ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 279
'गीतांजली' की नौवी कड़ी में आज गीता दत्त की आवाज़ सजने वाली है माला सिंहा पर। दोस्तों, हमने इस महफ़िल में माला सिंहा पर फ़िल्माए कई गीत सुनवा चुके हैं लेकिन कभी भी हमने उनकी चर्चा नहीं की। तो आज हो जाए? माला सिंहा का जन्म एक नेपाली इसाई परिवार में हुआ था। उनका नाम रखा गया आल्डा। लेकिन स्कूल में उनके सहपाठी उन्हे डाल्डा कहकर छेड़ने की वजह से उन्होने अपना नाम बदल कर माला रख लिया। कलकत्ते में कुछ बंगला फ़िल्मों में अभिनय करने के बाद माला सिंहा को किसी बंगला फ़िल्म की शूटिंग् के लिए बम्बई जाना पड़ा। वहाँ उनकी मुलाक़ात हुई थी गीता दत्त से। गीता दत्त को माला सिंहा बहुत पसंद आई और उन्होने उनकी किदार शर्मा से मुलाक़ात करवा दी। और शर्मा जी ने ही माला सिंहा को बतौर नायिका अपनी फ़िल्म 'रंगीन रातें' में कास्ट कर दी। लेकिन माला की पहली हिंदी फ़िल्म थी 'बादशाह' जिसमें उनके नायक थे प्रदीप कुमार। उसके बाद आई पौराणिक धार्मिक फ़िल्म 'एकादशी'। दोनों ही फ़िल्में फ़्लॊप रही और उसके बाद किशोर साहू की फ़िल्म 'हैमलेट' ने माला को दिलाई ख्याति, भले ही फ़िल्म पिट गई थी। १९५७ में गुरु दत्त ने माला को अपनी महत्वाकांक्षी फ़िल्म 'प्यासा' में एक महत्वपूर्ण किरदार निभाने का मौका दिया जिसे वो पहले मधुबाला को देना चाहते थे। माला ने उस किरदार में जान डाल दी। यह फ़िल्म ना केवल हिंदी सिनेमा की एक क्लासिक फ़िल्म है, बल्कि यह फ़िल्म माला सिंहा के करीयर की एक टर्निंग् पॊयन्ट भी सिद्ध हुई। इसके बाद माला सिंहा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। धूल का फूल, परवरिश, फिर सुबह होगी, मैं नशे में हूँ, लव मैरिज, बहूरानी, अनपढ़, आसरा, दिल तेरा दीवाना, गुमराह, आँखें, हरियाली और रास्ता, हिमालय की गोद में, जैसी सुपर डुपर हिट फ़िल्में माला की झोली में गई।
दोस्तों, गीता दत्त ने माला सिंहा के लिए जिन फ़िल्मों में पार्श्वगायन किया, वो फ़िल्में हैं - सुहागन ('५४), रियासत ('५५), फ़ैशन, प्यासा ('५७), जालसाज़, चंदन, डिटेक्टिव ('५८), आँख मिचोली ('६२), और सुहागन ('६४)। १९५७ की बंगला फ़िल्म 'प्रिथिबी आमारे चाय' में भी गीता जी ने माला जी का प्लेबैक किया था। आज हम जिस गीत को चुन लाए हैं वह एक बहुत ही ख़ूबसूरत युगल गीत है जिसमें गीता दत्त का साथ दिया है हेमन्त कुमार ने। फ़िल्म 'डिटेक्टिव' का यह गीत है जिसमें संगीत दिया था गीता दत्त के भाई मुकुल रॉय ने। गीत फ़िल्माया गया माला सिंहा और प्रदीप कुमार पर। ये मीठे सुरीले बोल हैं शैलेन्द्र के। इस फ़िल्म का निर्देशन किया था शक्ति सामंत ने। वाल्ट्ज़ के रीदम पर आधारित यह युगलगीत रूमानीयत के रस में डूबो डूबो कर रची गई है। मुकुल रॉय को बहुत ज़्यादा काम करने का मौका नहीं मिला। उनके संगीत निर्देशन में बस ४ फ़िल्में आईं - डिटेक्टिव, सैलाब, भेद, दो बहादुर। फ़िल्म 'डिटेक्टिव' में गीता जी का ही गाया एक और मशहूर गीत था "दो चमकती आँखों में कल ख़्वाब सुनहरा था जितना, हाए ज़िंदगी तेरी राह में आज अंधेरा है उतना"। क़िस्मत की विडंबना देखिए, जहाँ एक तरफ़ इस गीत को बेहद लोकप्रियता हासिल हुई, वहीं ऐसा लगा जैसे इस गीत के बोल हू-ब-हू मुकुल रॉय के लिए ही लिखे गए हों। प्रतिभा होते हुए भी वो आगे नहीं बढ़ सके। आज का यह अंक गीता जी के साथ साथ समर्पित है मुकुल रॊय की प्रतिभा को भी। सुनते हैं यह गीत.
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. गुलज़ार साहब ने बहुत खूबसूरत बोल लिखे इस गीत के.
२. जिस अंदाज़ में इसे गीता जी गाया उसका कोई सानी नहीं, जिस अभिनेत्री पर इसे फिल्माया गया था उन्होंने बतौर बाल कलाकार उस फिल्म से शुरुआत की थी जिसमें उनकी बड़ी बहन को लौंच किया गया था.
३. पहला अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"सूरज".इस पहेली को बूझने के आपको मिलेंगें २ की बजाय ३ अंक. यानी कि एक अंक का बोनस...पराग जी इस प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले सकेंगें.
पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी ३ और शानदार अंक आपकी झोली में...बहुत बधाई, पाबला जी, अगर जवाब नहीं पता तो बोल दिया कीजिये बहाने क्यों बनाते हैं हा हा हा :)
खोज - पराग सांकला
आलेख- सुजॉय चटर्जी
 ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में. 
 
