ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 479/2010/179
दोस्तों नमस्कार! रमज़ान का पाक़ महीना चल रहा है और हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों पेश कर रहे हैं कुछ शानदार फ़िल्मी क़व्वालियों से सजी लघु शृंखला 'मजलिस-ए-क़व्वाली'। कल की क़व्वाली में यह कहा गया था कि जीना उसी का जीना होता है जिसे यह राज़ मालूम हो कि औरों के काम आने में ही सच्चा सुख है। कल चलते चलते हमनें यह भी कहा था कि आज की कड़ी में भी हम किसी राज़ की बात बताने वाले हैं। तो लीजिए अब वह वक़्त आ गया है। लेकिन राज़ की बात हम बता तो देंगे, पर फिर महफ़िल में जाने क्या हो! राज़ की बात यह कि आज है आशा भोसले का जन्मदिन। तो 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से हम आशा जी को दे रहे हैं जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ। ईश्वर उन्हें दीर्घायु करें और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें। उनकी संगीत साधना को सलाम करते हुए आज और कल, दोनों दिन हम उनकी गाई क़व्वाली का आनंद लेंगे। अब एक और राज़ की बात यह कि अब हम आपको क़व्वाली के इतिहास की कुछ और बातें बताने वाले हैं। जैसा कि दूसरी कड़ी में हमने बताया था कि क़व्वाली का जन्म करीब करीब उसी वक़्त से माना जाता है जब मुहम्मद का जन्म हुआ था। क़व्वाली के रूप-रंग का पहली बार व्याख्या १०-वीं और ११-वीं शताब्दी के दौरान हुआ था। क़व्वाली के विशेषताओं, या फिर युं कहिए कि नियमों को, क़व्वाली की परिभाषा के लिए जिन्हें श्रेय दिया जाता है वो हैं अल-ग़ज़ली। हालाँकि उनसे पहले भी दूसरे इस्लामी विशेषज्ञों ने इस तरह के संगीत के आध्यात्मिक पक्ष पर प्रकाश डाल चुके थे। भारत और पाक़िस्तान में क़व्वाली की लोकप्रियता और प्रचार-प्रसार में सूफ़ी के चिश्ती स्कूल का बड़ा हाथ है। ऐसी मान्यता है कि इस स्कूल की स्थापना ख़्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती (११४३ - १२३४) ने की थी, लेकिन इसका कोई प्रमाण नहीं है। एक और संत जिन्होंने क़व्वालियों के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण कार्य किया, वो हैं शेख़ निज़ामुदीन औलिया (१२३६ - १३२५)। वो एक महात्मा संत थे जो क़व्वालियों के ज़रिए शिक्षा देते थे और अल्लाह का गुणगान करते थे। चिश्ती और निज़ामुद्दीन औलिया, दोनों ही अपने अपने जगह प्रेरणा स्रोत रहे और हर साल लाखों की संख्या में लोग उनके मज़ार पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने पहुँचते हैं। लेकिन एक नाम जो सब से उपर आता है जब क़व्वालियों के प्रचार प्रसार की बात चलती है, वो नाम है अमीर ख़ुसरौ (१२५४ - १३२४) का। उनका परिचय एक दार्शनिक और संगीतज्ञ के रूप में मिलता है। उन्होंने क़व्वाली के विकास में बहुत से अलग अलग साज़ों का मिश्रण करवाया जो अलग अलग संस्कृति से उन्होंने बटोरे थे, और इस तरह से क़व्वाली में भारत, परशिया (इरान) और तुर्की के संगीत को मिलाया और आज जो क़व्वाली का रूप हम पाते हैं, उनमें भी वही बात सामने आती है।
