Tuesday, April 6, 2010

आ दो दो पंख लगा के पंछी बनेंगे...आईये लौट चलें बचपन में इस गीत के साथ



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 396/2010/96

पार्श्वगायिकाओं के गाए युगल गीतों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला 'सखी सहेली' की आज की कड़ी में हमने जिन दो आवाज़ों को चुना है, वो दोनों आवाज़ें ही हिंदी फ़िल्म संगीत के लिए थोड़े से हट के हैं। इनमें से एक आवाज़ है गायिका आरती मुखर्जी की, जो बंगला संगीत में तो बहुत ही मशहूर रही हैं, लेकिन हिंदी फ़िल्मों में बहुत ज़्यादा सुनाई नहीं दीं हैं। और दूसरी आवाज़ है गायिका हेमलता की, जिन्होने वैसे तो हिंदी फ़िल्मों के लिए बहुत सारे गीत गाईं हैं, लेकिन ज़्यादातर गीत संगीतकार रवीन्द्र जैन के लिए थे, और उनमें से ज़्यादातर फ़िल्में कम बजट की होने की वजह से उन्हे वो प्रसिद्धी नहीं मिली जिनकी वो सही मायने में हक़दार थीं। ख़ैर, आज हम इन दोनों गायिकाओं के गाए जिस गीत को सुनवाने के लिए लाए हैं, वह गीत इन दोनों के करीयर के शुरूआती दिनों के थे। यह फ़िल्म थी १९६९ की फ़िल्म 'राहगीर', जिसका निर्माण गीतांजली चित्रदीप ने किया था। बिस्वजीत और संध्या अभिनीत इस फ़िल्म में हेमन्त कुमार का संगीत था और गीत लिखे गुलज़ार साहब ने। इसमें आरती मुखर्जी और हेमलता ने साथ में एक बच्चों वाला गीत गाया था "आ दो दो पंख लगा के पंछी बनेंगे"। बड़ा ही प्यारा सा गीत है और आजकल यह गीत ना के बराबर सुनाई देता है। बहुत ही दुर्लभ गीत है, और इस गीत को हमें उपलब्ध करवाया मेरे एक ऐसे दोस्त ने जो समय समय पर हमें दुर्लभ से दुर्लभ गीत खोज कर भेजती रहती हैं लेकिन अपना नाम दुनिया के सामने आए ये वो यह नहीं चाहतीं। आज जहाँ छोटे से छोटे काम के लिए इंसान चाहता है कि उसका नाम आगे आए, वहीं मेरी यह दोस्त गुमनाम रह कर हमारे प्रयासों में अद्वितीय सहयोग दे रही हैं। मैं उनका नाम बता कर उन्हे चोट नहीं पहुँचाउँगा, लेकिन उनका तह-ए-दिल से शुक्रिया ज़रूर अदा करूँगा। उनके सहयोग के बिना हम बहुत से ऐसे गीतों को बजाने की कल्पना भी नहीं कर पाते, और आज का गीत भी उन्ही दुर्लभ गीतों में से एक है।

