Monday, September 7, 2009

तू हुस्न है मैं इश्क हूँ, तू मुझमें है मैं तुझमें हूँ....साहिर, रवि, आशा और महेंद्र कपूर वाह क्या टीम है



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 195

शा भोंसले ने जिन जिन पार्श्व गायकों के साथ सब से ज़्यादा लोकप्रिय गानें गाये हैं, उनमें किशोर कुमार और मोहम्मद रफ़ी के बाद, मेरे ख़याल से महेन्द्र कपूर का नाम आना चाहिए। बी. आर. चोपड़ा कैम्प के सदस्यों में संगीतकार रवि और गीतकार साहिर लुधियानवी के साथ साथ आशा भोंसले और महेन्द्र कपूर ने भी एक लम्बे समय तक काम किया है। आशा जी और महेन्द्र कपूर के गाए युगल गीतों में 'नवरंग', 'धूल का फूल', 'हमराज़', 'गुमराह', 'आदमी और इंसान', 'वक़्त', 'पति पत्नी और वो', और 'दहलीज़' जैसी मशहूर फ़िल्मों के गानें रहे हैं। आज हम जिस गीत को आप तक पहुँचा रहे हैं वह है फ़िल्म 'हमराज़' का, "तू हुस्न है मैं इश्क़ हूँ, तू मुझ में है मैं तुझ में हूँ"। करीब करीब ७ मिनट २७ सेकन्ड्स के इस गीत में इतिहास की मशहूर प्रेम कहानियों को बड़ी ही ख़ूबसूरती से साहिर साहब ने ज़िंदा किया है। सोहनी-महिवाल, सलीम-अनारकलि तथा रोमियो जुलियट की दास्तान का बयान हुआ है इस गीत में। १९६७ में बनी फ़िल्म 'हमराज़' बी. आर. चोपड़ा की एक मशहूर फ़िल्म रही है। फ़िल्म प्रदर्शित हुई थी १६ अक्टुबर के दिन। राज कुमार, सुनिल दत्त और विम्मी अभिनीत इस फ़िल्म के गीतों ने ख़ूब शोहरत पायी थी। रवि और साहिर की जोड़ी उन दिनों कामयाबी की ऊँचाइयाँ छू रही थी। यहाँ पर रवि जी से की गयी बातचीत का एक अंश प्रस्तुत करता हूँ जिसमें उन्होने साहिर साहब के सेन्स औफ़ ह्युमर के बारे में टिप्पणी की थी - "साहिर साहब बड़े ही सिम्पल किस्म के थे। वो गम्भीर से गम्भीर बात को भी बड़े आसानी से कह डालते थे। एक किस्सा आप को सुनाता हूँ। उन दिनों हम ज़्यादातर बी. आर. चोपड़ा की फ़िल्मों के लिए काम करते थे। तो शाम के वक़्त हम मिलते थे, बातें करते थे। तो एक दिन साहिर साहब ने अचानक कहा 'देश में इतने झंडे क्यों है? और अगर है भी तो उन सब में डंडे क्यों है?" यह सुनकर वहाँ मौजूद सभी ज़ोर से हँस पड़े।"

दोस्तों, आशा जी पर केन्द्रित इस शृंखला में शामिल हो रहे गीतों के बारे में जानकारी तो हम देते ही जा रहे हैं, साथ ही जहाँ तक संभव हो रहा है, हम आशा जी से जुड़ी बातें भी आप तक ज़्यादा से ज़्यादा पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं। आज क्योंकि महेन्द्र कपूर के साथ गाया हुआ आशा जी का गीत बज रहा है, तो क्यों न जान लें कि महेन्द्र कपूर ने आशा जी के बारे में विविध भारती को क्या कहा था।

प्र: आशा जी के साथ आप ने बहुत सारे गानें गाए हैं, तो उन से जुड़ी कोई ख़ास बात आप बताना चाहेंगे?

