ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 219
गीतकार शैलेन्द्र, संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन और गायिका लता मंगेशकर की जब एक साथ बात चलती है तो इतने सारे मशहूर, हिट और शानदार गीत एक के बाद एक ज़हन में आते जाते हैं कि जिनका कोई अंत नहीं। चाहे राज कपूर की फ़िल्मों के गानें हों या किसी और फ़िल्मकार के, इस टीम ने 'बरसात' से जो सुरीली बरसात शुरु की थी उसकी मोतियों जैसी बूँदें हमें आज तक भीगो रही है। लेकिन ऐसे बेशुमार हिट गीतों के बीच बहुत से ऐसे गीत भी समय समय पर बने हैं जो उतनी ज़्यादा लोकप्रिय नहीं हुए और इन हिट गीतों की चमक धमक में इनकी मंद ज्योति कहीं गुम हो गई, खो गई, लोगों ने भुला दिया, समय ने उन पर पर्दा डाल दिया। ऐसा ही एक गीत आज के अंक में सुनिए। फ़िल्म 'औरत' का यह गीत है "दर्द-ए-उल्फ़त छुपाऊँ कहाँ, दिल की दुनिया बसाऊँ कहाँ"। बड़ा ही ख़ुशरंग और ख़ुशमिज़ाज गीत है यह जिसमें है पहले पहले प्यार की बचैनी और मीठे मीठे दर्द का ज़िक्र है। मज़ेदार बात यह है कि बिल्कुल इसी तरह का गीत शंकर जयकिशन ने अपनी पहली ही फ़िल्म 'बरसात' में लता जी से गवाया था। याद है न आपको हसरत साहब का लिखा "मुझे किसी से प्यार हो गया"? बस, बिल्कुल उसी अंदाज़ का गीत है, फ़र्क बस इतना कि इस बार शैलेन्द्र साहब है यहाँ गीतकार. एक और मज़ेदार बात यह कि इसी फ़िल्म 'औरत' में हसरत जयपुरी साहब ने भी लता जी से पहले प्यार पर आधारित एक गीत गवाया था "नैनों से नैन हुए चार आज मेरा दिल आ गया, अरमान पे छायी है बहार आज मेरा दिल आ गया"। इसी साल १९५३ में फ़िल्म 'आस' में एक बार फिर शैलेन्द्र और शंकर जयकिशन ने लता जी से गवाया "मैं हूँ तेरे सपनों की रानी तूने मुझे पहचाना ना, हरदम तेरे दिल में रही मैं फिर भी रहा तू अंजाना"। फ़िल्म 'औरत' बनी थी सन् १९५३ में 'वर्मा फ़िल्म्स' के बैनर तले। बी. वर्मा निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे बीना राय और प्रेमनाथ। लता जी के गाए कुछ गीतों का ज़िक्र हमने अभी किया, लेकिन एक और ज़रूरी बात यह भी कि फ़िल्म 'औरत' का शीर्षक गीत लता जी से नहीं बल्कि आशा जी से गवाया गया था, जिसके बोल थे "लोग औरत को फोकट जिस्म समझते हैं"। महबूब ख़ान ने 'औरत' शीर्षक से सन् १९४० में एक फ़िल्म बनाई और उसी का रीमेक बनाया 'मदर इंडिया' के नाम से जिसे हिंदी सिनेमा का एक मील का पत्थर माना जाता है।
दोस्तों, लता जी और ख़ास कर जयकिशन जी की आपस में अच्छी दोस्ती थी, और दोनों एक दूसरे से ख़ूब झगड़ते भी थे, नोक झोक चलती ही रहती थी। उन्ही दिनों को और जयकिशन जी को याद करते हुए लता जी ने अमीन सायानी साहब के उस इंटरव्यू में क्या कहा था, आइए आज के इस अंक में उसी पर नज़र डालते हैं। "जयकिशन और मैं, हम दोनो हम-उम्र थे। बस ६ महीनों का फ़र्क था हम दोनों में। 'बरसात' और 'नगिना' जैसी फ़िल्मों के बाद हम लोगों का एक बड़ा मज़ेदार ग्रूप बन गया था। हम लोग यानी शंकर साहब, शैलेन्द्र जी, हसरत साहब, मुकेश भइया। हम सब एक साथ काम भी करते, घूमने भी जाते, तर्ज़ें भी डिस्कस करते, और कभी कभी बहुत झगड़े भी होते थे। बस छोटी छोटी बातों पर, ख़ास तौर पर जयकिशन के साथ। कभी मैं उनकी धुन की बुराई करती तो कभी वो मेरी आवाज़ पर कोई जुमला कर देते। और इस तरह जब ठनती तो दिनों तक ठनी रहती। मुझे याद है, मैने एक बार झुंझलाकर उससे कह दिया कि जाओ, अब मैं तुम्हारे लिए नहीं गाती, किसी और से गवा लेना, यह कह कर मैं चल दी अपने घर। घर पहुँचकर मैं भी पछताई और वो भी पछताए। लेकिन दोनों ही अड़े रहे। फिर शैलेन्द्र और शंकर भाई उन्हे पकड़कर मेरे घर ले आए। और बस फिर दोस्ती वैसी की वैसी।" तो दोस्तों, आइए सुनते हैं आज का यह गीत और एक बार फिर से शुक्रिया अदा करते हैं अजय देशपाण्डे जी का जिनके सहयोग से लता जी के गाए ये तमाम दुर्लभ नग़में हमें प्राप्त हुए।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. अनिल बिस्वास के लिए गाया लता ने ये दुर्लभ गीत.
२. कैफ भोपाली के लिखे इस गीत को बूझ कर ३ अंक पाने के है आज आखिरी मौका.
३. मुखड़े में शब्द है -"कश्ती".
पिछली पहेली का परिणाम -
पूर्वी जी बधाई हो..३ अंक और आपके खाते में हैं.....आपका स्कोर है ३७, अब आप सबसे आगे हैं अंकों के मामले में ...बधाई...
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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6 श्रोताओं का कहना है :
allaah bhii hai mallaah bhii hai
allaah bhii hai mallaah bhii hai
kashtii hai kii Duubii jaatii hai
allaah bhii hai mallaah bhii hai
film- maan 1954
फिल्म : मान 1954
अल्लाह भी है मल्लाह भी है
अल्लाह भी है मल्लाह भी है
कश्ती है कि डूबी जाती है
अल्लाह भी है मल्लाह भी है
हम डूब तो जाएंगे लेकिन
दोनों ही पे तोहमत आती है
अल्लाह भी है मल्लाह भी है
इक शमा घिरी है आंधी में
बुझती भी नही जलती भी नही
शमशीर -ए -मोहब्बत क्या कहिये
रुकती भी नही चलती भी नही
मजबूर मोहब्बत रह रह कर
हर सांस ठोकर खाती है
अल्लाह भी है मल्लाह भी है
एक ख्वाब नज़र सा आया था
कुछ देख लिया कुछ टूट गया
एक तीर जिगर पर खाया था
कुछ डूब गया कुछ टूट गया
कुछ डूब गया कुछ टूट गया
क्या मौत की आमद आमद है
क्या मौत की आमद आमद है
क्यूँ नींद सी आयी जाती है
अल्लाह भी है मल्लाह भी है
बधाई पूर्वी जी
आजकल आप समय पर आकर बाज़ी मार ले जातीं है । जल्दी ही आप भी विजयी होने के क़रीब आ रहीं हैं ।
hamesha kee tarah laajavaab geet badhaaI aur dhanyavaad
पूर्वी जी बधाई और मिठाई .
पूर्वी जी को मुबारकबाद.
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