ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 111
हिंदी फ़िल्मों के ख़ज़ाने में ऐसे बहुत सारी फ़िल्में हैं जिनमें मुख्य किरदार बच्चों ने निभाये हैं। अर्थात, इन फ़िल्मों में बाल कलाकार ही कहानी के केन्द्र मे रहे हैं। ऐसी ही एक फ़िल्म थी 'बूट पालिश', जिसका शुमार बेहतरीन और कामयाब सामाजिक संदेश देनेवाली बाल-फ़िल्मों में होता है। 'बूट पालिश' निर्देशक प्रकाश अरोड़ा की पहली फ़िल्म थी। प्रकाश अरोड़ा और राजा नवाथे राज कपूर के सहायक हुआ करते थे। 'आग', 'बरसात' और 'आवारा' जैसी फ़िल्मों में इन दोनों ने राज कपूर को ऐसिस्ट किया था। आगे चलकर राज साहब ने इन दोनों को स्वतन्त्र निर्देशक बनने का अवसर दिया। राजा नवाथे को 'आह' मिली तो प्रकाश अरोड़ा को मिला 'बूट पालिश'। अपनी पहली निर्देशित फ़िल्म के हिसाब से प्रकाश साहब का काम बेहद सराहनीय रहा। यूँ तो १९५४ के इस फ़िल्म मे राज कपूर ने भी अभिनय किया था, लेकिन फ़िल्म के मुख्य चरित्रों में थे दो बहुत ही प्यारे प्यारे से बच्चे, बेबी नाज़ और रतन कुमार। बेबी नाज़ की एक और महत्वपूर्ण फ़िल्म 'लाजवंती' का एक गीत हम आप को कुछ दिन पहले ही सुनवा चुके हैं। 'बूट पालिश' में बेबी नाज़ और रतन कुमर दो अनाथ बच्चों की भूमिका अदा करते हैं। अभिनेता डेविड के साथ इन दोनों बच्चों के जानदार और भावुक अभिनय आप को रुलाये बिना नहीं छोड़ते। इस फ़िल्म में गीतकार शैलेन्द्र ने भी अभिनय किया था और फ़िल्म के गाने भी उन्होने ही लिखे। संगीत शंकर जयकिशन का था, और दत्ताराम उनके सहायक थे इस फ़िल्म मे। आज इसी फ़िल्म से पेश है मोहम्मद रफ़ी, आशा भोंसले और साथियों का गाया एक मशहूर गीत "नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है"।
'बूट पालिश' फ़िल्म दो अनाथ बच्चों की कहानी है जिन्हे मजबूरी में भीख माँगना पड़ता है। लेकिन उन्ही की तरह फ़ूटपाथ पर रहने वाले उनके मुँह बोले चाचा (डेविड) उन्हे भीख माँगने के बजाये कुछ काम करने के लिए प्रेरित करते हैं। तभी वो दो बच्चे बूट पालिश के काम में लग जाते हैं। फ़िल्म की कहानी कई ऊंचे नीचे पड़ावों से होती हुई सुखांत को रुख करती है। यह फ़िल्म अनाथ और बेघर बच्चों की दुखद अवस्था को हमारे सामने लाती है और यह सोचने पर मजबूर करती है कि ऐसे अभागे बच्चों के लिए हमें कुछ करना चाहिये। ये बच्चे भी जब दूसरे बच्चों को स्कूल जाते देखते हैं, अपने माता-पिता से लाड-प्यार पाते देखते हैं, तो उन्हे भी ऐसी चाहत होती है कि कोई उनसे भी प्यार करे, उनके तरफ़ भी कोई ध्यान दें। हालाँकि प्रस्तुत गीत में इन बच्चों के जोश और कुछ कर दिखाने की क्षमता को बहुत ही सकारात्मक तरीके से दर्शाया गया है। गीतकार शैलेन्द्र की यह खासियत रही है कि वो गहरी से गहरी बात को बहुत ही सीधे सरल शब्दों में कह जाते थे। इस गीत में भी "तेरी मुट्ठी में क्या है" जैसे शब्द इसका उदाहरण है। गीत को सुनिये और इसके एक एक शब्द में झलकते आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच को महसूस कीजिये। "आनेवाली दुनिया में सब के सर पे ताज होगा, ना भूखों की भीड़ होगी ना दुखों का राज होगा, बदलेगा ज़माना ये सितारों पे लिखा है"। इसी कामना के साथ सुनते हैं यह गीत और आइये हम सब मिलकर यह कोशिश करते हैं कि हम भी अनाथ, बेघर और ग़रीब बच्चों के लिए जितना कुछ हम से बन पड़े वो हम सिर्फ़ कहने के बजाये हक़ीक़त में कर के दिखायें।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. एक जीनियस निर्देशक की महत्वकांक्षी फिल्म जो बहुत अधिक सफल नहीं हुई.
२. उनकी पत्नी से इस गीत को गाया था जिसमें कहीं न कहीं उनके अपने ज़ज्बात भी थे.
