Monday, August 23, 2010

सुरमई अंखियों में नन्हा मुन्ना एक सपना दे जा रे.....एक स्वर्ग से उतरी लोरी, येसुदास की पाक आवाज़ में



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 467/2010/167

च्चों के साथ गुलज़ार साहब का पुराना नाता रहा है। गुलज़ार साहब को बच्चे बेहद पसंद है, और समय समय पर उनके लिए कुछ यादगार गानें भी लिखे हैं बिल्कुल बच्चों वाले अंदाज़ में ही। मसलन "लकड़ी की काठी", "सा रे के सा रे ग म को लेकर गाते चले", "मास्टरजी की आ गई चिट्ठी", आदि। बच्चों के लिए उनके लिखे गीतों और कहानियों में तितलियाँ नृत्य करते हैं, पंछियाँ गीत गाते हैं, बच्चे शैतानी करते है। जीवन के चिर परिचीत पहलुओं और संसार की उन जानी पहचानी ध्वनियों की अनुगूंज सुनाई देती है गुलज़ार के गीतों में। बच्चों के गीतों की बात करें तो एक जौनर इसमें लोरियों का भी होता है। गुलज़ार साहब के लिखे लोरियों की बात करें तो दो लोरियाँ उन्होंने ऐसी लिखी है कि जो कालजयी बन कर रह गई हैं। एक तो है फ़िल्म 'मासूम' का "दो नैना और एक कहानी", जिसे गा कर आरती मुखर्जी ने फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता था, और दूसरी लोरी है फ़िल्म 'सदमा' का "सुरमयी अखियों में नन्हा मुन्ना एक सपना दे जा रे"। येसुदास की नर्म मख़मली आवाज़ में यह लोरी जब भी सुनें दिल को एक सुकून दे जाती है। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इसी लोरी की बारी। हालाँकि हमने बच्चों की बात की, लेकिन आपको पता होगा कि फ़िल्म 'सदमा' में यह लोरी किसी बच्चे को सुलाने के लिए नहीं, बल्कि कमल हासन दिमागी तौर पर असंतुलित श्रीदेवी को सुलाने के लिए गा रहे होते हैं। 'सदमा' फ़िल्म आप में से अधिकतर लोगों ने देखी होगी, और देखनी भी चाहिए। यह भी हिंदी सिनेमा की एक क्लासिक फ़िल्म है जिसकी तारीफ़ जितनी भी की जाए कम है। 'सदमा' का निर्माण किया था राज एन. सिप्पी और रोमू एन. सिप्पी ने, कहानी, निर्देशन, स्क्रीनप्ले और सिनेमाटोग्राफ़ी था बालू महेन्द्र का। गुलज़ार साहब ने फ़िल्म के संवाद और गीत लिखे। फ़िल्म में संगीत था इलैयाराजा का। फ़िल्म की कहानी जितनी मर्मस्पर्शी थी, उतने ही मर्मस्पर्शी अभिनय से परदे पर इसे साकार किया कमल हासन और श्रीदेवी ने। फ़िल्म का वह रेल्वे स्टेशन का अंतिम सीन जैसे भुलाए नहीं भूलता!

आज हम गुलज़ार साहब द्वारा प्रस्तुत विशेष जयमाला कार्यक्रम का एक शुरुआती अंश पेश कर रहे हैं जिसमें गुलज़ार साहब फ़ौजी भाइयों से मुख़ातिब कुछ दिल की बातें शेयर कर रहे हैं, और जिन्हे पढ़ते हुए आपको अंदाज़ा होता रहेगा गुलज़ार साहब के वर्सेटायलिटी का। "फ़ौजी भाइयों, आदाब! बहुत दिन बाद फिर आपकी महफ़िल में शामिल हो रहा हूँ। इससे पहले जब भी आपके पास आया तो कोई ना कोई नई तरक़ीब, कोई ना कोई नई आग़ाश लेकर गानों की, जिसमें मैंने कई तरह के गानें आपको सुनाए, जैसे रेल की पटरी पर चलते हुए गानें सुनाए थे एक बार, वो तमाम गानें जिनमें रेल के पटरी की आवाज़ सुनाई देती है। और एक बार आम आदमी के मसलों पर गाने आपको सुनाए जो लक्ष्मण के कारटूनों जैसे लगते हैं। लेकिन मज़ाक के पीछे कहीं बहुत गहरे बहुत संजीदे दर्द भरे हुए हैं इन गानों में। बच्चों के साथ गाए गानें भी आपको सुनाए, खेलते कूदते हुए गानें, लोरियाँ सुनाए आपको। और बहुत से दोस्तों की चिट्ठियाँ जब आई, चाहने वालों की चिट्ठियाँ आई, जिनमें शिकायतें भी, गिले भी, शिकवे भी। उनमें एक बात बहुत से दोस्तों ने कही कि हर बार आप कुछ मज़ाक करके, हंस हंसाकर रेडियो से चले जाते हैं, जितनी बार आप आते हैं, हर बार हम आप से कुछ संजीदा बातें सुनना चाहते हैं, कि संजीदा सिचुएशन्स पर आप कैसे लिखते हैं, क्या लिखते हैं, और हाँ, ये किसी ने नहीं कहा कि क्यों लिखते हैं। फ़ौजी भाइयों, आप तो वतन की सरहदों पर बैठे हैं, और मैं आपको बहलाते हुए आपके परिवारों को भी बहलाने की कोशिश करता रहता हूँ। हाँ, उन सरहदों की बात कभी नहीं करता जो दिलों में पैदा हो जाती हैं। कभी जुड़ती हुई, कभी टूटती हुई, कभी बनती हुई, गुम होती हुई सरहदें, या सिर्फ़ हदें। इस तरह के रिश्ते सभी के ज़िंदगी से गुज़रते हैं, वो ज़िंदगी जिसे एक सुबह एक मोड़ पर देखा था तो कहा था, हाथ मिला ऐ ज़िंदगी, आँख मिलाकर बात कर।" दोस्तों, कुछ ऐसी ही बात फ़िल्म 'सदमा' के एक दूसरे गीत में गुलज़ार साहब ने लिखा था। याद आया "ऐ ज़िंदगी गले लगा ले"? इस गीत को भी हम आगे चलकर ज़रूर सुनवाएँगे कभी। आज अभी के लिए आइए सुनते हैं येसुदास की गाई लोरी, लेकिन ध्यान रहे कहीं सो मत जाइएगा...



