Saturday, October 10, 2009

तू चंदा मैं चांदनी.....शब्द संगीत और आवाज़ का अद्भुत संगम



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 228

"जब मेरे देश की जनता युद्ध में जाते थे लड़ने के लिए अपने उस राजा की ख़ातिर जिसे शायद उन लोगों ने कभी देखा भी नहीं होगा, तब मैने उनके कुशलता की कामना की और युद्ध जीत कर जब वे वापस आए तो मैने ही उनका स्वागत किया। जब सावन की पहली बौछार इस सूखी धरती पर पड़ी और गन्ने की कोमल कोपलें मिट्टी से बाहर झाँकने लगीं सूरज को ढ़ूढते हुए, उस समय भी मैं ही वहाँ मौजूद था। मेरा नाम है मांड।" जी हाँ दोस्तों, मांड ही वह राग है जो शास्त्रीय होते हुए भी लोक धुनों में अपना परिचय खोजता है। यह मिट्टी से जुड़ा हुआ राग है, ख़ास कर के राजस्थान की मिट्टी से जुड़ा हुआ है मांड। तभी तो जब भी कभी राजस्थान के पार्श्व पर किसी फ़िल्म का निर्माण हुआ है, उन फ़िल्मों के संगीतकारों ने इस राग का भरपूर फ़ायदा उठाया है। मांड का सब से सुपरिचित उदाहरण है "केसरिया बालमा ओ जी", जिसे अलग अलग अंदाज़ में कई संगीतकारों ने अपने फ़िल्मों में जगह दी है। हृदयनाथ मंगेशकर ने फ़िल्म 'लेकिन' में लता जी से इसे गवाया था "केसरिया बालमा ओ जी, के तुमसे लागे नैन", और हाल ही में 'नन्हा जयसल्मेर' फ़िल्म में हिमेश रेशम्मिया के संगीत में जयेश गांधी और सोनू निगम ने गाया था "केसरिया बालमा ओ जी, पधारो म्हारे देस" जिसमें मांड और पाश्चात्य रीदम का फ़्युज़न किया गया था। राजस्थान की मिट्टी की ख़ुशबू है इस राग में, जिसे सुनते ही मन जैसे पंख लगाकर उड़ जाता है उस रंगीले सरज़मीन पर, मरुभूमी पर ऊँटों की चलती कतारें, रंग बिरंगी पगड़ियाँ सर पर बांधे वहाँ के सजीले लोग, बंजारों का सुरीला संगीत, मुँह में पानी लाता वहाँ का स्वादिष्ट खानपान, कुल मिलाकर इन सभी चीज़ों की एक झलक दिखा जाती है राग मांड। युं तो इस राग का प्रयोग ज़्यादातर राजस्थानी लोक संगीत पर बने गीतों में किया गया है, लेकिन सचिन देव बर्मन ने इस राग का इस्तेमाल फ़िल्म 'अभिमान' के उस हिट गीत में भी किया था, याद है ना आपको, "अब तो है तुमसे हर ख़ुशी अपनी"? लेकिन आज हम जिस गीत को सुनने जा रहे हैं वह है जयदेव की धुन पर बालकवि बैरागी के बोल, लता जी का गाया फ़िल्म 'रेशमा और शेरा' का गीत "तू चंदा मैं चाँदनी तू तरुवर मै शाख रे, तू बादल मैं बिजली, तु पंछी मैं प्यास रे"। यह बिल्कुल सच बात है कि जब भी साहित्य जगत के कवियों ने फ़िल्मों में गानें लिखे हैं, हर बार एक अलग ही मुकाम तक पहुँचाया है उन गीतों को। बैरागी जी का लिखा यह गीत फ़िल्मी गीतकारों के लिए किसी बाइबल से कम नहीं। शब्दों की ख़ूबसूरती किसे कहते हैं बैरागी जी ने इस गीत में दिखाया है। और लता जी की आवाज़ की क्या तारीफ़ भला, ख़ुद तारीफ़ ही शर्मा जाए ऐसी आवाज़-ओ-अंदाज़ को सुनकर!

