ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 566/2010/266
नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक नई सप्ताह के साथ हम हाज़िर हैं दोस्तों। फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के गीतों को सुनने और उनके बारे में जानने का सिलसिला जारी है। इन दिनों हम करीब से जान रहे हैं सी. रामचन्द्र को जिनके स्वरबद्ध और गाये हुए गानें हम शामिल कर रहे हैं उन पर केन्द्रित शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' में। दोस्तों, युं तो सी. रामचन्द्र ने ज़्यादातर युगल गानें लता जी के साथ ही गाये थे, लेकिन एक वक़्त ऐसा भी आया कि जब उन दोनों के बीच अनबन हो गई और लता जी ने उनके लिए गाना बंद कर दिया। इसके बारे में विस्तार से हम कल की कड़ी में चर्चा करेंगे, आज बस इतना कहते हैं कि लता का विकल्प आशा बनीं और ५० के दशक के आख़िर के कुछ सालों में अन्नासाहब ने आशा भोसले से कई गीत गवाये। तो आइए आज उन चंद सालों में सी. रामचन्द्र और आशा भोसले के संगम से उत्पन्न गीतों की बात करें। इन फ़िल्मों में जो नाम सब से उपर आता है, वह है १९५८ की फ़िल्म 'नवरंग'। आज इसी फ़िल्म से एक गीत आपको सुनवाने जा रहे हैं। वैसे इस फ़िल्म के दो गीत हम आपको सुनवा चुके हैं - "तू छुपी है कहाँ" (आशा-मन्ना) और "आधा है चन्द्रमा" (आशा-महेन्द्र)। लेकिन आज हम सुनेंगे आशा और चितलकर यानी सी. रामचन्द्र की आवाज़ों में एक बड़ा ही अद्भुत गीत "कारी कारी कारी अंधियारी सी रात"। इस गीत में चितलकर काव्य शैली में बोल गाते हैं, और उसके बाद आशा शास्त्रीय संगीत पर उन्हीं बोलों को गा उठती हैं और एक अलग ही समा सा बंध जाता है। सावन पर बहुत सारे, ढेर सारे फ़िल्मी गीत बनें हैं, लेकिन अगर उत्कृष्ट गीतों को इस लम्बी फ़ेहरिस्त से छाँटा जाये तो इस गीत को निश्चित रूप से उसमें स्थान मिलेगा। इस गीत से सी. रामचन्द्र के ना केवल संगीतकार के रूप में महानता का पता चलता है, बल्कि एक बेहतरीन और प्रतिभाशाली गायक होने का भी आभास दिलाता है। भरत व्यास के काव्यात्मक शब्दों ने गीत की सुंदरता में चार चांद लगा दिया है, और आशा भोसले की आवाज़ तो सोने पे सुहागा का काम करती है। गीत के संगीत संयोजन में अन्य साज़ों के बीच में शहनाई भी सुनाई देती है जिसे रामलाल ने बजाया था। जी हाँ, वही रामलाल जो 'सेहरा' और 'गीत गाया पत्थरों ने' जैसी फ़िल्मों में संगीत दिया था।
हम बात कर रहे थे चितलकर और आशा भोसले के गाये गीतों की। 'नवरंग' के गीतों का लेखक पंकज राग ने अपनी किताब 'धुनों की यात्रा' में जिन शब्दों में वर्णन किया है, वो इस प्रकार है - "नवरंग के लोकप्रिय गीतों में आशा और महेन्द्र का वर्चस्व रहा। पर मालकौंस पर आधारित "आधा है चन्द्रमा" और "तू छुपी है कहाँ" जैसे हिट गीतों हों, अभिनेत्री संध्या की शैली के अनुरूप अनूठे इठलाते अंदाज़ में गाया "आ दिल से दिल मिला ले" या प्रणय को एक पवित्र भाव से प्रस्तुत करता "तुम मेरे मैं तेरी" हों, सौंदर्य का एक कोमल संगीतात्मक वर्णन करता "श्यामल श्यामल वरण" हो, कवि-सम्मेलन की शैली का "कविराजा कविता के मत कान मरोड़ो" या पहाड़ी के सुरों को लेकर बनाये गये होली गीत "जा रे हट नटखट" का आह्लाद हो, लोकप्रियता के बावजूद इन गीतों की शैली सी. रामचन्द्र वाली कम और वी. शांताराम के प्रभाववाली अधिक लगती है।" ठीक ही तो कहा है पंकज जी ने, भले ही ये गानें चले हों, लेकिन इनमें निस्संदेह वो बात नहीं आई जो लता के लिए बनाये उनके गीतों में आते थे। १९५९ की फ़िल्म 'पैगाम' में भी आशा की आवाज़ थी और १९६० में 'आँचल' में आशा-महेन्द्र का गाया "गा रही है ज़िंदगी" और सुमन ने लता की शैली में "सांवरिया रे अपनी मीरा को भूल ना जाना" गाया, लेकिन ये तमाम गानें ज़्यादा चले नहीं। १९६० में ही आशा और चितलकर ने फ़िल्म 'सरहद' में "नाचो घूम घूम घूम के" गाया जो पश्चिमी रिदम पर था। इसी फ़िल्म में आशा और साथियों का गाया "आजा रे लागे न मोरा जिया" में सी. रामचन्द्र का विशिष्ट प्रभाव कम ही नज़र आया। प्रभु दयाल निर्देशित १९६१ की फ़िल्म 'अमर रहे यह प्यार' में आशा की गाई "मेरे अंधेरे घर में चाँद कोई छाया" की सफलता भी सीमित ही रही। १९६१ में ही लता और सी. रामचन्द्र का एक बार फिर साथ हुआ शांताराम की ही फ़िल्म 'स्त्री' में। तो आइए अब आज का गीत सुना जाये। आशा भोसले और चितलकर रामचंद्र की आवाज़ में फ़िल्म 'नवरंग' की यह सुंदर रचना।
क्या आप जानते हैं...
कि सी. रामचन्द्र अपनी धुनों के नोटेशन्स एक पॊकेट डायरी में लिखा करते थे। एक दिन वह डायरी फोकेट्मार हो गई और उन्हें बहुत नुकसान हुआ। इस क़िस्से का ज़िक्र गायिका ललिता देवूलकर से करते वक़्त वो रो पड़े थे।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 07/शृंखला 07
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र -इतना सुनने के बाद गीत पहचानना मुश्किल नहीं.
सवाल १ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - आवाज़ पहचाने - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह अमित जी, बहुत बधाई....दीपा जी और हिन्दुस्तानी जी को भी सही जवाब की बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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5 श्रोताओं का कहना है :
गीतकार बताएं - राजिंदर कृषन
आवाज़ है- "लता मंगेशकर"
१९५३ में निर्मिंत बीना रॉय और प्रेमनाथ द्वारा अभिनीत 'शगूफा' फिल्म का गाना है.
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