ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 239
कल हमने बात की थी हेमन्त कुमार के निजी बैनर 'गीतांजली पिक्चर्स' के तले बनी फ़िल्म 'ख़ामोशी' की। हेमन्त दा के इस बैनर तले बनी फ़िल्मों और उनके मीठे संगीत का ही शायद यह असर है कि एक गीत से दिल ही नहीं भरता इसलिए आज हम एक बार फिर सुनने जा रहे हैं उनके इसी बैनर तले निर्मित फ़िल्म 'कोहरा' से एक और गीत, इससे पहले इस फ़िल्म का हेमन्त दा का ही गाया "ये नयन डरे डरे" आप इस महफ़िल में सुन चुके हैं। आज इस फ़िल्म से सुनिए लता मंगेशकर की आवाज़ में "ओ बेक़रार दिल हो चुका है मुझको आँसुओं से प्यार"। 'बीस साल बाद' और 'कोहरा' हेमन्त दा के इस बैनर की दो उल्लेखनीय सस्पेन्स फ़िल्में रहीं। आइए आज 'कोहरा' की कहानी आपको बताई जाए। अपने पिता के मौत के बाद राजेश्वरी अनाथ हो जाती है, और बोझ बन जाती है एक विधवा पर जो माँ है एक ऐसे बेटे रमेश की जिसकी मानसिक हालत ठीक नहीं। उस औरत का यह मानना है कि अगर राजेश्वरी रमेश से शादी कर ले तो वो ठीक हो जाएगा। लेकिन राजेश्वरी को कतई मंज़ूर नहीं कि वो उस पागल से शादी करे, इसलिए वो आत्महत्या करने निकल पड़ती है। लेकिन संयोगवश उसकी मुलाक़ात हो जाती है राजा अमित कुमार सिंह से। दोनों मिलते हैं, उन्हे एक दूजे से प्यार हो जाता है, और फिर वे शादी कर लेते हैं। राजेश्वरी का राजमहल में स्वागत होता है। इस ख़ुशी को अभी तक वो हज़म भी नहीं कर पायी थी कि उसे पता चलता है कि अमित की पूनम नाम की किसी लड़की से एक बार शादी हुई थी जो अब इस दुनिया में नहीं है। और तभी शुरु होता है डर! राजेश्वरी को महसूस होता है कि पूनम की आत्मा अब भी महल में मौजूद है। ख़ास कर उनके शयन कक्ष में जहाँ वो देखती है कि कुर्सियाँ ख़ुद ब ख़ुद हिल रहीं हैं, बिस्तर पर बैठते ही लगता है कि जैसे अभी कोई लेटा हुआ था वहाँ, खिड़कियाँ अपने आप ही खुल जाया करती हैं, और उसे किसी की आवाज़ भी सुनाई देती है। और फिर एक दिन पुलिस बरामद करती है पूनम का कंकाल!!! किसने कत्ल किया था पूनम का? क्या अमित ही ख़ूनी है? क्या वाक़ई पूनम की आत्मा भटक रही है हवेली में? अब क्या होगा राजेश्वरी का? यही थी कोहरा की कहानी, जो अपने ज़माने की एक मशहूर सस्पेन्स थ्रिलर रही। कभी मौका मिले तो ज़रूर देखिएगा दोस्तों, इसीलिए मैनें क्लाइमैक्स नहीं बताई। "झूम झूम ढलती रात" इस फ़िल्म का सस्पेन्स सॊंग् है, ठीक वैसे ही जैसे कि 'बीस साल बाद' का गीत था "कहीं दीप जले कहीं दिल"।
'कोहरा' फ़िल्म के क्रीएटिव टीम के बारे में तो हम आपको उसी दिन बता चुके थे जिस दिन "ये नयन डरे डरे" सुनवाया था। तो क्यों ना आज इस फ़िल्म के गीतकार शक़ील बदायूनी के बारे में कुछ कहा जाए। युं तो शक़ील साहब ने ज़्यादातर संगीतकार नौशाद साहब के लिए ही गीत लिखे, लेकिन दूसरे संगीतकारों के लिए लिखे उनके गानें भी उतने ही मक़बूल हुए थे। उन संगीतकारों में से कुछ नाम शक़ील साहब ने ख़ुद बताए थे अमीन सायानी के एक पुराने इंटरव्यू में जो रिकार्ड हुआ था १९६९ में, जब अमीन भाई ने उनसे पूछा था कि उनकी ज़बरदस्त