ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 437/2010/137
नमस्कार दोस्तों! सावन के महीने की एक और परम्परा है झूलों का लगना। शहरों में तो नहीं दिखते, लेकिन गावों में आज भी लड़कियाँ पेड़ों की शाखों पर झूले डालते हैं और सावन के इन दिनों में ख़ूब झूला झूलते हैं। यह एक परम्परा के तौर पर चली आ रही है। और तभी तो फ़िल्मी गीतों में भी कई कई बार सावन में पड़ने वाले झूलों का ज़िक्र होता आया है। "पड़ गए झूले सावन ऋत आई रे" (बहू बेग़म), "बदरा छाए के झूले पड़ गए हाए" (आया सावन झूम के), "सावन के झूलों ने मुझको बुलाया" (निगाहें), और भी न जाने ऐसे कितने गानें हैं जिनमें सावन के झूलों का उल्लेख है। आज इनमें से हमने जिस गीत को चुना है वह है राहुल देव बर्मन के संगीत निर्देशन में फ़िल्म 'जुर्माना' का मधुर गीत "सावन के झूले पड़े, तुम चले आओ"। कितने सीधे सरल बोल हैं, लेकिन असर इतना कि सावन पर बने तमाम गीतों में यह गीत एक ख़ास मुक़ाम रखता है। आनंद बक्शी के लिखे और लता मंगेशकर के गाए इस गीत में शास्त्रीय संगीत का रंग है। इसी फ़िल्म का एक और शास्त्रीय अंदाज़ वाला गीत "ए सखी राधिके बावरी हो गई" हमने आपको इस साल की पहली जनवरी को सुनवाया था पंचम पर केन्द्रित लघु शृंखला में। पंचम एक ऐसे संगीतकार हुए जिन्होने पश्चिमी संगीत का जिस व्यापक्ता के साथ इस्तेमाल किया, उतना ही न्याय भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ भी किया अपने गीतों में। राग पहाड़ी का कितना सुंदर इस्तेमाल हुआ है इस गीत की धुन में।
दोस्तों, आज सावन पर एक कविता हो जाए यहाँ! लखनऊ के श्री विजय कुमार गुप्ता रचित यह है कविता 'देख तमाशा सावन का'।
छाए बादल
उभरी आस
नैना अटके
बीच आकाश
चमके बिजली
कांपे मनवा
ओढ़ी चादर
चांदी की
नील गगन में
देख तमाशा सावन का।
दुबके पक्षी
छुप गए तारे
हवा चली
तीव्र वेग से
उजड़े नीड़
नाची शाखा
देख तमाशा सावन का।
मंज़िल दूर
उपर शोर
तांडव गर्जन
हैरान पथिक
उफ़ने नाल तलैया
डूबे घाट
ढूंढ़े आसरा
पक्षी आज
उड़े ख़ूब
दाना दूर
हैरान सभी
माँगे धूप
देख तमाशा सावन का।
आशा है आपको यह कविता अच्छी लगी होगी। और अब सुनते हैं आज का गीत।
क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्म 'जुर्माना' के गीत "सावन के झूले पड़े" के दो वर्ज़न हैं और दोनों ही लता जी की आवाज़ में है। एक में ज़्यादा ठहराव है तो एक में शास्त्रीय मुड़कियाँ और हरकतें थोड़ी ज्यादा हैं।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. गुलज़ार के शब्दों को किस संगीतकार ने संगीत का जामा पहनाया है इस गीत में, बताएं -३ अंक.
२. मुखड़े में शब्द है -"कांच", फिल्म का नाम बताएं - २ अंक.
३. गायिका का नाम बताएं - २ अंक.
४. १९८० में प्रदर्शित इस फिल्म का नाम बताएं, इस नाम में तीन शब्द हैं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
३ अंक शरद जी चुरा गए और २ अंक अवध जी के खाते में भी आये, बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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4 श्रोताओं का कहना है :
Music Director : Khayyam
फिल्म:थोड़ी सी बेवफाई
अवध लाल
सुजॉय जी,
लगता है कि गलती से प्रश्न २ और ४ दोनों में फिल्म का नाम पूछ लिया गया है.
मैं समझता हूँ कि प्रश्न २ में आपकी मुराद शायद गीत के बोल से थी?
अवध लाल
कविता ने दिखाया तमाशा सावन का ...!
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