'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की संस्मरणात्मक कहानी "आती क्या खंडाला?" का पॉडकास्ट उन्हीं की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं गिरिजेश राव की कहानी "ढेला पत्ता", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "ढेला पत्ता" का कुल प्रसारण समय 1 मिनट 33 सेकंड है।
सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।
इस कथा का टेक्स्ट एक आलसी का चिठ्ठा पर उपलब्ध है।
यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।
| "पास बैठो कि मेरी बकबक में नायाब बातें होती हैं। तफसील पूछोगे तो कह दूँगा,मुझे कुछ नहीं पता " ~ गिरिजेश राव हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "दोनों की बातों में कुछ खास नहीं होता था लेकिन दोनों बिना बातें किये रह नहीं पाते थे।" (गिरिजेश राव की कहानी 'ढेला पत्ता' से एक अंश) |
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#118th Story, Gate: Girijesh Rao/Hindi Audio Book/2011/01. Voice: Anurag Sharma







संस्कार गीतों पर एक विशेष शृंखला
मन जाने - विवधताओं से भरी अल्बम








लता मंगेशकर जब मिली आवाज़ के श्रोताओं से
द रिटर्न ऑफ आलम आरा प्रोजेक्ट एक कोशिश है, हिंदुस्तान की पहली बोलती फिल्म के गीत संगीत को फिर से रिवाईव करने की, सहयोग दें, और हमारी इस नेक कोशिश का हिस्सा बनें 

सुप्रसिद्ध गायक, गीतकार और संगीतकार रविन्द्र जैन यानी इंडस्ट्री के दाद्दु पर एक विशेष शृंखला जिसके माध्यम हम सलाम कर रहे हैं फिल्म संगीत जगत में, इस अदभुत कलाकार के सुर्रिले योगदान को
लोरियों की मधुरता स्त्री स्वर के माम्तत्व से मिलकर और भी दिव्य हो जाती है. पर फिल्मों में यदा कदा ऐसी परिस्थियों भी आई है जब पुरुष स्वरों ने लोरियों को अपनी सहजता प्रदान की है. पुरुष स्वरों की दस चुनी हुई लोरियाँ लेकर हम उपस्थित हो रहे हैं ओल्ड इस गोल्ड में इन दिनों 

शक्ति के बिना धैर्य ऐसे ही है जैसे बिना बत्ती के मोम।



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8 श्रोताओं का कहना है :
anuraag ji, kahani to abhi nahi sun paaya par ek baar fir ye stambh activate ho gaya aapke wapas aane se...welcome back
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शुक्रिया सजीव!
याद नही किस कक्षा में ये कहानी थी पर थी जरूर और उस समय भी मैं यही सोचती थी कि दोनों में कितनी खूबसूरत दोस्ती है.आफत के समय दोनों ने एक दुसरे को बचाया और जब आफत ने दोनों को घेरा तो दोनों ने अपना अस्तित्व खो दिया यानि साथ जिए साथ मर गये.आप कहते हैं ऐसी दोस्ती ना हो.मैं कहती हूँ दोस्ती हो तो ऐसी हो धेले और पत्ते जैसी.
बचपन याद आ गया एक बार फिर.
अनुरागजी!आपको नियमित सुन नही पाती किन्तु जब भी सुनती हूँ अच्छा लगता है.
काश ऐसे ही गिरिजेश जी की 'बाऊ गाथा : नेबुआ की झांकी' को स्वर मिल जाए ! आनंद ही आनंद आ जाएगा ! आभारी हूँ !
इन्दु जी, हार्दिक धन्यवाद!
अमरेन्द्र, ऐसा होगा भले ही कुछ समय लगे।
इन्दु जी, हार्दिक धन्यवाद!
अमरेन्द्र, ऐसा होगा भले ही कुछ समय लगे।
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