 










 संस्कार गीतों पर एक विशेष शृंखला
संस्कार गीतों पर एक विशेष शृंखला मन जाने - विवधताओं से भरी अल्बम
मन जाने - विवधताओं से भरी अल्बम








 लता मंगेशकर जब मिली आवाज़ के श्रोताओं से
लता मंगेशकर जब मिली आवाज़ के श्रोताओं से द रिटर्न ऑफ आलम आरा प्रोजेक्ट एक कोशिश है, हिंदुस्तान की पहली बोलती फिल्म के गीत संगीत को फिर से रिवाईव करने की, सहयोग दें, और हमारी इस नेक कोशिश का हिस्सा बनें
द रिटर्न ऑफ आलम आरा प्रोजेक्ट एक कोशिश है, हिंदुस्तान की पहली बोलती फिल्म के गीत संगीत को फिर से रिवाईव करने की, सहयोग दें, और हमारी इस नेक कोशिश का हिस्सा बनें 

 सुप्रसिद्ध गायक, गीतकार और संगीतकार रविन्द्र जैन यानी इंडस्ट्री के दाद्दु पर एक विशेष शृंखला जिसके माध्यम हम सलाम कर रहे हैं फिल्म संगीत जगत में, इस अदभुत कलाकार के सुर्रिले योगदान को
सुप्रसिद्ध गायक, गीतकार और संगीतकार रविन्द्र जैन यानी इंडस्ट्री के दाद्दु पर एक विशेष शृंखला जिसके माध्यम हम सलाम कर रहे हैं फिल्म संगीत जगत में, इस अदभुत कलाकार के सुर्रिले योगदान को लोरियों की मधुरता स्त्री स्वर के माम्तत्व से मिलकर और भी दिव्य हो जाती है. पर फिल्मों में यदा कदा ऐसी परिस्थियों भी आई है जब पुरुष स्वरों ने लोरियों को अपनी सहजता प्रदान की है. पुरुष स्वरों की दस चुनी हुई लोरियाँ लेकर हम उपस्थित हो रहे हैं ओल्ड इस गोल्ड में इन दिनों
लोरियों की मधुरता स्त्री स्वर के माम्तत्व से मिलकर और भी दिव्य हो जाती है. पर फिल्मों में यदा कदा ऐसी परिस्थियों भी आई है जब पुरुष स्वरों ने लोरियों को अपनी सहजता प्रदान की है. पुरुष स्वरों की दस चुनी हुई लोरियाँ लेकर हम उपस्थित हो रहे हैं ओल्ड इस गोल्ड में इन दिनों 
 हिंदुस्तान की पहली बोलती फिल्म का पहला गीत हिंद युग्म ने रिवाईव किया २०१० में
हिंदुस्तान की पहली बोलती फिल्म का पहला गीत हिंद युग्म ने रिवाईव किया २०१० में
 शक्ति के बिना धैर्य ऐसे ही है जैसे बिना बत्ती के मोम।
शक्ति के बिना धैर्य ऐसे ही है जैसे बिना बत्ती के मोम।



