ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 02
ओल्ड इस गोल्ड आवाज़ का एक ऐसा स्तम्भ है जिसमें हम आपको फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर से चुनकर एक लोकप्रिय गीत सुनवाते हैं और साथ ही साथ उस गीत की चर्चा भी करते हैं उपलब्ध तथ्यों के आधार पर. आज हमने इस स्तम्भ के लिए जिस गीत को चुना है उस गीत को सुनकर न केवल आप मुस्कुरायेंगें बल्कि आपके कदम थिरकने भी लगेंगे. १९५८ में एक फ़िल्म आई थी-"दिल्ली का ठग" और इस फ़िल्म में मुख्य भूमिकाओं में थे किशोर कुमार और नूतन. इस फ़िल्म में किशोर कुमार और आशा भोंसले का गाया एक ऐसा गीत है जो अपने आप में एक ही है, और ऐसा गीत फ़िर उसके बाद कभी नही बन पाया. जब किशोर दा के सामने हास्य गीत गाने की बारी आती है, तो जैसे उनका अंदाज़ ही बदल जाता है. संगीतकार चाहे जैसी भी धुन बनाये, किशोर दा उस पर अपने अंदाज़ की ऐसी छाप छोड़ देते हैं की वो गीत सिर्फ़ और सिर्फ़ उन्ही का बन कर रह जाता है. ऐसा ही है ये गीत भी जिसे आज हम आपको सुनवाने जा रहे हैं.
फ़िल्म की सिचुअशन ये है कि नूतन, किशोर कुमार को अंग्रेजी की "वोक्युबलरी" सिखा रही हैं. इस सिचुअशन पर जब गीत बनाने का सोचा गया तब तब गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी, संगीतकार रवि और गायक किशोर कुमार और आशा भोंसले ने एक ऐसा "मास्टर पीस" तैयार कर सबके सामने पेश कर दिया कि सब खुशी से झूम उठे और हँसी के मारे लोट पोट भी हो गए. आशा ने भी देखिये किस खूबी से यहाँ किशोर को टक्कर दी है गायकी में. इस तरह के गीत निभाने आसान नही होते ये याद रखियेगा. "सी ऐ टी कैट कैट माने बिल्ली..." को उस साल अमीन सायानी के हिट रेडियो कार्यक्रम बिनाका गीत माला के वार्षिक कार्यक्रम में दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था. आज भी ये गीत किशोर कुमार के सदाबहार हास्य गीतों की तालिका में एक बेहद सम्मान जनक स्थान हासिल करता है. तो सुनिए किशोर कुमार के साथ आशा भोंसले की आवाज़, फ़िल्म "दिल्ली का ठग" का ये गुदगुदाने वाला गाना.
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. कमर जलालाबादी, कल्यानजी आनंद जी और मुकेश की शानदार जुगलबंदी.
२. मनमोहन देसाई की पहली निर्देशित फ़िल्म, नायक थे राजकपूर.
३. गीत के मुखड़े में शब्द है -"सुभान अल्लाह"
कुछ याद आया...?
कल की पहेली का सही जवाब दिया मीत जी ने, मनु जी ने और दिलीप जी ने. आप सब को बधाई.
प्रस्तुति - सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सदर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.






संस्कार गीतों पर एक विशेष शृंखला
मन जाने - विवधताओं से भरी अल्बम








लता मंगेशकर जब मिली आवाज़ के श्रोताओं से
द रिटर्न ऑफ आलम आरा प्रोजेक्ट एक कोशिश है, हिंदुस्तान की पहली बोलती फिल्म के गीत संगीत को फिर से रिवाईव करने की, सहयोग दें, और हमारी इस नेक कोशिश का हिस्सा बनें 

सुप्रसिद्ध गायक, गीतकार और संगीतकार रविन्द्र जैन यानी इंडस्ट्री के दाद्दु पर एक विशेष शृंखला जिसके माध्यम हम सलाम कर रहे हैं फिल्म संगीत जगत में, इस अदभुत कलाकार के सुर्रिले योगदान को
लोरियों की मधुरता स्त्री स्वर के माम्तत्व से मिलकर और भी दिव्य हो जाती है. पर फिल्मों में यदा कदा ऐसी परिस्थियों भी आई है जब पुरुष स्वरों ने लोरियों को अपनी सहजता प्रदान की है. पुरुष स्वरों की दस चुनी हुई लोरियाँ लेकर हम उपस्थित हो रहे हैं ओल्ड इस गोल्ड में इन दिनों 

शक्ति के बिना धैर्य ऐसे ही है जैसे बिना बत्ती के मोम।



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3 श्रोताओं का कहना है :
dam dam digaa digaa....
mausam bhiga bhiga....
bin piye main to giraa main to gira...
हा हा हा किशोर जी की आवाज़ में गाया ये गीत सुनकर बहुत मज़ा आया।
आपका प्रयास स्तुत्य है. गीत सुन कर मजा आ गया.
अगला गीत है डम डम डिगा डिगा...
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