म 'अंदरमहल' के लिए सर्बश्रेष्ठ गायक का पुरस्कार मिला मशहूर मीडिया ग्रूप 'आनंद बज़ार पत्रिका' से।उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का भी पुरस्कार मिल चुका है और कई बार सर्वश्रेष्ठ ऐल्बम के पुरस्कार से भी नवाज़े जा चुके हैं। उनके गाये रोमांटिक गानें तो जैसे आज के बांगला युवाओं के दिलों की धड़कन बन गये है।

विश्व दीपक - आज के दौर के रॊक शैली के गायकों में सूरज जगन का नाम इन दिनों सब से उपर चल रहा है। और इस गीत में भी रुपंकर का अंदाज़ सूरज जगन से मिलता जुलता सुनाई दे रहा है। लीजिए आप भी सुनिए।

गीत - इसमे है चमक इसमें है नशा


विश्व दीपक - और अब फ़िल्म का छठा और अंतिम गीत, जिसे गाया है दोहर ने। यह शायद इस ऐल्बम का सब से अनोखा गीत है क्योंकि इसके बोल हिंदी के नहीं बल्कि उत्तरी-पूर्वी भारत के किसी राज्य का है। गीत के बोल हैं "खासी तिंग्या"। भले ही गीत के बोल समझ में ना आते हों लेकिन इस लोक धुन में वही पहाड़ों वाला आकर्षण है जो अपनी तरह खींचता है और इस गीत को सुनते हुए जैसे हम उत्तर-पूर्व में पहुँच जाते हैं।

सुजॊय - वाक़ई इस तरह का संगीत किसी हिंदी फ़िल्म में पहले कभी सुनने को नहीं मिला है। क्योंकि मैं ख़ुद उत्तरपूर्वी भारत में एक लम्बे अरसे तक रह चुका हूँ, शायद इसीलिए यह भाषा बहुत ही जानी-पहचानी-सी लग रही है। लेकिन बात ऐसी है कि उत्तरपूर्व भारत में इतनी सारी जनजातियाँ हैं और सबकी अलग अलग भाषाएँ हैं कि किसी एक भाषा को अलग से पहचान पाना आसान नहीं। मुझे जितना लग रहा है कि यह खासी भाषा है जो मेघालय की एक जनजाति है। लेकिन मैं पक्का कह नहीं सकता। गीत कुछ इस तरह का है "ahai klimnoe khasi tingya, ahai klimnoe khasi tingya, kilma savay kilm thungya, kilma savay kilm thungya"। आइए सुनते हैं, बड़ा मीठा सा गाना है, और क्यों ना हो, लोक गीत होते ही मीठे हैं चाहे किसी भी अंचल के क्यों ना हों!

गीत - खासी तिंग्या


सुजॊय - 'गुमशुदा' फ़िल्म के गानों के बारे में यही कहूँगा कि सभी गानें सिचुएशनल है, फ़िल्म को देखते हुए शायद इनका असर पता चलेगा। सिर्फ़ अगर बोल और संगीत की बात है तो "चुप था पानी" और "खासी तिंग्या" मुझे अच्छे लगे। मेरी तरफ़ से ३ की रेटिंग।

विश्व दीपक - सुजॊय जी, इस एलबम पर कोई भी टिप्पणी करने से पहले मैं आपको धन्यवाद देना चाहूँगा क्योंकि आपकी बदौलत हीं हम इन ऑफबीट फिल्मों के गीतों से रूबरू हो पा रहे हैं, नहीं तो आज के समय में कोई भी समीक्षक इन फिल्मों पर अपनी नज़र या अपनी कलम नहीं दौड़ाता या फिर अगर दौड़ाता भी है तो इन फिल्मों (और इनके गीतों) को सिरे से निरस्थ कर देता है। हम बस यही मानकर चलते हैं कि अच्छा संगीत तो बड़े संगीतकारों की झोली से हीं निकल सकता है और इस गलत सोच के कारण बिक्रम घोष जैसे संगीतकार नेपथ्य में हीं रह जाते हैं। मैं आवाज़ के सारे श्रोताओं से यह दरख्वास्त करता हूँ कि अगर आप "गुमशुदा" के गाने सुनने के मूड में नहीं हैं(थे), फिर भी आज के "ताज़ा सुर ताल" में शामिल किए गए इन गानों को एक मर्तबा जरूर सुन लें, उसके बाद निर्णय पूर्णत: आपका होगा कि आगे इन गानों को सुनना है भी या नहीं। जैसा कि सुजॉय जी ने कहा कि संगीतकार ने हिन्दी फिल्मों में अच्छा पदार्पण करने की पूरी कोशिश की है, अब भले हीं इस कोशिश में थोड़ा दुहराव आ गया है, लेकिन इस कोशिश को सराहा जाना चाहिए। सुजॉय जी की रेटिंग को सम्मान देते हुए मैं आज की समीक्षा के समापन की घोषणा करता हूँ। अगली बार एक बड़ा हीं खास एलबम होगा, मेरे सबसे पसंदीदा संगीतकार का... इंतज़ार कीजिएगा।

आवाज़ रेटिंग्स: गुमशुदा: ***

और अब आज के ३ सवाल

TST ट्रिविया # १०६- फ़िल्म 'लिटल ज़िज़ू' को राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों की किस श्रेणी के तहत पुरस्कृत किया गया था?

TST ट्रिविया # १०७- आज जब मेघालय के खासी लोक संगीत का ज़िक चला है तो बताइए कि वह कौन सी लोरी थी अनिल बिस्वास की स्वरबद्ध की हुई जिसमें उन्होंने खासी लोक धुन का इस्तमाल किया था?

TST ट्रिविया # १०८- निर्देशक अशोक विश्वनाथन को कितनी बार नैशनल अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है?


TST ट्रिविया में अब तक -
पिछले हफ़्ते के सवालों के जवाब:

१. फ़िल्म - सूरजमुखी, गायिका - अर्पिता साहा
२. अल्ताफ़ राजा
३. फ़िल्म 'हिना' की क़व्वाली "देर ना हो जाए कहीं"

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Sajeev का कहना है कि -

गीत कार ने जैसे अंग्रेजी में लिखे कुछ पंक्तियों को ट्रांसलेट कर दिया हो, संगीतकार की कोशिश भी कोई बहुत सराहनीय नहीं....मेरी नज़र में ३ की रेटिंग कुछ अधिक है इस अल्बम को :)

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