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7 श्रोताओं का कहना है :
सुन रहे हैं ये प्यारा सा गीत धन्यवाद्
अरे! इंदू जी नहीं आईं अभी तक?
बहना नाराज़ हो गई लगता है
बी एस पाबला
फिलहाल तो गीत के बोल लीजिए:
मेरा दिल जो मेरा होता
पलकों पे पकड़ लेती
होंठों पे उठा लेती
हाथों मे. खुदा होता
मेरा दिल
मिलते हैं ब्रेक के बाद
बी एस पाबला
यह गीत तनूजा पर फिलमाया गया था, जिन्होंने 1950 में 14 वर्षीय अपनी बड़ी बहन नूतन की पहली फिल्म 'हमारी बेटी', में बेबी तनूजा के नाम से काम किया था
गीत के बोल हैं:
मेरा दिल जो मेरा होता
पलकों पे पकड़ लेती
होंठों पे उठा लेती
हाथों मे. खुदा होता
मेरा दिल ...
सूरज को मसल के मैं
चन्दन के तरह मलती
सोने का बदन ले कर
कुन्दन की तरह जलती
इस गोरे से चेहरे पर
आइना फ़िदा होता
मेरा दिल ...
बरसा है कहीं पर तो
आकाश समुन्दर में
इक बूँद है चन्दा की
उतरे न समुन्दर में
दो हाथों के ओख में ये
गिर पड़ता तो क्या होता
हाथों में खुदा होता
मेरा दिल ...
यह है इसका ऑडियो
यह है इसका वीडियो
यह गीत 1971 की फिल्म 'अनुभव' का है जिसमें तनूजा के साथ संजीव कुमार थे
बी एस पाबला
हा हा
पराग जी भी चुहल कर लेते हैं कभी कभी
बी एस पाबला
pabla veer ji !
sugar level bahut high ho rahaa tha,isliye
doctor ko btana jaruri tha
answer ekdm sahi hai film anubhv ka gana hai ye
vaies is film sbhi geeton ke shbd 'moti' srikhe hain ,bahut hi pyare.
mujhe jaan n kaho meri jaa to apna behad pasandida hai
aapko bdhaee
गीता जी के भक्तोंकी तरफसे हिंद युग्म , आवाज़ तथा सजीव जी और सुजॉय जी को लक्ष लक्ष धन्यवाद. गीताजी के गाये १० गीत और उनसे जुडी बातें संगीत प्रेमियोंतक पहुंचाने का आपका प्रयास अत्यंत सराहनीय है.
भविष्य में भी संगीत प्रेमी इन सारे आलेखोंको नीचे दी गए वेबपेज पर एक साथ पढ़ सकते है.
http://www.geetadutt.com/blog/?cat=30
हमें आशा है की आप सभीने इन दुर्लभ और सुरीले गीतोंसे आनंद प्राप्त किया होगा. "रविवार सुबह की कॉफ़ी" श्रुंखला में गीता जी के गाये हुए ऐसे ही सुरीले गीत नियमित रूप से सुनाने की कोशीश रहेगी. अंतर्जाल पर देवनागरी में संगीत प्रेमियोंको रिजाने वाले आवाज़ को और भी शक्ती और सभीका साथ मिले यही प्रभूसे विनती है.
गीता दत्त डोट कोम की तरफ से
पराग सांकला
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