Monday, October 18, 2010

खिजां के फूल पे आती कभी बहार नहीं...जब दर्द में डूबी किशोर की आवाज़ को साथ मिला एल पी के सुरों का



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 507/2010/207

'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत से सजी फ़िल्मों के गानें उन्ही पर केन्द्रित लघु शृंखला 'एक प्यार का नग़मा है' के अंतर्गत। आज के अंक में आवाज़ किशोर कुमार की। सन् १९६९ में एक हिट फ़िल्म आयी थी 'दो रास्ते', जिसके गीतों ने भी ख़ूब धूम मचाये, और आज भी अक्सर कहीं ना कहीं से सुनाई दे जाते हैं। फ़िल्म के सभी गानें अलग अलग मूड के थे और हर गीत लोकप्रिय हुआ था। लता का गाया "बिंदिया चमकेगी" और "अपनी अपनी बीवी पे सबको ग़ुरूर है", लता-रफ़ी का "दिल ने दिल को पुकारा मुलाक़ात हो गई", रफ़ी का "ये रेश्मी ज़ुल्फ़ें", मुकेश का "दो रंग दुनिया के और दो रास्ते" जैसे गानों के साथ साथ एक ग़मज़दा नग़मा भी था किशोर दा का गाया हुआ। उन दिनों रफ़ी और मुकेश ही पार्श्वगायकों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। लेकिन किशोर कुमार तेज़ी से लोकप्रियता के पायदान चढ़ते जा रहे थे और ७० के दशक में जाकर पूरी तरह से छा गए और लगभग सभी समकालीन नायकों की आवाज़ बन गए। 'दो रास्ते' में किशोर दा का गाया गीत था "ख़िज़ाँ के फूल पे आती कभी बहार नहीं, मेरे नसीब में ऐ दोस्त तेरा प्यार नहीं"। फ़िल्म संगीत के इतिहास का यह एक यादगार ग़मगीन गीत है और ख़ास कर जब भी किशोर दा के गाए सैड सॊंग्स की बात चलती है तो इस गीत का ज़िक्र करना अनिवार्य हो जाता है। आनंद बक्शी साहब का ख़ास स्टाइल इस गीत के बोलों में महसूस किया जा सकता है। और रही बात एल.पी के संगीत की, तो जिस तरह से थिरकन और ज़बरदस्त ऒर्केस्ट्र्शन वाले गीतों से वो लोगों को झूमने और थिरकने पर मजबूर कर देते हैं, इस गीत के ज़रिए उन्होंने यह साबित किया कि इस तरह के ग़मज़दा गीतों से भी वो सुनने वालों को सम्मोहित कर सकते हैं। हास्य रस और ख़ुशी के गीत गाने वाले किशोर कुमार, ज़्यादातर प्यार और मिलन के अंदाज़ के गीत लिखने वाले आनंद बक्शी, और ज़्यादातर थिरकदार गानें कम्पोज़ करने वाले एल.पी, ये तीनों साथ में मिल कर प्रस्तुत गीत की रचना की जिसे हम अंग्रेज़ी में "a sad song par excellence" भी कह सकते हैं। यह गीत इन तीनों महान कलाकारों की वर्सेटाइल प्रतिभा का परिचय देता है।

दोस्तों, आइए आज फिर से एक बार रुख़ करें प्यारेलाल जी के उसी इंटरव्यु की तरफ़ और आज उस अंश को पढ़ें जिसमें आज के प्रस्तुत गीत का ज़िक्र छिड़ा है।

कमल शर्मा: किशोर दा से जुड़ी कोई ख़ास बात, किसी गाने की रेकॊर्डिंग से जुड़ी कोई बात याद है आपको?

प्यारेलाल: यह जो गाना है "ख़िज़ाँ के फूल पे आती कभी बहार नहीं, मेरे नसीब में ऐ दोस्त तेरा प्यार नहीं", इससे पहले हमने गाना रेकॊर्ड किया था उनका "फूल आहिस्ता फेंको", मुकेश जी गाये, और ये आये थे शाम को, इनको रात की फ़्लाइट पकड़नी थी। तो मुखड़ा बनाया हुआ था "ख़िज़ाँ के फूल", अंतरा नहीं बनाया था। तो वहीं बैठ के लक्ष्मी जी ने, मैं इधर बैठ कर म्युज़िक ये कर रहा था, वहाँ बैठे बैठे बक्शी जी ने अंतरा लिखा, वहीं अंदर बैठ कर लक्ष्मी जी कम्पोज़ कर रहे थे। और यह गाना रात को १२:३० बजे हमने, मतलब, ८:३० बजे शुरु किया और १२:३० बजे यह गाना खतम किया। तो आप देखिए यह गाना वण्डरफ़ुल बना है।

