हम हरबार किसी एक या किन्ही दो फिल्मों के गानों की समीक्षा करते थे और इस कारण से कई सारी फिल्में हमसे छूटती चली गईं। अब चूँकि अगले मंगलवार से हम दो हफ़्तों के लिए अपने "ताजा सुर ताल" का रंग कुछ अलग-सा रखने वाले हैं, इसलिए आज हीं हमें बची हुई फिल्मों को निपटाना होगा। हमने निर्णय लिया है कि हम चार-फिल्मों के चुनिंदा एक या दो गाने आपको सुनवाएँगे और उस फिल्म के गाने मिला-जुलाकर कैसे बन पड़े हैं (और किन लोगों ने बनाया है), वह आपको बताएँगे। तो चलिए इस बदले हुए हुलिये में आज की समीक्षा की शुरूआत करते हैं।
आज की पहली फिल्म है "ब्रेक के बाद"। इस फिल्म में संगीत दिया है विशाल-शेखर ने और बोल लिखे हैं प्रसून जोशी ने। बहुत दिनों के बाद प्रसून जोशी की वापसी हुई है हिन्दी फिल्मों में... और मैं यही कहूँगा कि अपने बोल से वे इस बार भी निराश नहीं करते। अलग तरह के शब्द लिखने में इनकी महारत है और कुछ गानों में इसकी झलक भी नज़र आती है, हाँ लेकिन वह कमाल जो उन्होंने "लंदन ड्रीम्स" में किया था, उसकी थोड़ी कमी दिखी। बस एक गाना "धूप के मकान-सा" में उनका सिक्का पूरी तरह से जमा है। वैसे गाने में संगीत और गायकी की भी उतनी हीं ज़रूरत होती है और यह तो सभी जानते हैं कि विशाल-शेखर किस तरह का संगीत रचते हैं। यहाँ भी उनकी वही छाप नज़र आती है। जो उनका संगीत पसंद करते हैं (जैसे कि मैं करता हूँ), उन्हें इस फिल्म के गाने भी पसंद आएँगे, ऐसा मेरा यकीन है। चलिए तो आपको इस फिल्म से दो गाने सुनवाते हैं। पहला गाना है एलिस्सा मेन्डोंसा (शंकर-एहसान-लॉय की तिकड़ी में से लॉय की सुपुत्री) एवं विशाल दादलानी की आवाज़ों में "अधूरे" , वहीं दूसरा गाना है नीरज श्रीधर, विशाल, शेखर एवं रिस डिसूजा की आवाज़ों में "अजब लहर"।
अधूरे
अजब लहर
"ब्रेक के बाद" के बाद आईये सुनते हैं फिल्म "तेरा क्या होगा जॉनी" के गानों को। यह फिल्म आने के पहले हीं सूर्खियों में आ चुकी है.. क्योंकि यह कई महिने पहले हीं "लीक" हो गई थी.. कईयों ने इसे "पाईरेटेड सीडीज" पर देख भी लिया है (मैंने नहीं :) )। फिल्म के नाम और इसके मुख्य कलाकार (नील नीतिन मुकेश) को देखा जाए तो यह "जॉनी गद्दार" का सिक़्वेल लगती है, लेकिन चूँकि इन दोनों के निर्देशक अलग-अलग हैं (जॊनी गद्दार: श्रीराम राघवन, तेरा क्या होगा जॉनी: सुधीर मिश्रा) तो यह माना जा सकता है कि दोनों की कहानियों में कोई समानता नहीं होगी। इस फिल्म में संगीत है पंकज अवस्थी एवं अली अज़मत का और बोल लिखे हैं नीलेश मिश्रा ,जुनैद वसी, अली अज़मत , सुरेंद्र चतुर्वेदी, सबीर ज़ाफ़र एवं संदीप नाथ ने। अभी हम आपको जो दो गाने सुनाने जा रहे हैं, उनमें पंकज अवस्थी की "लीक से हटकर" आवाज़ है, जो गीतकारों की कविताओं में चार चाँद लगा देती है। पहला गाना है "सुरेंद्र चतुर्वेदी" का लिखा "शब को रोज़" एवं दूसरा है "नीलेश मिश्रा" का लिखा "लहरों ने कहा"। ये रहे वो दो गाने:
शब को रोज़
लहरों ने कहा
अगली फिल्म है "विनय शुक्ला" की "मिर्च"। विनय अपनी फिल्म "गॉडमदर" के कारण प्रख्यात हैं। अपनी इस नई फिल्म में विनय ने "लिंग-समानता" (जेंडर-इक़्विलटी) एवं "वुमन सेक्सुवलिटी" को केंद्र में रखा है। उनका कहना है कि उन्हें यह फिल्म बनाने की प्रेरणा पंचतंत्र की कुछ कहानियों को पढने के बाद मिली। इस फिल्म के मुख्य कलाकार हैं "कोंकणा सेन शर्मा, राईमा सेन, सहाना गोस्वामी, इला अरूण, श्रेयस तालपड़े एवं बोमन ईरानी"। जहाँ तक संगीत की बात है तो कई सालों बाद मोंटी शर्मा बॉलीवुड की मुख्य धारा में लौटे हैं। अपनी वापसी में वे कितने सफ़ल हुए हैं, यह तो आप गाने सुनकर हीं कह सकते हैं। फिल्म में गाने लिखे हैं जावेद अख्तर साहब ने। इस फिल्म का एक गाना तो ट्रेलर आते हीं मक़बूल हो चुका है। चलिए, हम आपको पहले वही गाना सुनाते हैं (कारे कारे बदरा), जिसमें आवाज़ है शंकर महादेवन की। दूसरा गाना जो हम आपको सुनवाने वाले हैं, उसे स्वर दिया है ईला अरूण, पंडित गिरीश चट्टोपाध्याय एवं चारू सेमवाल ने। जिस तरह यह फिल्म बाकी फिल्मों से कुछ हटकर है, वही बात इसके गानों के बारे में भी कही जा सकती है। आप खुद सुने:
कारे कारे बदरा
मोरा सैंयां
आज की अंतिम दो फिल्में हैं राजश्री प्रोडक्शन्स की "इसी लाईफ़ में" एवं "अनिल कपूर प्रोडक्शन्स" कि "नो प्रोब्लम"। पहले का निर्देशन किया है विधि कासलीवाल ने तो दूसरे का अनीस बज़्मी ने। फिल्म कितनी मज़ेदार है या कितनी होगी, यह तो फिल्म देखने पर हीं जाना जा सकता है, लेकिन जहाँ तक गानों की बात है तो मुझे इन दोनों के गानों में कोई खासा दम नहीं दिखा। "मीत ब्रदर्स " एवं "अंजान अंकित" "इसी लाईफ़ के" के कुछ गानों में अपनी छाप छोड़ने में सफल हुए हैं, लेकिन यह बात "नो प्रोब्लम" के "प्रीतम", "साजिद-वाजिद" या "आनंद राज आनंद" के लिए नहीं की जा सकती। चलिए तो हम सुनते हैं "मनोज मुंतसिर" का लिखा मोहित चौहान और श्रेया घोषाल की आवाज़ों में "इसी उमर में"
और "नो प्रोब्लम" से प्रीतम द्वारा संगीतबद्ध मास्टर सलीम, कल्पना एवं हार्ड कौर की आवाज़ों में कुमार का लिखा "शकीरा":
आज हमने कुछ अच्छे, कुछ ठीक-ठाक गाने सुने। आपको कौन-कौन-से गाने पसंद आए, ज़रूर लिखकर बताईयेगा। और हाँ, "ताजा सुर ताल" की अगली दो कड़ियों का ज़रूर इंतज़ार करें, आपके लिए कुछ खास हम संजोकर लाने वाले हैं। इसी वायदे के साथ अलविदा कहने का वक़्त आ गया है। धन्यवाद!
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2 श्रोताओं का कहना है :
आपकी पोस्ट की रचनात्मक सौम्यता को देखते हुए इसे आज के चर्चा मंमच पर सजाया गया है!
http://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/369.html
धन्यवाद मयंक जी!
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