कामयाबी का सब से ख़ास, सब से अहम राज़ क्या है। शक़ील साहब का जवाब था - "सन्'४६ का गीतकार होकर आज सन्'६९ में भी वही दर्जा हासिल किए हुए हूँ, इसका राज़ इसके सिवा कुछ नहीं अमीन साहब कि मैने हमेशा क्वांटिटी के मुक़ाबले क्वालिटी पर ज़्यादा ध्यान दिया। हालाँकि इस बात से मुझे कुछ माली क़ुरबानियाँ भी करनी पड़ी, मगर मेरा ज़मीर मुतमईन है कि मैने फ़िल्म इंडस्ट्री की ज़्यादा से ज़्यादा ख़िदमत की है, और मुझे फ़क्र है मैने बड़े बड़े पुराने संगीतकारों यानी कि खेमचंद प्रकाश, श्यामसुंदर, ग़ुलाम मोहम्मद, ख़ुर्शीद अनवर, सी. रामचन्द्र, सज्जाद, और नौशाद से लेकर रवि, हेमंत कुमार, कल्याणजी, एस. डी. बर्मन, सोनिक ओमी तक के साथ काम किया।" दोस्तों, आइए सुनते हैं आज का गीत "ओ बेक़रार दिल" आपको यह बताते हुए कि इस गीत का एक बंगला संस्करण भी है जिसे हेमन्त दा ने ही गाया था, गीत के बोल हैं "ओ नोदी रे, एकटी कौथा शुधाई शुधु तोमारे, बोलो कोथाय तोमार देश, तोमार नेइ कि कोनो शेष", जिसके अर्थ हैं "ओ नदी, मैं तुमसे एक ही सवाल पूछती हूँ कि बताओ कहाँ है तुम्हारा देश, और क्या तुम्हारा कोई अंत (शेष) नहीं?" यह गीत बंगला में नदी पर बनने वाला सब से मशहूर गीत रहा है।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (पहले तीन गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी और पूर्वी एस जी)"गेस्ट होस्ट". चूँकि कल जो गीत हम सुनेंगें उसकी पहेली पहले ही पूछी जा चुकी है तो कल के लिए एक ख़ास सवाल. कल ओल्ड इस गोल्ड के २४० एपिसोड पूरे हो जायेंगें, सवाल ये है कि इन २५० गीतों में हमने किस गीतकार के गीत सबसे ज्यादा सुने हैं इस शृंखला में. सुविधा के लिए हम आपको चार विकल्प दे रहे हैं, सही जवाब आपको देगा एक बाउंड्री यानी ४ अंक...जो आपका पहला जवाब होगा वही अंतिम होगा, आप विकल्प बदल नहीं सकेंगें. विकल्प हैं -
1. मजरूह सुल्तानपुरी
2. साहिर लुधियानवीं
3. शकील बदायुनीं
4. शैलेन्द्र
पिछली पहेली का परिणाम -
पूर्वी जी की शानदार सफलता के बाद एक गहरी "खामोशी" छाई रही कल, और पहेली का "कोहरा" बना रहा, मनु जी आवारा तो कोई सस्पेंस थ्रिलर नहीं है :), खैर सही गीत तो अब आप जान ही चुके होंगें. वैसे इतना मशहूर गीत आप लोगों याद क्यों नहीं आया, ताज्जुब है.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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5 श्रोताओं का कहना है :
सुजॉय जी आपने गीतकार शकील साहब का नाम दिया था सूत्र के रूप में, और कोहरा का गीत लिखा था कैफी साहब ने.
आज की पहेली का जवाब है मजरूह सुल्तानपुरी साहब
shailendra
ye geet mujhko bahu bahut pasand hai sun ke aanand huaa
saader
rachana
मैनें कोहरा के गीत ’ ओ बेकरार दिल’ का जवाब २२ तारीख को दिन में २.१९ पर दे दिया था । यह जानकारी नहीं है कि आप कितने बजे तक के जवाब को सम्मिलित करते हैं ।
maafi chaahunga, Bees Saal Baad aur Kohra mein confusion ho gaya. geetkaar Kaifi saahab hi hain.
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