ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 308/2010/08
कल एक गुदगुदाने वाला गीत आप ने सुना था 'पंचम के दस रंग' शृंखला के अंतर्गत। पंचम के संगीत की विविधता को बनाए रखते हुए आइए आज हम कल के गीत के ठीक विपरीत दिशा में जाते हुए एक ग़मगीन नग़मा सुनते हैं। अक्सर राहुल देव बर्मन के नाम के साथ हमें ख़ुशमिज़ाज गानें ही ज़्यादा याद आते हैं, लेकिन उन्होने कई गमज़दा गानें भी बनाए हैं जो बेहद मशहूर हुए हैं। आज के लिए हमने जिस गीत को चुना है वह बहुत ख़ास इसलिए भी है क्योंकि इस गीत के गायक को पंचम दा ने बहुत ज़्यादा गवाया नहीं है। जी हाँ, मुकेश और पंचम की जोड़ी बहुत ही रेयर जोड़ी रही है। 'धरम करम' में "इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल" और 'कटी पतंग' फ़िल्म के गीत "जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा" दो ऐसे गीत हैं जो सब से पहले ज़हन में आते हैं मुकेश और पंचम के एक साथ ज़िक्र से। लेकिन इस जोड़ी का एक और गीत है जो आज हमने चुना है फ़िल्म 'मुक्ति' से। "सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती, तुम्हारे प्यार की बातें हमें सोने नहीं देती"। आनंद बक्शी की गीत रचना है और पर्दे पर शशि कपूर पर फ़िल्माया हुआ गाना है।
फ़िल्म 'मुक्ति' को मुक्ति मिली थी सन् १९७७ में। राज तिलक निर्मित व निर्देशित इस फ़िल्म की कहानी लिखी थी ध्रुव चटर्जी ने और फ़िल्म में मुख्य किरदार निभाए शशि कपूर, संजीव कुमार, विद्या सिन्हा और बिन्दिया गोस्वामी ने। फ़िल्म की कहानी थोड़ी सी अलग हट के थी। कैलाश शर्मा (शशी कपूर) अपनी पत्नी (विद्या सिन्हा) और बेटी पिंकी के साथ जीवन बीता रहे होते हैं। अपनी बेटी से उन्हे बेहद प्यार है और रोज़ उसके लिए उपहार लाया करते हैं, पियानो पर उसे गाना भी सिखाते हैं। लेकिन एक रोज़ ग़लत फ़हमी के शिकार होकर एक औरत के साथ बलात्कार के झूठे आरोप में कैलाश को फाँसी की सज़ा हो जाती है। कैलाश की बीवी और बेटी शहर छोड़ कर चले जाते हैं। उनकी मुलाक़ात एक ट्रक ड्राइवर रतन (संजीव कुमार) से होती है। पिंकी (बिन्दिया गोस्वामी) और रतन में काफ़ी मेल जोल बढ़ता है लेकिन एक पिता और पुत्री के हैसीयत से। रतन के पिंकी के घर आते जाते रहने की वजह से लोग उनके रिश्ते पर सवाल उठाते हैं जिसकी वजह से दोनों शादी कर लेते हैं और साथ ही रहते हैं। समय बीतता है, रतन एक अमीर आदमी बन जाता है। उधर कैलाश की फाँसी की सज़ा माफ़ हो कर सिर्फ़ १० साल की क़ैद हुई थी, तो वो १० साल बाद जेल से रिहा हो जाता है। और उसकी तलाश शुरु होती है अपनी पत्नी और बेटी की। पिंकी के वो संस्पर्श में आते हैं और वो अपने परिवार के हक़ीक़त से रु-ब-रु हो जाता है। रतन को कैलाश की वापसी रास नहीं आती और वो उसे मार डालने की सोचता है। क्या होता है कहानी में आगे यह आप ख़ुद ही देखिएगा कभी मौका मिले तो। अब इस गीत के बारे में यही कहेंगे कि एक क्लब में कैलाश पियानो पर बैठ कर यह दर्द भरा गीत गा रहे होते हैं और सामने रतन और पिंकी बैठे उन्हे सुन रहे हैं, पिंकी इस बात से बिल्कुल बेख़बर कि वो दरअसल अपने पिता को सुन रही है, जिनसे कभी बचपन में पियानो बजाना सीखा करती थी। गीत के इंटर्ल्युड म्युज़िक के दौरान कैलाश फ़्लैशबैक में चला जाता है और अपनी पत्नी (विद्या सिन्हा) के साथ गुज़ारे लम्हों को याद करता है। पेश-ए-ख़िदमत है राहुल देव बर्मन और मुकेश के गिने चुने नग़मों में से एक चुनिंदा नग़मा आज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
सपनों को उड़कर छू लेने दो आसमान
बेड़ियाँ न डालो ख़्वाबों के क़दमों में,
आँखों में भर जाने दो रेशमी किरणें,
शर्माती न रह जाए कहीं हसरतें दिल में
पिछली पहेली का परिणाम-
अवध जी तो पीछे रह गए, पर हमें मिले एक नए विजेता अनुपम गोयल के रूप में, अनुपम जी बधाई, २ अंकों से खता खुला आपका, शरद जी दूरदर्शी फैसला :), निर्मला जी आप बस सुनने का आनंद लें.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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5 श्रोताओं का कहना है :
इस मोड से जाते है कुछ सुस्त कदम रस्ते, कुछ तेज़ कदम राहें.. आँधी की तरह उड़्कर,इक राह गुज़रती है..
फ़िल्म : आँधी
इस मोड़ से जाते हैं कुछ ......आंधी की तरह उड़कर एक राह गुजरती है
कोई कदमो से उतरती ही
फिल्म आंधी
बडा ही प्यारा गीत । दर्दभरे गाने और मुकेश तथा तलत महमूद इनका अभिन्न साथ था ।
my god ! dekhiye to ek minut ka bhi anter nhi rahaa pr..
sharad bhai badhai
मुकेश की आवाज़ में इस गीत को बहुत बार सुना था परन्तु उसके पीछे की कहानी आज ही पता लगी. श्रंखला बहुत मनभावन है. धन्यवाद.
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