३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"बेकरार".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
चलिए पराग जी आखिर आप फॉर्म में वापस आ ही गए. २ अंकों के साथ खता खोलने के लिए बधाई. और भी दिग्गज हैं जिन्हें हमें लगता है बस एक शुरुआत करने की देर भर है, मनु जी, नीरज जी, रचना जी, स्वप्न मंजूषा जी, मंजू जी, सुमित जी अब कमर कस लीजिये.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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12 श्रोताओं का कहना है :
अर्थात पहेली का जवाब है "वक़्त ने किया क्या हसीं सितम"
फिल्म है कागज़ के फूल
पराग
पराग जी को बधाई. साथ ही संगीत ज्ञान की परीक्षा के अनोखे कार्यक्रम के लिए हिन्दयुग्म का आभारी.
Javab;vakt ne kiya kya haseen sitam
ham rahe na hm tum rahe natum.
Nirdeshan Guru Dat ji ne kiya.
Manju Gupta.
bekaraar dil... is tarah mile..
jaise kabhi..hum juda na the....
hmmm.. late ho gaye.. :-(
सुजॉय जी ,
अगर हम अपने late होने का सोग करते रहे तो कुछ भी नहीं कह पाएँगे,
सबसे पहले आपको और हिंदी-युग्म की टीम को ह्रदय से बधाई देना चाहती हूँ, कविता, कहानी, गीत, संगीत सब कुछ एक ही मंच पर उपलब्ध कराने के लिए.
बहुत बहुत धन्यवाद.
प्रश्न का उत्तर तो पराग जी दे ही चुके हैं. वैसे तो पराग जी के संगीत ज्ञान को मात देना आसन नहीं है लेकिन मुझे एक और असुविधा का सामना करना पड़ता है और वो है "समय का अंतर " हम लोग आपसे साढ़े दस घंटे पीछे हैं, इसलिए भी मैं देर हो जाती हूँ.आज की पहेली तो 'piece of cake' थी पराग जी के लिए. आपके साथ प्रोग्राम प्रेसेंट करने का मौका तो नहीं ही मिलेगा, लेकिन अब यह बताइए कि आपका प्रग्राम सुनने का क्या उपाय है, क्यूंकि मुझे यह भी नहीं मालूम है, कृपा करके मेरी इस अज्ञानता को अन्यथा न लें
एक बार फिर आप सबका आभार मानती हूँ
स्वप्न मंजूषा
स्वप्न मंजूषा जी
आपने बहुत बढ़िया बात कही है. मेरे लिए भी साडे ग्यारह घंटोंका अंतर है, इसलिए मै भी हमेशा सबसे पहले नहीं पंहुच सकता. गीता जी का गाया हुआ यह अमर गीत सचमुच आसान जवाब था. वैसे मेरे पास इस पहेली का रूप बदलने के लिए एक सुझाव है, जिससे यह जरूरी नहीं होगा की आप सबसे पहले पहेली देखना चाहिए.
वैसे आप आलेख के नीचे दी हुई लिंक से गाना सुन सकती है.
आभारी
पराग
आज खुश हूँ ! पहेली में समय से मैं भी नहीं पहुँच पाता . लेकिन आज खुशी हुयी की पराग साढे ग्यारह और शैल साढे दस घंटे पीछे चल रहे हैं . मैं तो सिर्फ साढे नौ घंटे ही पीछे हूँ .
फिर भी जिस दिन चाह लिया और नींद भी खुल गयी तो मैं ही जीतूंगा बता दे रहा हूँ :)
अरे मित्रो स्पिरिट बनाईये , हम सभी जीत रहे हैं !
बिना किसी जादू टोने के इतना पुराना सोना ! यही क्या कम है ?
वैसे ..........
वक्त ने किया क्या हसीं सितम .....फिर लेट हो गए हम !
अगली बार देखेंगे किसमे है दम ......हा हा हा .......!
हिन्दयुग्म के home page पर कुछ हो गया है, update नही हो पा रहा इसलिए पता ही नही चल रहा कि कोई नयी पोस्ट आयी है या नही...
मै दो दिन से ओल्ड इज गोल्ड को ढूंढ रहा था, आज मिला पर जवाब पहले ही आ चुका था, सही जवाब के लिए बधाई
हिन्दयुग्म के home page पर कुछ हो गया है, update नही हो पा रहा इसलिए पता ही नही चल रहा कि कोई नयी पोस्ट आयी है या नही...
मै दो दिन से ओल्ड इज गोल्ड को ढूंढ रहा था, आज मिला पर जवाब पहले ही आ चुका था, सही जवाब के लिए बधाई
राज साहब,
आपकी बातों ने दिल खुश कर दिया, और जो नया गाना आपने लिखा, बस हम तो गाते ही रह गए, बहुत ही बढ़िया लाजवाब, बेमिसाल एकदम जबरदस्त .......
समय निकाल कर मेरी कुछ कवितायेँ भी पढ़ लीजियेगा, नीचे लिंक दे रही हूँ,
http://swapnamanjusha.blogspot.com/
पराग साहब,
आपके संगीत ज्ञान ने मुझे वाकई बहुत प्रभावित किया है, आप तो लगता है चलता-फिरता एन्सैक्लोपेडिया हैं, बहुत बढ़िया
मेरे ख्याल से जो भी संगीत प्रेमी इस आलेख को पढ़ते है और सुमधुर संगीत का आनंद उठाते हैं, वोह सारे विजेता है. हिन्दयुग्म और आवाज़ की पूरी टीम को शत शत धन्यवाद इस पेशकश के लिए. सुजॉय जी आगे बढिए हम सब आपके साथ हैं.
पराग
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