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‘ए हो जन्मी है बिटिया हमार...’ कन्या-जन्म पर पारम्परिक सोहर का अभाव है - Sajeev

‘सिया रानी के जाये दुई ललनवा, विपिन कुटिया में...’ सोहर से होता है नवागन्तुक का स्वागत - Sajeev

सुर संगम में आज - एन. राजम् के वायलिन-तंत्र बजते नहीं, गाते हैं... - Sajeev

मौसिकी अर्श के आफताब : उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ - Sajeev

नज़रे करम फरमाओ...जगजीत सिंह के बेमिसाल मगर कमचर्चित शास्त्रीय गायन की एक झलक - Sajeev

‘जिनके दुश्मन सुख मा सोवें उनके जीवन को धिक्कार...’ वीर रस की लोक-काव्य-धारा : आल्हा - Sajeev

‘जा दिन जनम लियो आल्हा ने, धरती धँसी अढ़ाई हाथ.....’ बुन्देलखण्ड की लोकप्रिय लोक-गायकी शैली - Sajeev

सुर संगम में आज - सरोद के पर्याय हैं- उस्ताद अमजद अली खाँ - Sajeev

सुर संगम में आज - इसराज की मोहक ध्वनि और पण्डित श्रीकुमार मिश्र - Sajeev

मयूरी वीणा के उद्धारक और वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र - Sajeev

'गीतांजलि' ने मानव मन में एक स्निग्ध, स्नेहिल स्पर्श दिया - माधवी बंद्योपाध्याय - Sajeev

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