ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 226
'दस राग दस रंग' शृंखला इन दिनों आप सुन रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के तहत, जिसमें हम आप को शास्त्रीय रागों पर आधारित फ़िल्मी गानें सुनवा रहे हैं। युं तो रागों पर आधारित बहुत सारे गानें हैं, उनमें से हमने कुछ ऐसे गीतों को शामिल किया है जिनमें संबंधित राग की झलक बहुत ही साफ़ साफ़ मिले। आज का राग है सारंग। ऐसी मान्यता है कि राग सारंग का नाम १४-वीं शताब्दी के संगीतज्ञ सारंगदेव के नाम से पड़ा था। राग सारंग के भी कई रूप हैं। अगर हम सिर्फ़ सारंग कहें तो उसका अर्थ होता है वृंदावनी सारंग, जो काफ़ी ठाट का एक सदस्य है। दिन के मध्य भाग में गाया जानेवाला यह राग बहुत ही शांत और कर्णप्रिय है। रागमाला में सारंग को सिरि राग का पुत्र माना जाता है। सारंग राग गुरु ग्रंथ साहिब में बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसका उपयोग गुरु अर्जन में विस्तृत होता है। गुरु नानक, गुरु अमरदास, गुरु रामदास और गुरु तेग बहादुर ने इस राग के साथ शब्दों का भी प्रयोग किया और गुरु अंगद ने श्लोकों के पाठ के लिए इस राग का इस्तेमाल किया। जैसा कि हमने कहा यह राग दोपहर के समय गाया जाने वाला राग है और इसलिए ज़ाहिर है कि यह राग श्रोताओं को एक सुकून और ठंडक प्रदान करता होगा। सपेरे लोग इसी राग का प्रयोग कर ज़हरीले साँपों को वश में किया करते हैं। राग सारंग के कई विविध रूप हैं, जो इस प्रकार हैं।
सध सारंग
मधमात सारंग
वृंदावनी सारंग
लंकादहन सारंग
मिया की सारंग
गौर सारंग
जलधर सारंग
सूरदासी सारंग
नूर सारंग
वधंस सारंग
राग सारंग पर आधारित जिस गीत को आज हमने चुना है वह दरअसल आधारित है राग मधमात सारंग पर, जिसे मधुमाधवी सारंग भी कहा जाता है। संगीतकार एस. एन. त्रिपाठी का शुमार उन प्रतिभाशाली संगीतकारों में होता है जिन्होने राग रागिनियों का व्यापक इस्तेमाल अपने गीत संगीत में किया है। पौराणिक, ऐतिहासिक और धार्मिक फ़िल्मों में असरदार संगीत दे कर ऐसी फ़िल्मों को एक अलग ही मुकाम तक पहुँचाने के लिए त्रिपाठी जी का नाम फ़िल्म जगत में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। उनकी संगीत यात्रा की एक बेहद महत्वपूर्ण फ़िल्म रही है 'रानी रूपमती'। मुकेश की आवाज़ में "आ लौट के आजा मेरे मीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं" ना केवल इस फ़िल्म का सब से लोकप्रिय गीत रहा है, बल्कि त्रिपाठी जी के करीयर के सब से कामयाब गीतों में से एक है और मुकेश के गाए हुए गीतों में भी इस गीत को एक ऊँची जगह दी जाती है। गीतकार भरत व्यास के लिखे इस गीत में अपने प्रेमिका से दूरी के दर्द का बयान हुआ है। एक तरफ़ मधमात सारंग की छटा, तो दूसरी तरफ़ मुकेश की दर्दभरी पुरसर अंदाज़, कुल मिलाकर फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने का एक अनमोल नगीना है यह गीत। गीत सुनवाने से पहले आपको यह बता दें कि 'रानी रूपमती' फ़िल्म एस. एन त्रिपाठी ने ही बनाई थी जो प्रदर्शित हुई सन् १९५९ में 'रविकला चित्र' के बैनर तले। त्रिपाठी जी के ही निर्देशन में इस फ़िल्म में मुख्य भूमिकाएँ निभाई भारत भूषण और निरुपा राय ने।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. दक्षिण की एक मशहूर गायिका जिन्हें 3 बार पार्श्व गायन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, उनकी आवाज़ है उस गीत में.
२. गुलज़ार साहब ने लिखा इस गीत को.
३. ये गीत आधारित है राग मिया मल्हार पर.
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी के अब १२ अंक हो चुके हैं...बधाई जनाब, पूर्वी जी फुर्ती दिखाईये, वर्ना शरद जी किसी को टिकने नहीं देंगें :)
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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8 श्रोताओं का कहना है :
बोले रे पपीहरा / फिल्म गुड्डी / वाणी जयराम
bole re papihara
BOL RE PAPIHARA
ROHIT RAJPUT
sharad ji pahunch gaye :) :)
sharad ji,
ab 50 ank poore karne men mujhe sirf 4 hi episode chahiye, bas itne ank le lene dijiye, fir aapke liye maidan khali chhod dungi :)
ab maan bhi jaaiye :) :)
बढिया गीत सुनवाने ले लिये धन्यवाद.
ये शृंखला तो बेहद ही रोचक, कर्णप्रिय , और सुरीली होने के साथ informative भी है. रागों के बारे में जो भी जानकारी है, वह आम श्रोता के लिये काफ़ी है, और उपयुक्त भी है.
मेरी पोस्ट का लिंक देना रह गया था. मुझे लगता है, कि मेरे नाम पर डबल क्लिक करके वहां पहुंचा जा सकता है.
वैसे उस पोस्ट का लिंक है-
http://dilipkawathekar.blogspot.com/2009/09/blog-post_22.html
मेरी टिप्पणीयों को महत्व देने के लिये धन्यवाद.
वैसे शरद जी से अपेक्षा रहेगी कि वे पूर्वीजी के लिये मार्ग प्रशस्त करें. वैसे वे स्वयं एक सिद्धहस्त गायक है, कलाकार हैं, इसलिये इन मूल्यों को जानते हैं , कि लेने से देना अधिक श्रेयस्कर है.
ये गीत मुझे बहुत पसंद है .आप जो भी जानकारी रगों के बारे में देते हैं बहुत अच्छे तरीके से लिखते है .बहुत रोचक लगता है
आप को बधाई हो
सादर
रचना
बहुत ही सुन्दर गीत.
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