आरती मुखर्जी ने फ़िल्म 'राहगीर' का यह गीत १९६९ में गाया था। उसके बाद जिन हिंदी फ़िल्मों में उनके हिट गीत आए उनमें शामिल हैं 'गीत गाता चल' (१९७५), 'तपस्या' ('१९७६), 'मनोकामना' (१९८३) और 'मासूम' (१९८३)। फ़िल्म 'मासूम' में उनके गाए गीत "दो नैना और एक कहानी" के लिए उन्हे उस साल सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था। दूसरी तरफ़ हेमलता के गाए हिंदी गेतों की फ़ेहरिस्त तो काफ़ी लम्बी चौड़ी है, इसलिए उस तरफ़ ना जाते हुए हम सीधे उन्ही की ज़ुबानी कुछ जानकारी देना चाहेंगे जो उन्होने विविध भारती के श्रोताओं के साथ बाँटे थे एक मुलाक़ात में। दोस्तों, क्योंकि आज हम हेमलता जी के गाए एक बच्चों वाले गीत को सुनने जा रहे हैं हेमन्त दा के संगीत में, तो क्यों ना हम उस मुलाक़ात के उस अंश को पढ़ें जिसमें वो बता रहीं हैं उनके पहले पहले स्टेज गायन के बारे में जिसमें हेमन्त दा, जी हाँ हेमन्त दा भी मौजूद थे। "कलकत्ता के रवीन्द्र सरोवर स्टेडियम में एक बहुत बड़ा प्रोग्राम हुआ था। डॊ. बिधान चन्द्र रॊय आए थे उसमें, दो लाख की ऒडियन्स थी। उस शो के चीफ़ कोर्डिनेटर गोपाल लाल मल्लिक ने मुझे एक गाना गाने का मौका दिया। उस शो में लता जी, रफ़ी साहब, उषा जी, हृदयनाथ जी, किशोर दा, सुबीर सेन, संध्या मुखर्जी, आरती मुखर्जी, हेमन्त दादा, सब गाने वाले थे। मुझे इंटर्वल में गाना था, ऐज़ बेबी लता (हेमलता का असली नाम लता ही था उन दिनों) ताकि लोग चाय वाय पी के आ सके। मेरे गुरु भाई चाहते थे कि इस प्रोग्राम के ज़रिए मेरे पिताजी को बताया जाए कि उनकी बेटी कितना अच्छा गाती है (हेमलता के पिता को यह मालूम नहीं था कि उनकी बेटी छुप छुप के गाती है)। तो वो जब जाकर मेरे पिताजी को इस फ़ंक्शन में आने के लिए कहा तो वो बोले कि मैं वहाँ फ़िल्मी गीतों के फ़ंक्शन में जाकर क्या करूँगा! बड़ी मुश्किल से मनाकर उन्हे लाया गया। तो ज़रा सोचिए, बिधान चन्द्र रॊय, सारे मिनिस्टेरिएल लेवेल के लोग, दो लाख ऒडियन्स, इन सब के बीच मेरे पिताजी बैठे हैं और उनकी बेटी गाने वाली है और यह उनको पता ही नहीं। उस समय मेरा आठवाँ साल लगा था। मैंने "जागो मोहन प्यारे", फ़िल्म 'जागते रहो', यह गाना गाया। जैसे ही मैंने वह आलाप लिया, पब्लिक ज़ोर से शोर करने लगी। मैंने सोचा कि क्या हो गया, फिर पता चला कि वो "आर्टिस्ट को ऊँचा करो" कह रहे हैं। फिर टेबल लाया गया और मैंने फिर से गाया, वन्स मोर भी हुआ। कलकत्ता की ऒडियन्स, दुनिया में ऐसी ऒडियन्स आपको कहीं नहीं मिलेगी, वाक़ई! फिर उस दिन मैंने एक एक करके १२ गीत गाए, सभी बंगला में, हिंदी में, जो आता था सब गा दिया। फिर शोर हुआ कि दीदी (लता जी) आ गईं हैं। बी. सी. रॊय ने बेबी लता के लिए गोल्ड मेडल अनाउन्स किया। पिता जी भी मान गए, उनको भी लगा कि उसकी प्रतिभा को रोकने का मुझे कोई अधिकार नहीं है, फिर राशी देख कर 'ह' से हेमलता नाम रखा गया और मैं लता से हेमलता बन गई।" तो दोस्तों, यह थी हेमलता से जुड़ी एक दिलचस्प जानकारी। और अब वक़्त है दो दो पंख लगा के पंछी बनने की, सुनते हैं दो सखियों आरती मुखर्जी और हेमलता की आवाज़ें फ़िल्म 'राहगीर' के इस मासूम गीत में।



क्या आप जानते हैं...
कि हेमलता कुल ३८ भाषाएँ पढीं हैं, और १२ देशों की मुख्य भाषा को बाकायदा सीखा है। उन्होने ख़ुद यह विविध भारती पर कहा था।

चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-

1. एक मुहावरे से शुरू होता है ये गीत, फिल्म का नाम बताएं -३ अंक.
2. शैलेन्द्र के लिखे इस गीत की संगीतकार जोड़ी कौन सी है - २ अंक.
3. मुबारक बेगम के साथ किस गायिका ने इस गीत में आवाज़ मिलायी है -२ अंक.
4. राज कपूर अभिनीत इस फिल्म की नायिका कौन हैं -२ अंक.

विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी, पदम जी, इंदु जी और अवध जी बधाई, इंदु जी लगता है आपको बच्चों वाले गीत पसंद नहीं...भाई जिस गीत के साथ हेमंत दा, गुलज़ार, आरती मुखर्जी और हेमलता जुडी हों उसे गोल्ड मानने से हम तो इनकार नहीं कर सकते :)

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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6 श्रोताओं का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

ये मुंह और मसूर कि दाल वाह रे सुजॉय 'अराऊंड दी वर्ल्ड ' घुमा देते हो .

पद्म सिंह का कहना है कि -

खोज बीन के अनुसार तो संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन की है .....
सच्ची में !
इंदु आंटी नमस्ते .....

शरद तैलंग का कहना है कि -

दूसरी गायिका हैं : शारदा

अनीता सिंह का कहना है कि -

मुबारक बेगम के साथ शारदा जी की आवाज़ है (वैसे मै तो जानती भी नहीं कि शारदा जी कौन हैं)

अनीता सिंह का कहना है कि -

मुझे लगता है कि गाइका वाला कमेन्ट देने में देर हो गयी है और शरद जी ने जवाब दे दिया है
इजाजत हो तो अगला जवाब मै देती हूँ -
फिल्म की नायिका हैं- राज श्री

AVADH का कहना है कि -

अनीता जी,
ऐसा नहीं हो सकता कि आप शारदा जी के बारे में बिलकुल अनजान हों.
अरे!" तितली उड़ी, उड़ जो चली; फूल ने कहा, आ जा मेरे पास;तितली कहे मैं चली आकाश", यह गीत तो आप नहीं भूली होंगी. और उसमें अपनी तरह का अनूठा स्वर था शारदा जी का.
सब लोगों को बधाई सहित,
अवध लाल

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