ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 712/2011/152
'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कल से हमने शुरु की है सजीव सारथी की लिखी कविताओं की किताब 'एक पल की उम्र लेकर' से १० चुने हुए कविताओं और उनसे सम्बंधित फ़िल्मी गीतों पर आधारित यह लघु शृंखला। आज इसकी दूसरी कड़ी में प्रस्तुत है कविता 'दीवारें'।
मैं छूना चाहता हूँ तुम्हें
महसूस करना चाहता हूँ
तुम्हारा दिल
पर देखना तो दूर
मैं सुन भी नहीं पाता हूँ तुम्हें
तुम कहीं दूर बैठे हो
सरहदों के पार हो जैसे
कुछ कहते तो हो ज़रूर
पर आवाज़ों को निगल जाती हैं दीवारें
जो रोज़ एक नए नाम की
खड़ी कर देते हैं 'वो' दरमियाँ हमारे
तुम्हारे घर की खिड़की से
आसमाँ अब भी वैसा ही दिखता होगा ना
तुम्हारी रसोई से उठती उस महक को
पहचानती है मेरी भूख अब भी,
तुम्हारी छत पर बैठ कर
वो चाँदनी भर-भर पीना प्यालों में
याद होगी तुम्हें भी
मेरे घर की वो बैठक
जहाँ भूल जाते थे तुम
कलम अपनी
तुम्हारे गले से लग कर
रोना चाहता हूँ फिर मैं
और देखना चाहता हूँ फिर
तुम्हें चहकता हुआ
अपनी ख़ुशियों में
तरस गया हूँ सुनने को
तुम्हारे बच्चों की किलकारियाँ
जाने कितनी सदियाँ से
पर सोचता हूँ तो लगता है
जैसे अभी कल की ही तो बात थी
जब हम तुम पड़ोसी हुआ करते थे
और उन दिनों
हमारे घरों के दरमियाँ भी फ़कत
एक ईंट-पत्थर की
महीन-सी दीवार हुआ करती थी... बस।
दीवारें कभी दो परिवारों, दो घरों के बीच दरार पैदा कर देती हैं, तो कभी दो दिलों के बीच। सचमुच बड़ा परेशान करती हैं ये दीवारें, बड़ा सताती हैं। पर ये भी एक हकीकत है कि चाहे दुनिया कितनी भी दीवारें खड़ी कर दें, चाहे कितने भी पहरे बिठा दें, प्यार के रास्ते पर कितने ही पर्वत-सागर बिछा दें, सच्चा प्यार कभी हार स्वीकार नहीं करता। किसी न किसी रूप में प्यार पनपता है, जवान होता है। लेकिन यह तभी संभव है जब कोशिश दोनों तरफ़ से हों। कभी कभार कई कारणों से दोनों में से कोई एक रिश्ते को आगे नहीं बढ़ा पाता। ऐसे में दूसरे के दिल की आह एक सदा बनकर निकलती है। चाहे कोई सुने न सुने, पर दिल तो पुकारे ही चला जाता है। कई बार राह पर फूल बिछे होने के बावजूद किसी मजबूरी की वजह से कांटे चुनने पड़ते हैं। इससे रिश्ते में ग़लतफ़हमी जन्म लेती है और एक बार शक़ या ग़लतफ़हमी जन्म ले ले तो उससे बचना बहुत मुश्किल हो जाता है। अनिल धवन और रेहाना सुल्तान अभिनीत १९७० की फ़िल्म 'चेतना' में सपन जगमोहन के संगीत में गीतकार नक्श ल्यालपुरी नें भी एक ऐसा ही गीत लिखा था "मैं तो हर मोड़ पर तुझको दूंगा सदा, मेरी आवाज़ को, दर्द के साज़ को तू सुने न सुने"। सजीव जी की कविता 'दीवारें' को पढ़कर सब से पहले इसी गीत की याद आई थी, तो लीजिए इस ख़ूबसूरत कविता के साथ इस ख़ूबसूरत गीत का भी आनन्द लें।
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - फिल्म में प्रमुख अभिनेत्री की दोहरी भूमिका है.
सूत्र २ - इस गीत के भी दो संस्करण हैं, एक युगल और एक एकल, दोनों ही संस्करण में गायक एक ही हैं.
सूत्र ३ - पहले अंतरे की अंतिम पंक्ति में शब्द है - "औंधे"
अब बताएं -
फिल्म की नायिका बताएं - ३ अंक
गायक कौन हैं - २ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
क्षिति जी ने भी अपनी आमद का बिगुल बजा दिया है, बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
8 श्रोताओं का कहना है :
Sharmila Tagore
Is Gaane ko Gaaya hai 'Bhupinder Singh' ne.
Music: 'Madan Mohan'
Aaj ki Pahelee to bahut saral thee par main chook gaya aaj. Light chali gayi thi aur aab aayi hai.
Ye Mausam film ka gaana hai. 'Dil Dhoondta hai' Gulzar ke dwara likha
music kanu rai
मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल 'मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए के एक शे'र ' जी ढूढता है फिर वही फुर्सत, कि रात दिन, को गुलज़ार ने थोडा परिवर्तन करके
दिल् ढूढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन,अपनी फिल्म मेँ एक नया अर्थ दे दिया
हाँ सँजीव कुमार का उल्लेख भी तो हो ।
बेहद सुंदर । काश कि वह पडोसी य़े सदा सुन ले ।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)