ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 06
दोस्तों, हम उम्मीद करते हैं कि आवाज़ पर 'ओल्ड इस गोल्ड' का यह जो सिलसिला हमने शुरू किया है, वो आपको पसंद आ रहा होगा, और आप इन गीतों और बातों का लुत्फ़ उठा रहे होंगे. आपको यह स्तंभ कैसा लग रहा है, आपकी क्या प्रतिक्रिया है, आपके क्या सुझाव हैं, हमें ज़रूर बताईएगा. आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में प्रस्तुत है एक बहुत ही मशहूर फिल्म का एक गीत. इस फिल्म के सभी के सभी गीत 'सूपर-डूपर हिट' रहे, और फिल्म भी बेहद कामयाब रही. हम बात कर रहे हैं सन 1967 में बनी फिल्म "जुवेल थीफ" की. नवकेतन के 'बॅनर' तले बनी इस फिल्म को निर्देशित किया था विजय आनंद ने, और मुख्य भूमिकाओं में थे अशोक कुमार, देव आनंद, वैजन्ती माला और तनूजा. एक तरफ 'सस्पेनस' से भरी रोमांचक कहानी, तो दूसरी तरफ मधुर गीत संगीत इस फिल्म के आकर्षण रहे. अगर हम यूँ कहे कि यह फिल्म संगीतकार सचिन देव बर्मन के सफलतम फिल्मों में से एक है तो शायद ग़लत नहीं होगा. इस फिल्म का हर एक गीत अपने आप में सदा बहार है जो आज भी अक्सर कहीं ना कहीं से गूंजते हुए सुनाई देते हैं.
यूँ तो इस फिल्म के ज़्यादातर गाने खुशमीज़ाज हैं, रंगीन हैं, लेकिन एक गीत ऐसा है जो नायिका की वेदना को दर्शाता है. लेकिन इस दर्द भरे गीत ने भी उतनी ही लोकप्रियता बटोरी जितनी कि इस फिल्म के दूसरे खुशरंग गीतों ने. मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे और लता मंगेशकर की आवाज़ में यह गीत है "रुलाके गया सपना मेरा, बैठी हूँ कब हो सवेरा". इस गीत को आपको सुनवाते हुए मुझे याद आ रहा है एस डी बर्मन के ही संगीत निर्देशन में सन 1947 का वो गाना जिसे गीता रॉय ने गाया था और राजा महेंडी अली ख़ान ने लिखा था. क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं मैं किस गीत की ओर इशारा कर रहा हूँ ? जी हाँ, गीता रॉय का गाया "मेरा सुंदर सपना बीत गया". इन दोनो गीतों को अगर आप एक के बाद एक सुनेंगे तो आपको इनमें एक अजीब सी समानता नज़र आएगी. गीता रॉय की आवाज़ में "दो भाई" फिल्म का यह गीत हम आपको फिर कभी सुनवाएँगे, आज यहाँ पर जुवेल थीफ फिल्म के गीत का आनंद उठाइये. इस गीत के बोल जितने सुंदर हैं उतना ही सुंदर है बर्मन दादा का संगीत और इस गीत का संगीत-संयोजन.
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. आशा की आवाज़ में एक चुलबुला गीत.
२. संगीत मदन मोहन का था इस राज खोंसला निर्देशित सस्पेंस फिल्म में.
३. मुखड़े में शब्द है - "ख्याल".
कुछ याद आया...?
एक बार फिर मनु जी, महेंद्र कुमार जी ने सही गीत पकडा. दो नए विजेता भी हैं नारायण जी और नीलम जी के रूप में, सभी को बधाई.
प्रस्तुति - सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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6 श्रोताओं का कहना है :
Jewel Thief ke mukhya kalaakaaron ke naam mein Tanuja ke bajaaye Nutan ka zikr huya hai. is galati ke liye hum kshama-praathi hain.
Sujoy Chatterjee
सजीव जी,
वो कौन थी.....
शोख नज़र की बिजलियाँ दिल पे यूं ही गिराए जा,
मेरा न कुछ ख्याल कर ,तू यूं ही मुस्कुराए जा....
नीलम जी ने एक बिना पूछा prashan ka उत्तर पिछली बार गलत दिया है.....आशा पारेख नहीं....वैजन्ती मला है ...
अब देख लीजिये क्या करना है इनका.....::))
इतना सुन्दर गीत सुनवाने और जानकारी बाँटने का शुक्रिया। आप बहुत नेक काम कर रहे हैं।
सुजॉय जी, सजीव जी.. आवाज़ टीम..
ये बहुत अच्छा सेक्शन शुरु किया है आप लोगों ने..
मैं कमेंट नहीं कर पाता पर सुनता व पढ़ता ज़रूर हूँ...
मनु जी... आप पुरानी फिल्मों में माहिर लगते हैं..
गजब का ज्ञान है आपका...
नीलम जी पता नहीं क्या करेंगी/कहेंगी अब.. :-)
सुजाय जी,
आपकी old is gold की प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगती है मै भी ये पढता हूँ, मुझे भी पुराने गाने बहुत पसंद है पर मै सिर्फ गायको की आवाज पहचान सकता हूँ, इसलिए सही जवाब देना तो मेरे बस की बात नही
लेकिन गाने सुनने मे बहुत मजा आता है
सुमित भारद्वाज
मनु भाई आपकी पुरानी फिल्मो और गीतो का ज्ञान काबिले तारीफ है
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