Sunday, May 1, 2011

सुर संगम में आज - सुनिए पं. विश्वमोहन भट्ट और उनकी मोहन वीणा के संस्पर्श में राग हंसध्वनी



सुर संगम - 18 - मोहन वीणा: एक तंत्र वाद्य की लम्बी यात्रा
1966 के आसपास एक जर्मन हिप्पी लड़की अपना गिटार लेकर मेरे पास आई और मुझसे आग्रह करने लगी कि मैं उसे उसके गिटार पर ही सितार बजाना सिखा दूँ| उस लड़की के इस आग्रह पर मैं गिटार को इस योग्य बनाने में जुट गया कि इसमें सितार के गुण आ जाएँ

सुप्रभात! सुर-संगम की एक और संगीतमयी कड़ी में मैं, सुमित चक्रवर्ती सभी श्रोताओं व पाठकों का स्वागत करता हूँ। आप सबको याद होगा कि सुर-संगम की १४वीं व १५वीं कड़ियों में हमने चैती पर लघु श्रंख्ला प्रस्तुत की थी जिसमें इस लोक शैली पर हमारा मार्गदर्शन किया था लखनऊ के हमारे साथी श्री कृष्णमोहन मिश्र जी ने। उनके लेख से हमें उनके वर्षों के अनुभव और भारतीय शास्त्रीय व लोक संगीत पर उनके ज्ञान की झलक मिली। अब इसे हमारा सौभाग्य ही समझिये कि कृष्णमोहन जी एक बार पुनः उपस्थित हैं सुर-संगम के अतिथि स्तंभ्कार बनकर, आइये एक बार फिर उनके ज्ञान रुपी सागर में गोते लगाएँ!

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सुर-संगम के सभी श्रोताओं व पाठकों को कृष्णमोहन मिश्र का प्यार भरा नमस्कार! बात जब भारतीय संगीत के जड़ों के तलाश की होती है तो हमारी यह यात्रा वैदिक काल के "सामवेद" तक जा पहुँचती है| वैदिक काल से लेकर वर्तमान आधुनिक काल तक की इस संगीत यात्रा को अनेक कालखण्डों से गुज़रना पड़ा| किसी कालखण्ड में भारतीय संगीत को अपार समृद्धि प्राप्त हुई तो किसी कालखण्ड में इसके अस्तित्व को संकट भी रहा| अनेक बार भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर की संगीत शैलियों ने इसे चुनौती भी दी, परन्तु परिणाम यह हुआ कि वह सब शैलियाँ भारतीय संगीत की अजस्र धारा में विलीन हो गईं और हमारा संगीत और अधिक समृद्ध होकर आज भी मौजूद है| परम्परागत विकास-यात्रा में नई-नई शैलियों का जन्म हुआ तो वैदिककालीन वाद्य-यंत्रों का क्रमबद्ध विकास भी हुआ| इनमें से कुछ वाद्य तो ऐसे हैं जिनका अस्तित्व वैदिक काल में था, बाद में इनके स्वरुप में थोडा परिवर्तन हुआ तो ये पाश्चात्य संगीत का हिस्सा बने| पश्चिमी संगीत जगत में ऐसे वाद्यों ने सफलता के नए मानक गढ़े| ऐसे वाद्यों की यात्रा यहीं नहीं रुकी, कई प्रयोगधर्मी संगीतज्ञों ने वाद्यों के इस पाश्चात्य स्वरूप में संशोधन किया और इन्हें भारतीय संगीत के अनुकूल स्वरुप दे दिया| अनेक पाश्चात्य वाद्य, जैसे- वायलिन, हारमोनियम, मेन्डोलीन, गिटार आदि आज शास्त्रीय संगीत के मंच पर सुशोभित हो रहें हैं|

सुर-संगम के आज के अंक में हम एक ऐसे ही तंत्र वाद्य- "मोहन वीणा" पर चर्चा करेंगे, जो विश्व-संगीत जगत की लम्बी यात्रा कर आज पुनः भारतीय संगीत का हिस्सा बन चुका है| वर्तमान में "मोहन वीणा" के नाम से जिस वाद्य यंत्र को हम पहचानते हैं, वह पश्चिम के 'हवाइयन गिटार' या 'साइड गिटार' का संशोधित रूप है| 'मोहन वीणा' के प्रवर्तक हैं, सुप्रसिद्ध संगीत-साधक पं. विश्वमोहन भट्ट, जिन्होंने अपने इस अनूठे वाद्य से समूचे विश्व को सम्मोहित किया है| श्री भट्ट इस वाद्य के सृजक ही नहीं, बल्कि उच्चकोटि के तंत्र-वाद्य-वादक भी हैं| सुप्रसिद्ध सितार वादक पं. रविशंकर के शिष्य विश्वमोहन भट्ट का परिवार मुग़ल सम्राट अक़बर के दरबारी संगीतज्ञ तानसेन और उनके गुरु स्वामी हरिदास से सम्बन्धित है| प्रारम्भ में उन्होंने सितार वादन की शिक्षा प्राप्त की, किन्तु 1966 की एक रोचक घटना ने उन्हें एक नये वाद्य के सृजन की ओर प्रेरित कर दिया| एक बातचीत में श्री भट्ट ने बताया था -"1966 के आसपास एक जर्मन हिप्पी लड़की अपना गिटार लेकर मेरे पास आई और मुझसे आग्रह करने लगी कि मैं उसे उसके गिटार पर ही सितार बजाना सिखा दूँ| उस लड़की के इस आग्रह पर मैं गिटार को इस योग्य बनाने में जुट गया कि इसमें सितार के गुण आ जाएँ|" श्री भट्ट के वर्तमान 'मोहन वीणा' में केवल सितार और गिटार के ही नहीं बल्कि प्राचीन वैदिककालीन तंत्र वाद्य विचित्र वीणा और सरोद के गुण भी हैं| मोहन वीणा का मूल उद्‍गम 'विचित्र वीणा' ही है| आइए हम आपको 'विचित्र वीणा' वादन का एक अंश सुनवाते हैं इस वीडियो के माध्यम से| राग 'रागेश्वरी' में यह एक ध्रुवपद है जो 12 मात्रा के 'चौताल' में निबद्ध है और इस रचना के विदेशी वादक हैं विदेशी मूल के गियान्नी रिक्कीज़ी जिन्हें वर्तमान का विचित्र वीणा दिग्गज माना जाता है।

