Saturday, July 17, 2010

सुनो कहानी: एक गधे की वापसी - कृश्न चन्दर - भाग 2/3



सुनो कहानी: एक गधे की वापसी - कृश्न चन्दर - भाग 2/3

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अर्चना चावजी की आवाज़ में प्रेमचंद की अमर कहानी "मंत्र" का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं कृश्न चन्दर की कहानी "एक गधे की वापसी", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने।

एक गधे की वापसी का प्रथम भाग पढने के लिये कृपया यहाँ क्लिक करें

कहानी के इस अंश का कुल प्रसारण समय 18 मिनट 27 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।



यह तो कोमलांगियों की मजबूरी है कि वे सदा सुन्दर गधों पर मुग्ध होती हैं
~ पद्म भूषण कृश्न चन्दर (1914-1977)

हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी

मैं महज़ एक गधा आवारा हूँ।
( "एक गधे की वापसी" से एक अंश)


नीचे के प्लेयर से सुनें.
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यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें)
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#Eighteeth Story, Ek Gadhe Ki Vapasi: Folklore/Hindi Audio Book/2010/24. Voice: Anurag Sharma

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4 श्रोताओं का कहना है :

P.N. Subramanian का कहना है कि -

मैंने यह कहानी १९५७ के लगभग पढ़ी थी. याद ताज़ी हो आई. कृष्ण चंदर जी की एक और कहानी है "एक गधा नेफा में" आभार.

kase kahun का कहना है कि -

anuragji ki awaz me is kahani ka anand duguna ho gaya....

विजयप्रकाश का कहना है कि -

आज के पाठकों को कल का स्तरीय साहित्य उपलब्ध कराने के लिये धन्यवाद.

abhipsa का कहना है कि -

कृष्ण जी की कहानी एक गधे की आत्मकथा पढ़ी तो इसकी पटकथा लिखने को मनन प्रेरित हुआ.. लिखी भी गयी और पंजाबी में बनाई भी गयी लेकिन रिलीज़ नहीं हो सकी.. लेकिन यहाँ इसका अगला अंक जो मैंने पढ़ा नहीं था सुनकर बहुत अच्छा लगा.. मुझे बस एक कमी दिखाई दी वो ये कि कहानी सुनाने वाले ने वो माहौल पैदा नहीं किया.. उन्होंने बस कहानी को पढ़ दिया उसे पढ़ते हुए चित्रित नहीं किया.. इसके बावजूद कृष्ण जी कि एक और कृति से साक्षात्कार हुआ और सुब्रह्मण्यम जी के द्वारा उनकी एक और पुस्तक का नाम पता चला इसके लिए मैं हिन्दयुग्म और अनुराग जी का धन्यवादी हूँ

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