ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 160
मोहम्मद रफ़ी साहब के गीतों से सजी इस ख़ासम ख़ास शृंखला 'दस चेहरे एक आवाज़ - मोहम्मद रफ़ी' के अंतिम कड़ी मे हम आज आ पहुँचे हैं। दस चेहरों में से अब तक जिन नौ चेहरों पर फ़िल्माये रफ़ी साहब के गानें आप ने सुने हैं वो हैं शम्मी कपूर, दिलीप कुमार, सुनिल दत्त, राजेन्द्र कुमार, राजकुमार, शशी कपूर, धर्मेन्द्र, मनोज कुमार एवं देव आनंद। आज इस आख़िरी कड़ी के लिए हम ने चुना है हिंदी फ़िल्मों के पहले सुपर-स्टार राजेश खन्ना पर फ़िल्माये एक गीत को। देव आनंद की तरह राजेश खन्ना के ज़्यादातर गानें किशोर कुमार की आवाज़ में हैं, लेकिन फिर वही बात कि समय समय पर जब जब संगीतकारों को यह लगा कि कोई गीत रफ़ी साहब की गायकी में ढलकर ज़्यादा बेहतर सुनाई देगा, तब तब उन्होने रफ़ी साहब से ये गानें गवाये हैं और ज़रूरी बात यह कि ये गानें मशहूर भी ख़ूब हुए हैं। फ़िल्म 'दो रास्ते' में किशोर कुमार, मुकेश और मोहम्मद रफ़ी, सुनेहरे दौर के इन तीनों महा-गायकों ने गानें गाये हैं। इन तीनों गायकों के इस फ़िल्म के लिए गाये एकल गीतों की बात करें तो मुकेश की आवाज़ में फ़िल्म का शीर्षक गीत था "दो रंग दुनिया के और दो रास्ते", किशोर दा ने गाया था "ख़िज़ाँ के फूल पे आती कभी बहार नहीं", तथा रफ़ी साहब की आवाज़ में था "ये रेशमी ज़ुल्फ़ें ये शरबती आँखें"। इन तीनों गीतों का उत्कृष्टता के मापदंड पर क्रम निर्धारित करना संभव नहीं क्योंकि अपने अपने अंदाज़ में इन तीनों ने इन गीतों के साथ पूरा पूरा न्याय किया है। लेकिन सही मायने में तारीफ़ संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की करनी चाहिए जिन्होने इन तीन गीतों के लिये अलग अलग गायकों को चुना। राजेश खन्ना और रफ़ी साहब की जोड़ी को सलाम करते हुए आज सुनिए आनंद बख्शी का लिखा हुआ "ये रेशमी ज़ुल्फ़ें ये शरबती आँखें"।
सन् २००५ में विविध भारती ने रफ़ी साहब की पुण्यतिथि पर कई विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया था। और इसी के तहत संगीतकार प्यारेलाल जी को आमंत्रित किया गया था रफ़ी साहब को श्रद्धांजली अर्पित करते हुए फ़ौजी भाइयों की सेवा में 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए। इस कार्यक्रम में प्यारेलाल जी ने रफ़ी साहब के गाये उनके कुछ पसंदीदा गानें तो सुनवाये ही थे, उनके साथ साथ रफ़ी साहब से जुड़ी कुछ बातें भी कही थी। और सब से ख़ास बात यह कि फ़िल्म 'दो रास्ते' का प्रस्तुत गीत भी उनकी पसंद के गीतों में शामिल था। प्यारेलाल जी ने कहा था - "आज आप से रफ़ी साहब के बारे में बातें करते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है। रफ़ी साहब का नेचर ऐसा था कि उन्होने सब को हेल्प किया, चाहे कोई भी जात का हो, या म्युज़िशियन हो, या कोई भी हो, सब को समान समझते थे। इससे मुझे याद आ रहा है फ़िल्म 'दोस्ती' का वह गाना "मेरा तो जो भी क़दम है वो तेरी राहों में है, के तू कहीं भी रहे तू मेरी निगाहों में है"। एक बात और बताऊँ आपको? जब राजेश खन्ना इंडस्ट्री में आये, तो उनके लिए कई आवाज़ों की बात चल रही थी। 'दो रास्ते' में गाना था "ये रेश्मी ज़ुल्फ़ें", हम ने कहा कि 'चाहे कुछ भी हो जाये, यह गाना रफ़ी साहब ही गायेंगे, इसे और कोई नहीं गा सकता।' सुनिए उन्होने क्या गाया है, नये लड़के इसे क्या गायेंगे! क्या शोख़पन है!" जी हाँ जी हाँ, ज़रूर सुनिए यह गीत, लेकिन उससे पहले मैं नीचे उन ११ गीतों की सूची पेश कर रहा हूँ जिन्हे उस कार्यक्रम में प्यारेलाल जी ने बजाया था रफ़ी साहब को श्रद्धांजली अर्पित करते हुए।
१. मेरा तो जो भी क़दम है वो तेरी राहों में है (दोस्ती)
२. पत्थर के सनम तुझे हमने (पत्थर के सनम)
३. मस्त बहारों का मैं आशिक़ (फ़र्ज़)
४. बड़ी मस्तानी है मेरी महबूबा (जीने की राह)
५. वो हैं ज़रा ख़फ़ा ख़फ़ा (शागिर्द)
६. ये रेशमी ज़ुल्फ़ें (दो रास्ते)
७. ये जो चिलमन है (महबूब की मेहंदी)
८. हुई शाम उनका ख़याल आ गया (मेरे हमदम मेरे दोस्त)
९. वो जब याद आये बहुत याद आये (पारसमणि)
१०. न तू ज़मीं के लिये (दास्तान)
११. दिल का सूना साज़ तराना ढ़ूंढेगा (एक नारी दो रूप)
चलते चलते हम भी रफ़ी साहब के लिए यही कहेंगे कि
"दिल का सूना साज़ तराना ढ़ूंढेगा,
तीर निगाहें यार निशाना ढ़ूंढेगा,
तुझ को तेरे बाद ज़माना ढ़ूंढेगा"
'दस चेहरे एक आवाज़ - मोहम्मद रफ़ी', रफ़ी साहब को समर्पित इस लघु शृंखला को समाप्त करते हुए हिंद-युग्म की तरफ़ से रफ़ी साहब की सुर साधना को हमारा स्मृति सुमन!