सचमुच, इतने कम समय में यह गाना बना, फिर भी कालजयी बन कर रह गया है। इसी से यह प्रमाणित होता है कि अच्छे काम के लिए वक़्त नहीं बल्कि प्रतिभा और सृजनशीलता का होना ज़्यादा ज़रूरी है। और फ़िल्म जगत को ऐसे गुणी और महान कलाकार मिले हैं समय समय पर, जिन्होंने इस सुरीले ख़ज़ाने को समृद्ध किया है आने वाली पीढ़ियों के लिए, सुनने वालों के लिए। लीजिए इस गीत का आनंद उठाइए किशोर दा की दर्द भरी आवाज़ में। फ़िल्म 'दो रास्ते' का यह गीत फ़िल्माया गया है अभिनेता राजेश खन्ना पर।



क्या आप जानते हैं...
कि लक्ष्मीकांत ने ५० के दशक के कई मशहूर गीतों में मैंडोलिन बजाया था, उदाहरण स्वरूप फ़िल्म 'लाजवन्ती' के "कोई आया धड़कन कहती है" में उनका बजाया मैंडोलिन आज तक हमें चमत्कृत कर देता है।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली ०६ /शृंखला ०१
ये धुन उस गीत के पहले इंटर ल्यूड की है, सुनिए -


अतिरिक्त सूत्र - गायिका हैं लता मंगेशकर

सवाल १ - गीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम ऐसा है जिसके आने से बच्चों को बड़ा डर सताता है, नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म में थे विनोद खन्ना, अभिनेत्री बताएं - २ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
वाह श्याम कान्त जी आगे निकल आये हैं....८ अंकों पर शरद जी हैं अभी भी ६ अंकों पर. अमित जी ३ अंकों पर आ गए हैं. पी सिंह जी ने भी एक अंक जोड़ लिया अपने खाते में....बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

फेसबुक-श्रोता यहाँ टिप्पणी करें
अन्य पाठक नीचे के लिंक से टिप्पणी करें-

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

8 श्रोताओं का कहना है :

ShyamKant का कहना है कि -

3- Tanuja

chintoo का कहना है कि -

2-- Imtihaan

Unknown का कहना है कि -

1- Majrooh Sultanpuri

Shankar Laal ;-) का कहना है कि -

वैसे बच्चो को किसी भी चीज़ से दर नहीं लगता पर वे एक चीज़ से बहुत डरते हैं वो है "इम्तिहान"
इसलिए प्रश्न २ का आंसर है "इम्तिहान (१९७४)"

इस फिल्म की ख़ास बात यह है की विनोद खन्ना ने इसमें एक टीचर की भूमिका अदा की .
वह एक सिद्धांतवादी टीचर हैं जो बिगडैल बच्चों को सुधरता है.

AVADH का कहना है कि -

सच है फिल्म 'इम्तेहान' एक अंग्रेजी फिल्म "To Sir With Love" से प्रेरित फिल्म थी. उस फिल्म में प्रख्यात श्यामवर्णीय (black) अभिनेता Sir Sydney Poitier ने वोह रोल अभिनीत किया था जिसे विनोद खन्ना ने बाद में निभाया. शायद सर सिडनी को इस अभिनय के लिए ऑस्कर पुरस्कार भी मिला था.
अवध लाल

AVADH का कहना है कि -

सच है फिल्म 'इम्तेहान' एक अंग्रेजी फिल्म "To Sir With Love" से प्रेरित फिल्म थी. उस फिल्म में प्रख्यात श्यामवर्णीय (black) अभिनेता Sir Sydney Poitier ने वोह रोल अभिनीत किया था जिसे विनोद खन्ना ने बाद में निभाया. शायद सर सिडनी को इस अभिनय के लिए ऑस्कर पुरस्कार भी मिला था.
अवध लाल

रोमेंद्र सागर का कहना है कि -

जवाब इतना आसान था....पर जब तक मेल हम तक पहुंची , जवाब देने की कोई तुक ही नही बची ! ( अक्सर यही होता है ..क्या करें )

Anonymous का कहना है कि -

रोज शाम आती थी मगर ऐसी ना थीरोज रोज घटा छाती थी मगर ऐसी ना थी
ये आज मेरी जिंदगी में कौन आ गया'
हा हा हा
अरे! और कौन स्पीकर ...स्पीकर वो एकदम अच्छे है सी.पी.यु. के पीछे कोई अटेचमेंट होता है बच्चो के स्पीकर खिचने से वो खराब हो गया था.अभी जस्ट मेकेनिक ने आ कर पिन आगे लगा दी और मैंने इतने दिनों बाद इस प्रोग्राम का मजा लिया.उत्तर सब आ चुके हैं पर...मैं बहुत खुश हूँ.स्टुपिड इतनी कि पिन आगे लगा कर चेक तक नही किया.
क्या करूं? ऐसीच हूँ मैं

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ

ओल्ड इज़ गोल्ड शृंखला

महफ़िल-ए-ग़ज़लः नई शृंखला की शुरूआत

भेंट-मुलाक़ात-Interviews

संडे स्पेशल

ताजा कहानी-पॉडकास्ट

ताज़ा पॉडकास्ट कवि सम्मेलन