दोस्तों, इससे पहले कि आप यह गीत सुनें, आइए आज कुछ बातें हो जाए संगीतकार जयदेव के बारे में। जयदेव एक ऐसे संगीतकार रहे जिनका हर एक गीत अपने आप में एक अनमोल मोती के बराबर है। उन्हे बहुत ज़्यादा फ़िल्मों में काम करने का मौका नहीं मिला, लेकिन 'क्वांटिटी' का उन्होने 'क्वालिटी' से भरपाई ज़रूर की। आज के दौर के संगीतकार और उनके समकालीन संगीतकार उनका नाम बड़े ही सम्मान के साथ लेते हैं। पार्श्व गायक सुरेश वाडेकर जयदेव जी को पापाजी कह कर बुलाते थे। सुरेश जी के शब्दों में - "पापाजी ने बहुत मेलडियस काम किया है, ख़ूबसूरत ख़ूबसूरत गानें दिए श्रोताओं के लिए। मैं भाग्यशाली हूँ कि मैने उनको ऐसिस्ट किया ६/८ महीने। 'सुर सिंगार' प्रतियोगिता जीतने के बाद मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला। वो मेरे गुरुजी के क्लोज़ फ़्रेंड्स में थे। मेरे गुरुजी थे पंडित जियालाल बसंत। लाहौर से वो उनके करीबी दोस्त थे। पापाजी ने मेरे गुरुजी से कहा कि इसे मेरे पास भेजो, एक्स्पिरीयन्स हो जाएगा कि गाना कैसे बनता है, एक अच्छा अनुभव हो जाएगा। मैं गया उनके पास, वहीं पे मेरी लता जी से जान पहचान हो गई, उस समय वो फ़िल्म 'तुम्हारे लिए' का गाना "तुम्हे देखती हूँ तो लगता है ऐसे" के लिए आया करती थीं। मुझे वहाँ मज़ा आता था। कभी रीदम सेक्शन, कभी सिटिंग्स में जाया करता था, तबला लेकर उनके साथ बैठता, कैसे गाना बनता है, शायर भी होते थे वहाँ, फिर गाना बनने के बाद 'ऐरेंजमेंट' कैसे किया जाता है, ये सब मैने देखा और सीखा। जयदेव जी के गीतों में फ़ोक का एक रंग होता था मीठा मीठा सा, गीत क्लासीक़ी और मेलडी भरा होता था, गाने में चैलेंज हमेशा होता था। पापाजी की साँस थोड़ी कम थी, इसको ध्यान में रख कर गाना बनाते थे कमाल का। "मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया" में छोटे छोटे टुकड़ों में इतना अच्छा लगता है। गाना शुरु होते ही लगता है कि ये तो पापाजी का गाना है। उनकी पहचान, उनका स्टैम्प उनके गानों में होता था। मैं बहुत भाग्यशाली रहा, उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला।" वैसे दोस्तों, भाग्यशाली तो हम सभी हैं कि जयदेव जी की ऐसी मीठी, सुरीली रचनाएँ आज हमारे पास सुरक्षित हैं जो युगों युगों तक उनकी याद हमें दिलाती रहेंगी। चाहे शास्त्रीय संगीत हो या लोक संगीत, जयदेव के गीतों में कुछ भी अनावश्यक नहीं लगता। गीत के अनुरूप धुन की पूर्णता का अहसास कराता है उनका संगीत, ना कुछ कम ना कुछ ज़्यादा, बिल्कुल आज के इस प्रस्तुत गीत की तरह, सुनिए...



तू चन्दा मैं चाँदनी, तू तरुवर मैं शाख रे
तू बादल मैं बिजुरी, तू पंछी मैं पाख रे ।
न सरवर ना बावडी़ ना कोई ठ्ण्डी छांव
ना कोयल ना पपीहरा ऐसा मेरा गांव री
कहाँ बुझे तन की तपन
ओ सैयां सिरमोर
चन्द्र किरन को छोड़कर
जाए कहाँ चितचोर
जाग उठी है सावंरे
मेरी कुआंरी प्यास रे
अंगारे भी लगने लगे पिया
आज मुझे मधुमास रे ।
तुझे आँचल में रक्खूंगी ओ सांवरे
काळी अलकों से बाधूंगी ये पांव रे
गलबहियां वो डालूं कि छूटे नहीं
मेरा सपना सजन अब टूटे नहीं
मेंह्दी रची हथेलियां मेरे काजर वारे नैन रे
पल पल तोहे पुकारते पिया
हो हो कर बैचेन रे ।
ओ मेरे सावन सजन, ओ मेरे सिन्दूर
साजन संग सजनी भली मौसम संग मयूर
चार पहर की चाँदनी
मेरे संग बिता
अपने हाथों से पिया मुझे लाल चुनर उढ़ा
केसरिया धरती लगे, अम्बर लालम लाल रे
अंग लगा कर सायबा
कर दे मुझे निहाल रे..
.

और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. अभी हाल में प्रर्दशित "स्लम डॉग करोड़पति" में इस भजन के मूल रचेता का नाम पूछा गया था.
२. राग है - "केदार".
३. इस समूह गीत में महिला स्वर सुधा मल्होत्रा का है.

पिछली पहेली का परिणाम -

चलिए शरद जी ने राह छोडी और पूर्वी जी पहुँच गयी ४६ के निजी स्कोर पर, बधाई, दिलीप जी आपको एक मेल किया है देखिएगा.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

फेसबुक-श्रोता यहाँ टिप्पणी करें
अन्य पाठक नीचे के लिंक से टिप्पणी करें-

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

7 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

दरशन दो घन्श्याम नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे

शरद तैलंग का कहना है कि -

स्लमडॊग करोड़्पति में इस भजन के रचयिता का नाम सूरदास बताया गया था जबकि इसके रचनाकार है गोपालसिंह नेपाली

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

मेल के लिये धन्यवाद, मगर आश्चर्य है, अभी तक मिला नहीं है. dilipkawathekar@gmail.com.

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

तू चन्दा मैं चांदनी गाने की मेलोडी अल्टिमेट कही जा सकती है.

जयदेव जी से एक मुलाकात हुई थी तो उनके पसंदीदा ५ गीतों में इस गीत का नंबर था.इसके लिये उन्होने खूब मेहनत ली थी बनाने में , मगर वे हंस कर बोले, लता जी नें एक दम कम रिहल्सल में ही इतना परफ़ेक्ट गा डाला!!!!

She is Really Great!!

निर्मला कपिला का कहना है कि -

संगीत मे सुजाय जी का ग्यान देख कर हैरानी होती है हमेशा ही सुन्दर गीतों का चुनाव आनन्द दायक रहता है आभार इस सुन्दर गीत के लिये भी।

राज भाटिय़ा का कहना है कि -

अजी गीत ने मस्त कर दिया, बहुत सुंदर हम ने दो बार सुना. धन्यवाद

Shamikh Faraz का कहना है कि -

शरद जीको बधाई.

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ

ओल्ड इज़ गोल्ड शृंखला

महफ़िल-ए-ग़ज़लः नई शृंखला की शुरूआत

भेंट-मुलाक़ात-Interviews

संडे स्पेशल

ताजा कहानी-पॉडकास्ट

ताज़ा पॉडकास्ट कवि सम्मेलन