ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 246
'जिन पर नाज़ है हिंद को' शृंखला इन दिनों आप सुन रहे हैं जिसके अंतर्गत हम आपको साहिर लुधियानवी के लिखे कुछ ऐसे गानें सुनवा रहे हैं जिन्हे सचिन देव बर्मन ने संगीतबद्ध किए हैं। युं तो इस जोड़ी ने बहुत सारे लाजवाब गीत हमें दिए हैं, लेकिन हमने उस ख़ज़ाने में से १० मोतियों को चुन लाए हैं, और हमें उम्मीद है कि आपको हमारे चुने हुए ये गानें पसंद आ रहे होंगे। आज की कड़ी के लिए हमने चुना है मन्ना डे और गीता दत्त का गाया एक भक्ति मूलक रचना। ये भजन है १९५५ की फ़िल्म 'देवदास' का "आन मिलो आन मिलो श्याम साँवरे आन मिलो, बृज में अकेली राधे खोई खोई सी रे"। 'देवदास' फ़िल्म से जुड़ी तमाम बातें हमने आपको उस दिन बताई थी जिस दिन हमने आपको इस फ़िल्म से लता जी का गाया "जिसे तू क़बूल कर ले वो अदा कहाँ से लाऊँ" सुनवाया था। बंगाल की पृष्ठभूमि पर आधारित पीरियड फ़िल्म होने की वजह से इस फ़िल्म के गीत संगीत में उसी पुराने बंगाल को जीवित करना था। ऊर्दू के शायर होते हुए भी साहिर साहब ने जो न्याय इस फ़िल्म के गीतों के साथ किया है, इस फ़िल्म के गीतों को सुनकर कभी ऐसा नहीं महसूस हुआ कि काश इन गीतों को फ़लाने गीतकार ने लिखा होता! और सचिन दा ने तो बंगाल के लोक संगीत की ऐसी छटा बिखेरी, कीर्तन, भटियाली और बाउल शैली के संगीत को मिलाकर बंगाल को संगीत के द्वारा पर्दे पर ज़िंदा कर दिया। मन्ना डे और गीता दत्त का गाया प्रस्तुत गीत भी इसी तरह के बंगाली लोक संगीत पर आधारित है।
यह गीत सचिन देव बर्मन की ज़िंदगी से इस तरह से जुड़ा हुआ है कि यह एक बेहद महत्वपूर्ण रचना है उनकी करीयर का। क्या आपको पता है कि जिस लोक धुन से प्रेरीत होकर उन्होने इस गीत की रचना की थी, उसी लोक धुन से उन्होने अपना 'जयमाला' कार्यक्रम शुरु किया था और कार्यक्रम का समापन भी इसी धुन के ज़िक्र से किया था। विविध भारती के उस कार्यक्रम की शुरुआत दादा ने कुछ इस तरह से की थी - "फ़ौजी भाइयों, आप सभी को सचिन देव बर्मन का नमस्कार! मैं जब बहुत छोटा था तब त्रिपुरा के गाँव में एक बूढ़े किसान को गाते हुए सुनता था, "रोंगीला रोंगीला रोंगीला रे, रोंगीला"। जैसे जैसे मैं बड़ा हुआ यह गीत भी मेरे साथ जवान होता गया। मेरी जो संगीत में रुचि है वह इसी गाने को सुनकर पैदा हुई थी।" दोस्तों, ये जो "रोंगीला रोंगीला" की धुन थी, वही धुन बनी "आन मिलो आन मिलो" की। और अब जान लीजिए कि बर्मन दादा ने उस कार्यक्रम का समापन कैसे किया था - "मेरी गीतों में जो लोक संगीत झलकती है, उसे मैने अपने गाँव के बूढ़े किसानों से सीखा है और शास्त्रीय संगीत अल्लाउद्दिन ख़ान साहब से सीखा है। मैं सब से ज़्यादा प्यार अपनी मिट्टी को करता हूँ, और संगीत मेरा शौक है। अब मैं फिर से उस गाँव को लौट जाता हूँ जहाँ पर वह बूढ़ा किसान गा रहा था "रोंगीला रोंगीला रोगीला रे, रोंगीला"।" तो दोस्तों, देखा आपने, किस तरह से जुड़ा हुआ है "आन मिलो श्याम साँवरे" का संगीत त्रिपुरा के उस सुदूर गाँव की धरती से। एक और उल्लेखनीय बात की इसी संगीत का इस्तेमाल राहुल देव बर्मन ने किया था अपनी अंतिम फ़िल्म '१९४२ ए लव स्टोरी' के गीत "कुछ ना कहो" के प्रील्युड म्युज़िक में। ज़रा याद तो कीजिए! तो सुनिए आज का यह गीत और खो जाइए भक्ति रस के महासागर में मन्ना दा और गीता जी की आवाज़ों के साथ। इन दो गायकों की आवाज़ों से वो भक्ति रस झड़े हैं इस गीत में कि सुननेवालों के मन ख़ुद ब ख़ुद पवित्र हो जाए।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (पहले तीन गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी और पूर्वी एस जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. बर्मन दा का एक और अमर गीत.
२. साहिर के लिखे इस गीत का फिल्म में एक से अधिक बार इस्तेमाल हुआ है.
३. एक अंतरे की दूसरी पंक्ति ने शब्द है -"ख्यालों".
पिछली पहेली का परिणाम-
रोहित जी ३५ अंक हुए आपके बधाई, आखिर आपने गीत बूझ ही लिया, मुरारी जी बहुत दिनों बाद आये शायद इसीलिए चूक गए, कल वेटरन शरद जी और पराग जी नहीं दिखे पर मनु जी, दिलीप जी, निर्मला जी सब की हजारी लगी...अच्छा लगा.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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10 श्रोताओं का कहना है :
यह रात यह चाँदनी फिर कहा - फिल्म जाल
पराग जी बधाई ।
पेडों की शाखॊं पे खोई खोई चाँदनी
तेरे ख्यालों में खोई खोई चाँदनी
paraag ji sahi farmayaa !!!
lataa aur hemant ki aawaz me
जबाब तो आ ही गया . आन मिलो.....मेरा बहुत ही पसंदीदा .वैसे देवदास का सभी कुछ लाजबाब था .
गीत सुन प्रफुल्लित हुए.
badhai paraag ji.
bahut samay baad yeh geet sunkar bada achchha lag raha hai. shukriya sujoy ji. :)
बधाई के लिए सभी का धन्यवाद. आज का गीत "आन मिलो आन मिलो" और पहेली का गीत "ये रात ये चाँदनी" दोनों बिलकुल अलग स्वभाव के गीत है, मगर बर्मनदा और साहिर साहब ने कितनी आसानीसे इन्हें बनाया है.
पराग
बहुत सुंदर रचना सुनाई आप ने ,धन्यवाद
मैं पिछले कई दिनों से ये गाना ढूंढ रही थी पर असफल ही रही....हिंद-युग्म का आभार कि ये मीठा गीत सुनवा दिया....आप सभी को तहे- दिल से शुक्रिया...
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