क्या आप जानते हैं...
कि गुलज़ार साहब की पत्नी और अभिनेत्री राखी का जन्म तारीख है १५ अगस्त १९४७, यानी कि जिस दिन भारत को आज़ादी मिली थी।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)

१. ये दर्द भरा गीत किस गायक की आवाज़ में हैं - २ अंक.
२. ये फिल्माया गया गया है धर्मेन्द्र पर. फिल्म की नायिका बताएं - ३ अंक.
३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से - "चमन", फिल्म बताएं - १ अंक.
४ संगीतकार बताएं - २ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी विजय लक्ष्य के करीब है और अवध जी भी सही चल रहे हैं. प्रतिभा और किशोर जी की जोड़ी सही जवाबों के साथ हाज़िर हो रही हैं. कनाडा वाले हमारे सभी बंधुओं से गुजारिश है कि अपने बारे में कुछ परिचय स्वरुप सबके साथ बांटिय, अब आप इस ओल्ड इस गोल्ड परिवार का हिस्सा हैं अब

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

फेसबुक-श्रोता यहाँ टिप्पणी करें
अन्य पाठक नीचे के लिंक से टिप्पणी करें-

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

6 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

Film ki heroin : Meena kumari

AVADH का कहना है कि -

गायक: दर्द भरे गीतों के लिए सोज़ भरी आवाज़ के मालिक - मुकेश
अवध लाल

Pratibha Kaushal-Sampat का कहना है कि -

संगीतकार बताएं - Kayanji - Anandji


Pratibha Kaushal-Sampat
Ottawa, Canada

Apne aur Kishoreji ke baare mein bataaongi phir kabhi - abhi samay ka abhav hai...

Kishore Sampat का कहना है कि -

एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से - "चमन", फिल्म बताएं - Poornima
song: Tumhen Zindagi Ke Ujaale Mubaarak...

Kishore S.
Ottawa, Canada

Anonymous का कहना है कि -

बहारों ने मेरा चमन लूट कर,खिजा को ये इलजाम क्यों दे दिया.
कही यही तो नही वो गीत?
ना भी हो किन्तु मेरे दिल के इतना करीब है कि उसमे मेरी हार्त-बीत' को महसूस जा सकता है.
हा हा हा
क्या करूँ ?
ऐसिच हूं मैं तो.

Anonymous का कहना है कि -

बहारो ने मेरा चमन...ये तो मुखड़े में आ रहा है.
पूर्णिमा के गानों को तो जैसे मैं भूल-सी गई थी सिवाय 'हमसफ़र मेरे हमसफ़र पंख तुम परवाज़ हम......के.
सदमा के गीत गुल्जारजी ने लिखे हैं ,मालूम नही था.
रक्षाबंधन???
हा हा हा
'एक कविता लिखी थी मैंने '....हर बार जिसने बचायावो'तुम'थे,पर..भाई नही हो मेरे' गोस्वामीजी के लिए लिखी थी.ब्लोग पर है चाहो तो वहाँ हो आना.
moon-uddhv.blogspot.com
जानती हूं ना तुम आओगे ना शरद भैया या राज सर.
वड्डे लोग...वड्डी बातें और बीजी भी.पर कहूँगी एक बार आने के लिए.
क्या करूँ आदत से मजबूर हूं.क्योंकि ऐसिच हूं मैं तो.

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ

ओल्ड इज़ गोल्ड शृंखला

महफ़िल-ए-ग़ज़लः नई शृंखला की शुरूआत

भेंट-मुलाक़ात-Interviews

संडे स्पेशल

ताजा कहानी-पॉडकास्ट

ताज़ा पॉडकास्ट कवि सम्मेलन