राग - रागेश्वरी : विचित्र वीणा : वादक - गियान्नी रिक्कीज़ी

देखिये विडियो यहाँ
श्री विश्वमोहन भट्ट मोहन वीणा पर सभी भारतीय संगीत शैलियों- ध्रुवपद, धमार, ख़याल, ठुमरी आदि का वादन करने में समर्थ हैं| आइए यहाँ थोड़ा रुक कर एक और वीडियो द्वारा मोहन वीणा पर राग 'हंसध्वनि' में एक अनूठी रचना सुनते हैं जिसे प्रस्तुत कर रहे हैं स्वयं पं. विश्वमोहन भट्ट| रचना के पूर्वार्ध में धमार ताल, ध्रुवपद अंग में तथा उत्तरार्ध में कर्णाटक संगीत पद्यति में एक कृति "वातापि गणपतये भजेहम..." का वादन है| मोहन वीणा के बारे में हम और भी जानेंगे सुर-संगम की आगामी कड़ी में।

राग हंसध्वनि में धमार एवं कृति : मोहन वीणा : वादक - विश्वमोहन भट्ट



और अब बारी इस कड़ी की पहेली का जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। 'सुर-संगम' की ५०-वीं कड़ी तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से अधिक अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।

हिंदी सिनेमा में हवायन गिटार का प्रयोग सबसे पहले संभवतः १९३७ की एक फ़िल्म के गीत में हुआ था जिसमें संगीतकार केशवराव भोले ने फ़िल्म की अभिनेत्री से एक अंग्रेज़ी गीत गवाया था। आपको बताना है उस अभिनेत्री - गायिका का नाम।

पिछ्ली पहेली का परिणाम: श्रीमति क्षिति तिवारी जी ने लगातार तीसरी बार सटीक उत्तर देकर ५ अंक और अपने खाते में जोड़ लिये हैं, बधाई! अमित जी, अवध जी, कहाँ ग़ायब हैं आप दोनों? देखिये कहीं बाज़ी हाथ से न निकल जाए!

सुर-संगम के आज के अंक को हम यहीं पर विराम देते हैं, परंतु 'मोहन वीणा' पर कई तथ्य एवं जानकारी अभी बाक़ी है जिनका उल्लेख हम करेंगे हमारी आगामी कड़ी में। आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आई। आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। आगामी रविवार की सुबह हम पुनः उपस्थित होंगे एक नई रोचक कड़ी लेकर, तब तक के लिए कृष्णमोहन मिश्र को आज्ञा दीजिए| और हाँ! शाम ६:३० बजे हमारे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के प्यारे साथी सुजॉय चटर्जी के साथ पधारना न भूलिएगा, नमस्कार!

खोज व आलेख- कृष्णमोहन मिश्र
प्रस्तुति- सुमित चक्रवर्ती



आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.

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5 श्रोताओं का कहना है :

Amit का कहना है कि -

शांता आप्टे

Amit का कहना है कि -

फिल्म का नाम था 'दुनिया ना माने' जो नारायण हरी आप्टे के लिखे मराठी उपन्यास 'ना पत्नारी गोस्ठा' पर आधारित थी. वी. शांताराम ने इस फिल्म का निर्देशन करा था.
वो गाना आप यहाँ पर सुन सकते हैं:
http://www.youtube.com/watch?v=_pZlRP_zZ64

8 ball का कहना है कि -

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driving direction mapquest का कहना है कि -

This is an excellent post I seen thanks to share it. It is really what I wanted to see hope in future you will continue for sharing such a excellent post.

Emily Blunt का कहना है कि -

What a captivating session featuring Pandit Vishwamohan Bhatt and his mesmerizing Mohan Veena! The essence of Raag Hansdhwani truly comes alive through his mastery. For those who enjoy immersing themselves in soulful music, don’t forget to explore games like drift boss for a fun diversion! It provides a unique balance to the serene experience of traditional music.

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