"आशा जी बहुत फ़्रैंक हैं, अगर कोई मिस्टेक हो जाए तो कहती हैं कि 'भ‍इया, इसको ऐसे नहीं, ऐसे गाओ, बहुत हेल्प करती थीं, दोनों बहनें, बहुत हेल्प करती थीं, हँसी मज़ाक भी करती थीं।"

प्र: गले के लिए आप किन चीज़ों से परहेज़ करते हैं?

"मैं तो सब खाता हूँ, चाट, मैने पहले भी बताया था, चौपाटी से, बांद्रा के ऐल्कोम मार्केट से मँगवा कर खाते हैं। चाट खाने के बाद गरम चाय पी लो तो फिर सब ठीक है, यह मुझे आशा दीदी ने बताया था।"

तो दोस्तों, आइए आप और हम मिल कर सुनते हैं प्यार करने वाले अमर प्रेमियों की दास्तान आशा भोंसले और महेन्द्र कपूर की आवाज़ों में।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. कल होंगें आशा के साथ तान मिलते अपने किशोर दा.
२. इस फिल्म के एक गीत में किशोर के लिए रफी साहब ने पार्श्वगायन किया था.
३. मुखड़े में दो प्रान्तों के लोगों को बुलाये जाने वाले नाम है....उनमें से एक मद्रास है...

पिछली पहेली का परिणाम -
रोहित जी २२ अंकों के साथ अब आप भी शीर्ष पर विराजमान हो गए हैं पराग जी के साथ....बधाई

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

फेसबुक-श्रोता यहाँ टिप्पणी करें
अन्य पाठक नीचे के लिंक से टिप्पणी करें-

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

10 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

वाह ! बहुत सालों बाद ये मज़ेदार गीत सुनने को मिलेगा ।

Anonymous का कहना है कि -

अरे! नई श्रृंखला

सॉरी, अस्वस्थ था
स्वभाविक है नेट से दूरी भी

कल से आऊँगा
पक्का

और हाँ!
ये शृंखला क्यों लिखा जा रहा?
श्रृंखला क्यों नहीं?

बी एस पाबला

Unknown का कहना है कि -

????
difficult.... very difficult :)
don´t know..... !!!!!

Unknown का कहना है कि -

अब कैसी तबियत है पाबला जी? बहुत दिनों बाद आपको यहाँ देख कर खुशी हो रही है.

Manju Gupta का कहना है कि -

अरे वाह !इन्तजार रहेगा

शरद तैलंग का कहना है कि -

मैं तो सोच रहा था कि अब तक किसी ने जवाब दे ही दिया होगा आजकल अदा जी तथा दिशा जी भी जाने कहाँ गायब हो गए । मैं तो समझता हूँ सुजोय चटर्जी जी ने ये गीत खुद के लिए ही छाँट कर रखा है । इस गाने की राग रागिनी तथा बोल भी कमाल के हैं ।

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

मैं बांगाली छोकरा , करूं प्यार को नोमस्कारम,
मैं मदरासी छोकरी , मुझे तुमसे प्यारम..

फ़िल्म रागिनी, ओ पी नैय्यर

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

अरे ये क्या, मैं हमेशा लेट आता हूं और आज क्या देखता हूं कि अभी तक मैदान खाली है. सोचा पहले विकेट ले लूं बाद में बतिया लेंगे.

सन १९५८ में बनी इस फ़िल्म रागिनी में ही रफ़ी साहब नें किशोर दा के लिये शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीत गाया था. मन मोरा बावरा...

वैसे फ़िल्म शरारत के लिये भी यही हुआ था. मगर एक दो गाने और भी हैं, है किसी को याद?

Shamikh Faraz का कहना है कि -

बहुत खूब दिलीप जी.

निर्मला कपिला का कहना है कि -

दो तीन दिम से इस गीत को याद कर रही थी बहुत बहुत धन्यवाद

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ

ओल्ड इज़ गोल्ड शृंखला

महफ़िल-ए-ग़ज़लः नई शृंखला की शुरूआत

भेंट-मुलाक़ात-Interviews

संडे स्पेशल

ताजा कहानी-पॉडकास्ट

ताज़ा पॉडकास्ट कवि सम्मेलन