Friday, May 14, 2010

कुछ गीत इंडस्ट्री में ऐसे भी बने जिनका सम्बन्ध केवल फिल्म और उसके किरदारों तक सीमित नहीं था...



ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # २४

"चैन से हमको कभी आप ने जीने ना दिया, ज़हर जो चाहा अगर पीना तो पीने ना दिया"। फ़िल्म 'प्राण जाए पर वचन ना जाए' का यह दिल को छू लेने वाला गीत आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' की महफ़िल को रोशन कर रहा है। ओ. पी. नय्यर और आशा भोसले ने साथ साथ फ़िल्म संगीत में एक लम्बी पारी खेली है। करीब करीब १५ सालों तक एक के बाद एक सुपर डुपर हिट गानें ये दोनों देते चले आए हैं। कहा जाता है कि प्रोफ़ेशनल से कुछ हद तक उनका रिश्ता पर्सनल भी हो गया था। ७० के दशक के आते आते जब नय्यर साहब का स्थान शिखर से डगमगा रहा था, उन दिनों दोनों के बीच भी मतभेद होने शुरु हो गए थे। दोनों ही अपने अपने उसूलों के पक्के। फलस्वरूप, दोनों ने एक दूसरे से किनारा कर लिया सन् १९७२ में। इसके ठीक कुछ दिन पहले ही इस गीत की रिकार्डिंग् हुई थी। दोनों के बीच चाहे कुछ भी मतभेद चल रहा हो, दोनों ने ही प्रोफ़ेशनलिज़्म का उदाहरण प्रस्तुत किया और गीत में जान डाल दी। फ़िल्म के रिलीज़ होने के पहले ही इस फ़िल्म के गानें चारों तरफ़ छा गए। ख़ास कर यह गीत इतना ज़्यादा लोकप्रिय हो गया था कि फ़िल्मफ़ेयर पत्रिका ने आशा भोसले को उस साल के अवार्ड फ़ंकशन के लिए 'सिंगर ऒफ़ दि ईयर' चुन लिया। लेकिन दुखद बात यह हो गई कि आशा जी नय्यर साहब से कुछ इस क़दर ख़फ़ा हो गए कि वो ना केवल फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड लेने नहीं आईं, बल्कि इस फ़िल्म से यह गाना भी हटवा दिया जब कि गाना रेखा पर फ़िल्माया जा चुका था। फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड फ़ंकशन में नय्यर साहब ने आशा जी का पुरस्कार ग्रहण किया, और ऐसा कहा जाता है कि उस फ़ंकशन से लौटते वक़्त उस अवार्ड को गाड़ी से बाहर फेंक दिया और उसके टूटने की आवाज़ भी सुनी। कहने की आवश्यकता नहीं कि आशा और नय्यर के संगम का यह आख़िरी गाना था। समय का उपहास देखिए, इधर इतना सब कुछ हो गया, और उधर इस गीत में कैसे कैसे बोल थे, "आप ने जो है दिया वो तो किसी ने ना दिया", "काश ना आती आपकी जुदाई मौत ही आ जाती"। ऐसा लगा कि आशा जी नय्यर साहब के लिए ही ये बोल गा रही हैं। बहुत अफ़सोस होता है यह सोचकर कि इस ख़ूबसूरत संगीतमय जोड़ी का इस तरह से दुखद अंत हुआ। ख़ैर, सुनिए यह मास्टरपीस और सल्युट कीजिए ओ. पी. नय्यर की प्रतिभा को!

ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण

गीत -चैन से हमको कभी...
कवर गायन - कुहू गुप्ता




ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं


कुहू गुप्ता
कुहू गुप्ता पेशे से पुणे में कार्यरत एक सॉफ्टवेर एन्जिनेअर हैं लेकिन इनका संगीत के साथ लगाव बचपन से ही रहा है. कहा जा सकता है कि इन्हें भगवान ने एक मधुर आवाज़ से नवांजा है और इनकी कोशिश यही है कि अपनी गायकी को हर दिन बेहतर बनाती जाएँ. इन्होने हिन्दुस्तानी शाश्त्रीय संगीत कि शिक्षा ११ साल की उम्र से शुरू की और ४ साल तक सीखा. ज़ी टीवी के मशहूर प्रोग्राम सारेगामापा में ये २ बार अपनी गायकी दिखा चुकी हैं. इन्होने कुछ मूल रचनाएँ भी गई हैं, जिनमे से एक हिंद युग्म के काव्य नाद एल्बम का हिस्सा है और कुछ व्यावसायिक तौर पर इस्तेमाल हुई हैं. इनके गाये हुए हिन्दी फिल्मों के गानों के कवर्स आज कल इन्टरनेट डेक्कन रेडियो पर भी सुनाये जा रहे हैं. इन सब के साथ साथ ये स्टेज शोव्स भी करती हैं.


विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रीवायिवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें

फेसबुक-श्रोता यहाँ टिप्पणी करें
अन्य पाठक नीचे के लिंक से टिप्पणी करें-

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

3 श्रोताओं का कहना है :

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

गीत की रूह में उतर कर गाया है कुहू नें.

गले में सिर्फ़ स्वर ही नहीं,ऐसे गानों में जज़बात भी गीले गीले टपकने चाहिये, जो बखूबी कर दिखाया है कुहू नें.

Anonymous का कहना है कि -

वाह कुहू! तुम तो कुक्कू सी ही कुहुकती हो.एक तो शानदार गाना उस पर उनही भावों से लबरेज तुम्हारी प्रस्तुति ,बेशक
गाना मधुर तो लगेगा ही.
उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनायें और.........
ढेर सारा प्यार

Anonymous का कहना है कि -

bahut bahut shukriya :)
- Kuhoo

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ

ओल्ड इज़ गोल्ड शृंखला

महफ़िल-ए-ग़ज़लः नई शृंखला की शुरूआत

भेंट-मुलाक़ात-Interviews

संडे स्पेशल

ताजा कहानी-पॉडकास्ट

ताज़ा पॉडकास्ट कवि सम्मेलन