Wednesday, August 3, 2011

कभी रात दिन हम दूर थे.....प्यार बदल देता है जीने के मायने और बदल देता है दूरियों को "मिलन" में



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 714/2011/154

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! सजीव सारथी की लिखी कविताओं की किताब 'एक पल की उम्र लेकर' से चुनी हुई १० कविताओं पर आधारित शृंखला की आज चौथी कड़ी में हमनें जिस कविता को चुना है, उसका शीर्षक है 'मिलन'।

हम मिलते रहे
रोज़ मिलते रहे
तुमने अपने चेहरे के दाग
पर्दों में छुपा रखे थे
मैंने भी सब ज़ख्म अपने
बड़ी सफ़ाई से ढाँप रखे थे
मगर हम मिलते रहे -
रोज़ नए चेहरे लेकर
रोज़ नए जिस्म लेकर
आज, तुम्हारे चेहरे पर पर्दा नहीं
आज, हम और तुम हैं, जैसे दो अजनबी
दरअसल
हम मिले ही नहीं थे अब तक
देखा ही नहीं था कभी
एक-दूसरे का सच

आज मगर कितना सुन्दर है - मिलन
आज, जब मैंने चूम लिए हैं
तुम्हारे चेहरे के दाग
और तुमने भी तो रख दी है
मेरे ज़ख्मों पर -
अपने होठों की मरहम।


मिलन की परिभाषा कई तरह की हो सकती है। कभी कभी हज़ारों मील दूर रहकर भी दो दिल आपस में ऐसे जुड़े होते हैं कि शारीरिक दूरी उनके लिए कोई मायने नहीं रखती। और कभी कभी ऐसा भी होता है कि वर्षों तक साथ रहते हुए भी दो शख्स एक दूजे के लिए अजनबी ही रह जाते हैं। और कभी कभी मिलन की आस लिए दो दिल सालों तक तरसते हैं और फिर जब मिलन की घड़ी आती है तो ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता। ऐसा लगता है जैसे दो नदियाँ अलग अलग तन्हा बहते बहते आख़िरकार संगम में एक दूसरे से मिल गई हों। मिलन और जुदाई सिक्के के दो पहलु समान हैं। दुख और सुख, धूप और छाँव, ख़ुशी और ग़म जैसे जीवन की सच्चाइयाँ हैं, वैसे ही मिलन और जुदाई, दोनों की ही बारी आती है ज़िंदगी में समय समय पर, जिसके लिए आदमी को हमेशा तैयार रहना चाहिए। इसे तो इत्तेफ़ाक़ की ही बात कहेंगे न, जैसा कि गीतकार आनंद बक्शी नें फ़िल्म 'आमने-सामने' के गीत में कहा था कि "कभी रात दिन हम दूर थे, दिन रात का अब साथ है, वो भी इत्तेफ़ाक़ की बात थी, ये भी इत्तेफ़ाक़ की बात है"। बड़ा ही ख़ूबसूरत युगल गीत है लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ों में और संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी नें भी कितना सुरीला कम्पोज़िशन तैयार किया है इस गीत के लिए। तो लीजिए आज मिलन के रंग में रंगे इस अंक में सुनिये 'आमने-सामने' फ़िल्म का यह सदाबहार गीत।



और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-

सूत्र १ - कल जिस महान गायक की जयंती है उन्ही की आवाज़ है गीत में.
सूत्र २ - फिल्म में शत्रुघ्न सिन्हा की भी अहम भूमिका थी.
सूत्र ३ - एक अंतरे शुरू होता है इस शब्द से -"आँखों".

अब बताएं -
गीतकार कौन हैं - ३ अंक
किस अबिनेता पर है ये गीत फिल्मांकित - २ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
अविनाश जी, अमित जी सत्यजीत और हिन्दुस्तानी जी को बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

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4 श्रोताओं का कहना है :

Amit का कहना है कि -

Gulzar

Satyajit Phadke का कहना है कि -

picturised on Vinod Khanna

Hindustani का कहना है कि -

Music: Salil Chowdhury

AVADH का कहना है कि -

फिल्म 'मेरे अपने' गुलज़ार द्वार निर्मित- निर्देशित थी. विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा ने दो प्रतिद्द्वंदी छात्र नेताओं की सशक्त भूमिकायें अभिनीत की थीं.
गीत 'कोई होता मेरा अपना, हम अपना कह लेते यारो, पास नहीं तो दूर ही होता लेकिन कोई मेरा अपना' बहुत अच्छा है.
वैसे मेरी पसंद का इस फिल्म का गीत है," रोज अकेली आये रोज अकेली जाए, चाँद कटोरा लिए भिखारिन रात."
आभार सहित,
अवध लाल

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