Monday, October 26, 2009

टिप टिप टिप... देख के अकेली मोहे बरखा सताए...गीता दत्त का चुलबुला अंदाज़ खिला साहिर-सचिन दा की जोड़ी संग



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 243

साहिर लुधियानवी और सचिन देव बर्मन की जोड़ी को सलाम करते हुए हमने शुरु की है यह विशेष शृंखला 'जिन पर नाज़ है हिंद को'। पहली कड़ी में आप ने इस जोड़ी की पहली फ़िल्म 'नौजवान' का गीत सुना था जो बनी थी सन् '५१ में; फिर दूसरी कड़ी में १९५५ की फ़िल्म 'मुनीमजी' का एक गीत सुना। आज इसकी तीसरी कड़ी में एक बार फिर से हम चलेंगे सन् १९५१ की ही तरफ़ और सुनेंगे फ़िल्म 'बाज़ी' का एक बड़ा ही चुलबुला सा गीत गीता रॉय और सखियों की आवाज़ों में। फ़िल्म संगीत के हर युग में बरसात पर, सावन पर असंख्य गानें लिखे गए हैं, जिनमें से अधिकतर काफ़ी लोकप्रिय भी हुए हैं। आज का गीत भी बरखा रानी को ही समर्पित है। लेकिन यह गीत दूसरे गीतों से बहुत अलग है। "देख के अकेली मोहे बरखा सताए, गालों को चूमे कभी छींटें उड़ाए रे, टिप टिप टिप टिप टिप"। टिप टिप बरसते हुए पानी को शरारती क़रार दिया है साहिर साहब ने इस गीत में। किसी सुंदर कमसिन लड़की को देख कर किस तरह से बरखा रानी उसे छेड़ती है, यही भाव है इस गीत का। सचिन दा ने इस शरारती और चुलबुली अंदाज़ वाले इस गीत का संगीत कुछ इस तरह से तैयार किया है, इसका संयोजन ऐसा किया है कि गीत सुनने के बाद बहुत देर तक गीत ज़हन में रहता है, और मन ही मन हम इसे गुनगुनाते रहते हैं। और गीता जी की आवाज़ में जो शोख़ी, जो चुलबुलापन था, उसके तो क्या कहने! जिस तरह से वो गीत में बार बार "उई" कहती हैं, बड़ा ही चंचल और शोख़ अंदाज़ है, जिसे सुनकर हमारे होठों पर मुस्कान आ ही जाती है। और जो न्याय गीता जी ने इस गीत के साथ किया है, उनके गाने के बाद फिर किसी और गायिका की आवाज़ में इस गीत की कल्पना करना भी निरर्थक है। गीत के शुरुआती संगीत में जिस तरह से बरसात की बरसती बूंदों को "टिप टिप" शब्दों और उससे मेल खाती ध्वनिओं से साकार किया है, उससे गीत बेहद आकर्षक और मनमोहक बन पड़ा है। साहिर जैसे संजीदे शायर के कलम से इस तरह का नटखट गीत हमें हैरत में डाल देती है कि क्या ये उसी मोहब्बत में नाक़ाम, ज़िंदगी से परेशान, बाग़ी शायर ने लिखा है!

