आज से 212 वर्ष पहले एक महाकवि का जन्म हुआ जिसकी शायरी को समझने में लोग कई दशक गुजार देते हैं, लेकिन मर्म समझ नहीं पाते। आज रश्मि प्रभा उर्दू कविता के उसी महाउस्ताद को याद कर रही हैं अपने खूबसूरत अंदाज़ में। आवाज़ ने मिर्ज़ा ग़ालिब के ऊपर कई प्रस्तुतियाँ देकर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किया है। शिशिर पारखी जो खुद पुणे से हैं, ने उर्दू कविता के 7 उस्ताद शायरों के क़लामों का एक एल्बम एहतराम निकाला था,जिसे आवाज़ ने रीलिज किया था। इसकी छठवीं कड़ी मिर्ज़ा ग़ालिब के ग़ज़ल 'तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले' को समर्पित थी। आवाज़ के स्थई स्तम्भकार संजय पटेल ने लता मंगेशकर की आवाज़ में ग़ालिब की ग़ज़लों की चर्चा दो खण्डों (पहला और दूसरा) में की थी। संगीत की दुनिया पर अपना कलम चलाने वाली अनिता कुमार ने भी बेग़म अख़्तर की आवाज़ में मिर्जा ग़ालिब की एक रचना 'जिक्र उस परीवश का और फ़िर बयां अपना...' हमें सुनवाया था।
लेकिन आज रश्मि प्रभा बिलकुल नये अंदाज़ में अपना श्रद्धासुमन अर्पित कर रही हैं। सुनिए और बताइए-
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8 श्रोताओं का कहना है :
मिर्ज़ा ग़ालिब की 212वीं जयंती को याद कराने का शुक्रिया .. सुन रही हूं !!
nice
ग़ालिब कोई एक सदियों में पैदा होता है. इस अजीम शायर को आप्न्र बहुत अच्छे तरीके से याद किया आज रेशमी जी, मेरा भी नमन
गालिब की 212 वीं बरसी पर उन्को मेरी वुनम्र श्रद्धाँजली । रश्मि जी की आचाज़ मे जादू है। दिल को छू गयी धन्यवाद और शुभकामनायें
sunkar aanand aa gaya
बहुत सुंदर प्रस्तुति…।गालिब की तो बात ही अलग है
सुंदर प़सारण के लिए बधाई .
Bahut sundar Prastuti hamesha ki tarah... hum maafi chahte hai ki samay se apni rachna nahi bhej paaye record karke...!
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