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. कल से आवाज़ पर सुनिए जिंदगी के अलग अलग रंग और उनमें डूबी किशोर दा की आवाज़ से सजे गीत.
2. कल के गीत का थीम है - हँसना -हँसाना.
3. ये एक पुराने गीत की पैरोडी है, यानी कि नक़ल कर किशोर दा आपको हंसाएंगे. मूल गीत को सीनियर बर्मन दा ने गाया है.
कौन सा है आपकी पसंद का गीत -
अगले रविवार सुबह की कॉफी के लिए लिख भेजिए (कम से कम ५० शब्दों में ) अपनी पसंद को कोई देशभक्ति गीत और उस ख़ास गीत से जुडी अपनी कोई याद का ब्यौरा. हम आपकी पसंद के गीत आपके संस्मरण के साथ प्रस्तुत करने की कोशिश करेंगें.
पिछली पहेली का परिणाम -
दिशा जी, बधाई आपको, ८ अंकों पर आ गए आप. मंजू जी आप बस थोडा सा पीछे रह गयी....थोड़ी और कोशिश कीजिये...वाह दिलीप जी आपने तो आँखों पे लिखे गीतों की पूरी फेहरिस्त ही दे दी...शरद जी और स्वप्न जी...कॉफी/टॉफी की बहस जारी रहे...:)
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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12 श्रोताओं का कहना है :
are baba koi jaldi jawaab do main mar rahi hun batane ka liye...
‘धीरे से जाना बगियन में..
‘धीरे से जाना खटियन में, ओ खटमल! धीरे से जाना खटियन में/ सोई है राजकुमारी, देख रही मीठे सपने/ जा-जा छुप जा तकियन में, ओ खटमल, धीरे से जाना खटियन में’।
असली गाना-‘‘धीरे से जाना बगियन में..’ की पैरोडी
गाना-‘धीरे से जाना खटियन में, ओ खटमल! धीरे से जाना खटियन में/ सोई है राजकुमारी, देख रही मीठे सपने/ जा-जा छुप जा तकियन में, ओ खटमल, धीरे से जाना खटियन में’।
फिल्म- छुपा रुस्तम
गायक-किशोर कुमार
ji haan disha ji,
bilkul sahi..badhai ho aapko
असली गाना- सचिनदेव बर्मन
धीरे से जाना बगियन में, रे भंवरा!
धीरे से जाना बगियन में-2
आज है चांदनी राती
मेरे जीवन का साथी है जो
सोवत है नींद मगन में रे भंवरा.. धीरे से..
तोरी गुन-गुन-गुन गुंजार तोरी झन-झन-झन झंकार
दुविधा न डाले स्वपन में रे भंवरा.. धीरे से..
कहीं पात न गिर जाए कोई कहीं फूल न मुरझाए कोई
ठेस लगे न कलियन में रे भंवरा.. धीरे से..
ए री कोयलिया कू-कू न बोल ओ पपीहे न कर कलोल
पिया आ गए हमारे भवन में पिया आ गए हमारे भवन में
रे भंवरा.. धीरे से जाना बगियन में
अदा जी,
मैनें भी आज पहेली देखते ही अन्दाज़ लगा लिया था यदि हम दोनों लाइन में होते तो शायद फिर एक साथ क्लिक करते ।
bilkul sharad ji,
bahut hi aasan tha ye..aaj fir ek baar hi main click karte ham...
hnm.........
waakai aasaan....
आज पहली बार सात बजे नेट पर आया तो यहां ये पोस्ट नहीं दिखी. कब आती है ?
मोहम्मद रफ़ी के बेहतरीन गीतों मे से १० चुनना बडा ही कठिन काम, जो आपने बखूबी कर दिखाया.
ये गीत भी बेहद मीठा , और बडे ही रोमांटिक अंदाज़ में गाया रफ़ी जी नें.....
काका और रफ़ी जब जब भी मिले सुर और अंदाज़ मे गीत मे रंग भर दिए हैं..
धीरे से जाना खटियन में ..........
मुझे नहीं पता.
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