आइए अब इस फ़िल्म 'बाज़ी' से जुड़ी कुछ बातें आपको बताई जाए। १९४९ में नवकेतन की पहली प्रस्तुति 'अफ़सर' पिट गई थी, हालाँकि उसका गीत संगीत अच्छा चला था। गुरु दत्त, जो उस समय प्रभात स्टुडियो से जुड़े हुए थे, वो देव आनंद साहब के भी अच्छे मित्र थे। गुरु दत्त तब तक अमिय चक्रबर्ती को 'गर्ल स्कूल' (१९४९) और ज्ञान मुखर्जी को 'संग्राम' (१९५०) में ऐसिस्ट कर चुके थे। १९५१ में देव साहब ने उन्हे नवकेतन की फ़िल्म 'बाज़ी' को स्वाधीन रूप से निर्देशित करने का मौका दिया और इस तरह से गुरु दत्त ने अपनी पहली फ़िल्म निर्देशित की। देव आनंद, गीता बाली, कल्पना कार्तिक, के. एन. सिंह व जॉनी वाकर अभिनीत इस हिट फ़िल्म में साहिर और बर्मन दादा ने एक से एक हिट गीत दिए जो आज सदाबहार नग़मों में अपना नाम दर्ज कर चुके हैं। फ़िल्म 'बाज़ी' इसलिए भी यादगार है क्योंकि इस फ़िल्म की शूटिंग् के दौरान दो प्रेम कहानियों का जन्म हुआ था। एक गुरु दत्त और गीता राय के बीच, और दूसरा देव आनंद और कल्पना कार्तिक के बीच। गीता रॊय ने इस फ़िल्म में अपने करीयर के कुछ बेहद मक़बूल गीत गाए हैं, जैसे कि "सुनो गजर क्या गाए", "तदबीर से बिगड़ी हुई तक़दीर बना ले", "ये कौन आया के मेरे दिल की दुनिया में बहार आई", और "आज की रात पिया दिल ना तोड़ो"। आज का प्रस्तुत गीत भी उतना ही प्यारा है जितना कि ये तमाम गीत, लेकिन इस गीत को आज उतना नहीं सुना जाता जितना कि दूसरे गीतों को सुना जाता है। एक और कमचर्चित गीत है "लाख ज़माने वाले डाले दिलों पे ताले"। गीता जी को उन दिनों ज़्यादातर धार्मिक और उदास गानें ही मिला करते थे। ऐसा लग रहा था लोगों को कि उनकी आवाज़ को इसी खांचे में कैद कर ली जाएगी। लेकिन बर्मन दादा ने इसको ग़लत साबित करते हुए उनसे कुछ ऐसे सेन्सुयस और नशीले गीत गवाए कि सब दंग रह गए। कहाँ एक तरफ़ वेदना भरी आवाज़ लिए भक्ति रचनाएँ और कहाँ क्लब सॊंग्स् गाती हुई मदमस्त आवाज़-ओ-अंदाज़ की धनी एक चुलबुली शोख़ गायिका। यहाँ पर अगर हम नय्यर साहब का नाम नहीं लेंगे तो ग़लत बात होगी क्योंकि उन्होने भी गीता जी की इसी अंदाज़ को बाहर निकालने में मुख्य भूमिका निभाई थी। तो दोस्तों, पेश है साहिर साहब, बर्मन दादा और गीता रॉय के नाम आज का यह मस्ती भरा नग़मा। सावन का महीना तो निकल गया, लेकिन हमें पूरा यक़ीन है कि इस गीत में टिप टिप बरसते हुए पानी को आप दिल से महसूस करेंगे क्योंकि इन तीनों कलाकारों ने बरसते हुए पानी के नज़ारे को एकदम जीवंत कर दिया है इस गीत में, सुनिए...



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (पहले तीन गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी और पूर्वी एस जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. इस फिल्म में ये इकलौता गीत था जो साहिर ने लिखा.
२. संगीत बर्मन दा का है.
३. मुखड़े में शब्द है -"तन्हा".

पिछली पहेली का परिणाम -

शरद जी अब तो रोके रुकते नज़र नहीं आते, लगता है पराग जी को अपने ४ अंक लेने भी भारी पड़ जायेंगें, अवध जी हम भी आपकी तरह शरद जी के कायल हैं, सुब्रमनियन जी आपकी यादें ताजा हुई, हमें भी आनंद आया :)

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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5 श्रोताओं का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

jis din der se aata hoon us din sawaal aasan rehta hai, jis din jaldi aata hoon us din sawaal mushkil hota hai. ab 50 ank tak pahuchu to pahuchu kaise?

ROHIT RAJPUT

शरद तैलंग का कहना है कि -

तुम न जाने किस जहाँ में खो गए
हम भरी दुनिया में तन्हा हो गए ।
फ़िल्म : सज़ा
गायिका : लता जी

शरद तैलंग का कहना है कि -

तुम न जाने किस जहाँ में खो गए
हम भरी दुनिया में तन्हा हो गए ।

मौत भी आती नहीं , आस भी जाती नही
दिल को ये क्या हो गया ,कोई शै भाती नहीं
लूट कर मेरा जहाँ , छुप गए हो तुम कहाँ
तुम कहाँ, तुम कहाँ ,तुम कहाँ ।

एक जाँ और लाख गम , घुट के रह जाए न दम
आओ तुम को देख ले , डूबती नज़रों से हम
लूट कर मेरा जहाँ , छुप गए हो तुम कहाँ
तुम कहाँ, तुम कहाँ ,तुम कहाँ ।

neelam का कहना है कि -

bahut hi umda geet hai ,hume bhi intjaar hai sunne ka .......tum n jaane kis jahaan me kho gaye

Parag का कहना है कि -

आज का गीत "देख के अकेली मोहे " की धुन आधारीत है एक सुपरहिट गुजराती गाने से "तालियों ना ताले" जिसे बनाया था अविनाश व्यास साहब ने फिल्म मंगल फेरा के लिए.
शरद जी को हार्दिक बधाईया

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