Wednesday, December 29, 2010

हम बने तुम बनें एक दूजे के लिए....और एक दूजे के लिए ही तो हैं आवाज़ और उसके संगीत प्रेमी श्रोता



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 559/2010/259

फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के चुने हुए युगल गीतों को सुनते हुए आज हम क़दम रख रहे हैं ८० के दशक में। कल के गीत से ही आप ने अंदाज़ा लगाया होगा कि ७० के दशक के मध्य भाग के आते आते युगल गीतों का मिज़ाज किस तरह से बदलने लगा था। उससे पहले फ़िल्म के नायक नायिका की उम्र थोड़ी ज़्यादा दिखाई जाती थी, लेकिन धीरे धीरे फ़िल्मी कहानियाँ स्कूल-कालेजों में भी समाने लगी और इस तरह से कॊलेज स्टुडेण्ट्स के चरित्रों के लिए गीत लिखना ज़रूरी हो गया। नतीजा, वज़नदार शायराना अंदाज़ को छोड़ कर फ़िल्मी गीतकार ज़्यादा से ज़्यादा हल्के फुल्के और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करने लगे। कुछ लोगों ने इस पर फ़िल्मी गीतों के स्तर के गिरने का आरोप भी लगाया, लेकिन क्या किया जाए, जैसा समाज, जैसा दौर, फ़िल्म और फ़िल्म संगीत भी उसी मिज़ाज के बनेंगे। ख़ैर, आज हम बात करते हैं ८० के दशक की। इस दशक के शुरुआती दो तीन सालों तक तो अच्छे गानें बनते रहे और लता और आशा सक्रीय रहीं। ८० के इस शुरुआती दौर में जो सब से चर्चित प्रेम कहानी पर बनी फ़िल्म आई, वह थी 'एक दूजे के लिए'। यह फ़िल्म तो जैसे एक ट्रेण्डसेटर सिद्ध हुई। सब कुछ नया नया सा था इस फ़िल्म में। नई अभिनेत्री रति अग्निहोत्री रातों रात छा गईं और दक्षिण के कमल हासन ने बम्बई में अपना सिक्का जमा लिया। और साथ ही गायक एस. पी. बालसुब्रह्मण्यम ने भी तो अपना जादू चलाया था इस फ़िल्म में। आनंद बक्शी के लिखे गीत, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के सुपरडुपर हिट संगीत ने ऐसी धूम मचाई जिसकी गूँज आज तक सुनाई देती है। वैसे एल.पी को इस फ़िल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार तो नहीं मिला था, लेकिन सब से बड़ा पुरस्कार इनके लिए तो यही है कि आज भी आये दिन इस फ़िल्म के गीत कहीं ना कहीं से सुनाई दे जाते हैं। चाहे "तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन हो" या "हम तुम दोनों जब मिल जाएँगे", "मेरे जीवन साथी प्यार किए जा" हो या "सोलह बरस की बाली उमर को सलाम", या फिर फ़िल्म का सब से लोकप्रिय शीर्षक गीत "हम बने तुम बने एक दूजे के लिए"। तो आइए दोस्तों, ८० के दशक को सलाम करते हुए आज इसी गीत को सुना जाए लता और एस.पी की युगल आवाज़ों में।

यह गीत अपने आप में एक रोमांटिक कॊमेडी है, एक बड़ा ही अनूठा और एकमात्र गीत है कि जिसमें नायक और नायिका दो अलग अलग प्रदेशों से होने की वजह से एक दूसरे की भाषा समझ नहीं पाते हैं, जिसकी वजह से गीत में हास्य रस समा जाता है। हिंदी तो है ही, अंग्रेज़ी और तमिल के शब्दों का भी इस्तेमाल है इस गीत में। यहाँ तक की बक्शी साहब ग़ालिब के नाम को भी ले आये हैं जब वो लिखते हैं कि "इश्क़ पर ज़ोर नहीं ग़ालिब ने कहा है इसीलिए..."। और सोने पे सुहागा इस गीत को तब लगती है जब आख़िर में लता जी हँसती हुई सुनाई देती है। सचमुच, लता जी की गाती हुई आवाज़ जितनी मधुर है, शायद उससे भी मीठी है उनकी हँसी। बहुत से गीतों में उनकी इस तरह की हँसी और मुस्कुराहट का संगीतकारों ने समय समय पर इस्तेमाल किया है, मसलन, "भँवरे ने खिलाया फूल", "सुन बाल ब्रह्मचारी मैं हूँ कन्याकुमारी", "थोड़ी सी ज़मीन थोड़ा आसमाँ", आदि। आप भी कुछ और गीतों की याद दिलाइए ना! ख़ैर, वापस आते हैं 'एक दूजे के लिए' पर, यह १९८१ की फ़िल्म थी। १९७८ से १९८१ तक एल.पी ने लगातार चार बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता था, और इस कड़ी को ख़य्याम साहब ने तोड़ा 'उमरावजान' के ज़रिए। पंकज राग के शब्दों में "व्यावसायिक्ता और लोकप्रियता के पायदान पर नम्बर एक पर स्थापित लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को ख़य्याम के अतिरिक्त आर. डी. बर्मन की 'कुदरत', 'याराना', 'साथी', और 'लवस्टोरी', शिव-हरि की 'सिलसिला', वार्षिक बिनाका गीतमाला में चोटी के गीत "मेरे अंगने में" वाले कल्याणजी-आनंदजी की 'लावारिस' और बप्पी लाहिड़ी की 'अरमान' ने कड़ी चुनौती दी और मिश्र शिवरंजनी में "तेरे मेरे बीच में", अहीर भरवी में "सोलह बरस की" और "हम बने तुम बने" जैसे गीतों के साथ 'एक दूजे के लिए' ही उनका उत्तर बनी।" तो आइए दोस्तों, ८० के दशक के इस महत्वपूर्ण फ़िल्म का यह सदाबहार युगल गीत सुनते हैं।



क्या आप जानते हैं...
कि एस. पी. बालसुब्रहमण्यम को 'एक दूजे के लिए' फ़िल्म के गायन के लिए १९८२ का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 10/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - ८० के दशक का एक और हिट गीत.

सवाल १ - पुरुष गायक बताएं - २ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
श्याम जी कुछ दिनों से गायब हैं, वैसे शरद जी ने इस शृंखला में अजय बढ़त बना ली है, इंदु जी एक दम सही कहा आपने और देखिये आज के गीत का शीर्षक भी यही है. अमित जी ओल्ड इस गोल्ड लेकर हम भारतीय समानुसार शाम 6.30 पर हाज़िर होते हैं. अगर आप ठीक समय पर आ सकें तो, हमारे दिग्गजों को टक्कर दे सकते हैं

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

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4 श्रोताओं का कहना है :

रोमेंद्र सागर का कहना है कि -

पुरुष गायक : मनहर उधास

शरद तैलंग का कहना है कि -

Geetkar : Anand Bakshi

अमित तिवारी का कहना है कि -

फिल्म का नाम : प्रेम रोग

Anonymous का कहना है कि -

तु कल चला जायेगा तो मैं क्या करूँगा' फिल्म नाम के गाने से बहुत मिलता जुलता म्युज़िक है इसका .तो चलो फैंका.लग गया तो तीर नही तो तुक्का.
अब मैं क्या करू? मैं तो ऐसिच हूँ -फेंकू
हा हा हा
नव वर्ष की ढेरो शुभ कामनाएं....एडवांस में रे बाबा!

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