और अब आज की क़व्वाली। राज़ की बात कह दूँ तो जाने महफ़िल में फिर क्या हो! जी नहीं, अब और किसी राज़ में हम आपको नहीं उलझा रहे हैं। फ़िल्म 'धर्मा' की यह क़व्वाली आज पेश-ए-ख़िदमत है आशा भोसले, मोहम्मद रफ़ी और साथियों की आवाज़ों में। १९७३ में बनी इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे नवीन निश्चल, रेखा और प्राण। फ़िल्म में गीत लिखे वर्मा मलिक ने तथा संगीत था सोनिक ओमी की जोड़ी का। इस क़व्वाली के बनने के पीछे एक मज़ेदार क़िस्सा है, पढ़िये ओमी जी की शब्दों में, जो उन्होंने कहे थे विविध भारती के किसी कार्यक्रम में। "बम्बई में क़व्वाल बहुत हैं और क़व्वाली के कॊम्पीटिशन्स भी होते रहते हैं। तो एक बार हमारे पास रिक्वेस्ट आया कि हम वहाँ किसी क़व्वाली कॊम्पीटिशन में जज बन कर जाएँ। हम उस कॊम्पीटिशन में गए, क़व्वाली शुरु हुई, पर देखते ही देखते उसमें गाली गलोच शुरु हो गई, और उसके क्लाइमैक्स में एक दूसरे ने चाकू तक निकाल लिए और लड़ाई शुरु हो गई। हम वहाँ से निकलने लगे तो ऒर्गेनाइज़र ने हमसे कहा कि आप जज हैं, अपना फ़ैसला तो सुनाते जाइए। हमने कहा कि उसके लिए किसी चाकूबाज़ को ही बुलाइए, यह हमारा काम नहीं। तो इस घटना के कुछ दिन बाद फ़िल्म 'धर्मा' के लिए एक ऐसा ही सिचुएशन आई जिसमें प्राण और बिंदु के बीच क़व्वाली की टक्कर होनी थी। तो वो घटना हमें याद आई और उससे हमें बहुत हेल्प मिली इस क़व्वाली को तैयार करने में। वर्मा मलिक ने इसके बोल लिखे थे।" तो लीजिए, आप भी मज़ा लीजिए प्राण साहब और बिंदु जी के बीच की इस लड़ाई का रफ़ी साहब और आशा जी की आवाज़ों के साथ। आशा जी को जन्मदिन की एक बार फिर से हार्दिक बधाई।
क्या आप जानते हैं...
कि सोनिक ओमी की जोड़ी बनने से पहले सोनिक जी १९५२ में 'ममता' और 'ईश्वर भक्ति' तथा १९५९ में एक पंजाबी फ़िल्म में संगीत दे चुके थे।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. महेंद्र कपूर और आशा भोसले के साथ किस गायिका की आवाज़ सुनाई देती है इस कव्वाली में - ३ अंक.
२. संगीतकार बताएं - २ अंक.
३. मुखड़े में शब्द है -"आग", गीतकार बताएं - २ अंक.
४ डॊ. अचला नागर के लिखे एक नाटक पर आधारित थी ये क्लास्सिक सामाजिक फिल्म नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी फॉर्म में हैं, कनाडा टीम की वापसी सुखद लगी, महेंद्र जी को आनंद आया और हमें भी
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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8 श्रोताओं का कहना है :
salma agha (singer)
*****
PAWAN KUMAR
are salamaa aagha to nhi
ha ha ha
hm bhii chhupaate hain yun to chehra hijaab me ,aag lgti hai ya nhi? nhi malum
हे भगवान! ब्लोग पर कमेंट्स मे जीरो दिख रहा था. चूक गई बेटा इंदु तू तो अब?
संगीतकार रवि.
यूँ गुलाम अली जी की गजल भी थी.
संगीतकार बताएं - Ravi
Pratibha Kaushal-Sampat
Ottawa, Canada
बच्चों को पालना, उन्हें अच्छे व्यवहार की शिक्षा देना भी सेवाकार्य है, क्योंकि यह उनका जीवन सुखी बनाता है। - स्वामी रामसुखदास
मुखड़े में शब्द है -"आग", गीतकार बताएं - Kamal Hasan
Induji ka uttar padhne mein der ho gayi,isliye teesre sutra ka parinam likh diya. Umeed hain aap isse swikar karenge.
Dhanyawaad...
Pratibha Kaushal-Sampat
Ottawa, Canada
डॊ. अचला नागर के लिखे एक नाटक पर आधारित थी ये क्लास्सिक सामाजिक फिल्म नाम बताएं - NIKAAH
Kishore Sampat
Canada
इसके गीतकार थे " हसन कमाल"
( ना कि "Kamal Hasan" - जैसा कि प्रतिभा जी ने लिख दिया है )
अन्यथा ना लें ...मगर जवाब हमारा ही ठीक मना जाएगा !! क्यों जी ?? ;))
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
आंच पर संबंध विस्तर हो गए हैं, “मनोज” पर, अरुण राय की कविता “गीली चीनी” की समीक्षा,...!
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