Monday, May 2, 2011

ऋतु आये ऋतु जाए...अनिल दा का एक पसंदीदा गीत जिसमें मन्ना और लता ने सांसें फूंकी



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 647/2010/347

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के कल के अंक में हमने भारतीय फिल्म संगीत जगत की ऐतिहासिक फिल्म 'बसन्त बहार' और उस फिल्म में स्वर शिल्पी मन्ना डे द्वारा गाये गए गीतों की चर्चा की थी। आज के अंक में हम मन्ना डे के शास्त्रीय संगीत के प्रति अनुराग की चर्चा को ही आगे बढ़ाते हैं। पहली कड़ी में इस बात पर चर्चा हो चुकी है कि मन्ना डे को प्रारम्भिक संगीत शिक्षा उनके चाचा कृष्णचन्द्र डे से प्राप्त हुई थी। मुम्बई आने से पहले उस्ताद दबीर खां से भी उन्होंने ख़याल गायकी सीखी थी। मुम्बई आकर भी उनकी संगीत सीखने की पिपासा शान्त नहीं हुई, उन्होंने उस्ताद अमान अली खां और उस्ताद रहमान अली खां से संगीत सीखना जारी रखा। अपने संगीतबद्ध किए गीतों में रागों का हल्का-फुल्का प्रयोग तो वो करते ही आ रहे थे, फिल्म 'बसन्त बहार' में राग आधारित गीतों के गायन से उनकी छवि ऐसी बन गई कि जब भी कोई संगीतकार राग आधारित गीत तैयार करता था, उसे गाने के लिए सबसे पहले मन्ना डे का नाम ही सामने आता था। शास्त्रीय संगीत आधारित गीतों के लिए मन्ना डे हर संगीतकार की पहली पसन्द बन गए थे।

संगीतकार अनिल विश्वास मन्ना डे की प्रतिभा को बहुत अच्छी तरह पहचानते थे। 1953 में फिल्म 'हमदर्द' के लिए उन्होंने संगीत रचनाएँ की थी। इस फिल्म का एक गीत उन्होंने 'रागमाला' में तैयार किया था। "रागमाला' संगीत का वह प्रकार होता है, जब किसी गीत में एक से अधिक रागों का प्रयोग हो और सभी राग स्वतंत्र रूप से रचना में उपस्थित हों। अनिल विश्वास ने गीत के चार अन्तरों को चार अलग- अलग रागों में संगीतबद्ध किया था। उन दिनों का चलन यह था कि ऐसे गीतों को गाने के लिए फिल्म जगत के बाहर के विशेषज्ञों को बुलाया जाता था। परन्तु अनिल विश्वास ने ऐसा नहीं किया। यह एक युगल गीत था, जिसे गाने के लिए उन्होंने पुरुष स्वर के लिए मन्ना डे को और नारी स्वर के लिए लता मंगेशकर का चयन किया। अनिल दा से अपने मधुर सम्बन्धों के बारे में चर्चा करते हुए मन्ना डे नें डा. मन्दार से कहा भी था -"अनिल दा अच्छे इन्सान, मधुर गायक और अद्भुत संगीतकार थे। उन्हें उर्दू शेर-ओ-शायरी का बेहद शौक था। वे प्रायः मुझे 'लॉन्ग ड्राइव' पर लिवा ले जाते थे। मैं कुछ समय तक उनका सहायक रहा और उस दौर मे मैनें उनसे बहुत कुछ सीखा। वह निर्विवाद रूप से कुशल संगीत सर्जक थे।" मन्ना डे की क्षमता पर अनिल विश्वास को भरोसा था और इसीलिए यह महत्वाकांक्षी गीत उन्हें दिया भी गया था।

फिल्म 'हमदर्द' के इस प्रसंग में अभिनेता शेखर एक अन्ध-गायक की भूमिका में हैं, जो निम्मी को संगीत की शिक्षा दे रहे हैं। गीत के बोल हैं -"ऋतु आए ऋतु जाए सखी री, मन के मीत न आए...."। गीत की स्थायी की पंक्ति -"ऋतु आए ऋतु जाए...." से लेकर पहले अन्तरे के अन्त ".......करूँ मैं कौन उपाय" तक ज्येष्ठ मास के सूर्य की तपिश और विरह से व्याकुल नायिका का चित्रण करने के लिए राग 'गौड़ सारंग', दूसरे अन्तरे में -"बरखा ऋतु बैरी हमार....." से लेकर "....बिंदिया करे पुकार" तक राग 'गौड़ मल्हार', तीसरे अन्तरे में "पी बिन सूना री....." से लेकर "....मेरा दिल भी अँधेरा" तक प्रातःकालीन राग 'जोगिया' तथा चौथे अन्तरे में -"आई मधु ऋतु..." से लेकर "....कब लग करूँ सिंगार" तक राग 'बहार' में पूरे गीत को पिरोया गया है। इस प्रकार मन्ना डे और लता मंगेशकर ने रागानुकूल स्वरों की शुद्धता बनाए रखते हुए इस अनूठे गीत को गाया है। गीतकार प्रेम धवन हैं। इस गीत को ऐतिहासिक बनाने में वाद्य संगीत के श्रेष्ठतम कलाकारों का योगदान भी रहा। गीत में सुप्रसिद्ध बांसुरी वादक पन्नालाल घोष और सारंगी वादक पं. रामनारायण ने संगति की थी। रिकार्डिंग पूरी हो जाने के बाद जाने-माने सितार-नवाज उस्ताद विलायत खां ने कहा था -' फिल्म संगीत जगत में आज एक श्रेष्ठतम गीत रिकार्ड हुआ है'।| स्वयं मन्ना डे भी इस गीत को अपने श्रेष्ठ गीतों की श्रेणी में शीर्ष पर मानते हैं। आइए आज हम प्रेम धवन के लिखे, अनिल विश्वास द्वारा संगीतबद्ध किये तथा मन्ना डे व लता मंगेशकर के स्वरों में 'हमदर्द' फिल्म का यह 'रागमाला' गीत सुनते हैं -

संस्करण ०१

संस्करण २


(हमदर्द के क्लिप १ में गीत का पहला, दूसरा और तीसरा अन्तरा है किन्तु चौथा अन्तरा नहीं है | क्लिप २ में केवल तीसरा और चौथा अन्तरा ही है | तीसरा अन्तरा दोनों क्लिप में शामिल है।)

एक मशहूर रेडिओ ब्रॉडकास्टर को दिये साक्षात्कार में मन्ना डे नें इस गीत के बारे में कुछ इन शब्दों में कहा था - "लता जी और मैंने, हमलोग बहुत मेहनत करके यह गाना गाये थे, बहुत मुश्किल था गाना, और चार रागों में गाना था, और मेरे ख़याल से कुछ ६-७ घंटों में हम रेकॉर्ड कर डाले। उसके बाद जो गाना जब सुनाया गया और अनिल दा को अच्छा लगा तो ऐसा नाचा, ऐसा नाचा, मैं, अनिल दा। अनिल दा बहुत वर्सेटाइल, नाच भी सकते हैं, बहुत अच्छी तरह नाच सकते हैं।" और फिर अनिल दा नें भी तो इस गीत से जुड़ा प्रसंग बताया था उसी मशहूर रेडिओ ब्रॉडकास्टर को - "आजकल के गायकों और संगीतकारों के पास रिहर्सल के लिए वक़्त नहीं है। और हमारे साथ तो ऐसी बात हुई कि लता दीदी नें ही, उनके पास भी समय हुआ करता था रिहर्सल देने के लिए, और एक गाना शायद आपको याद होगा, जो चार ख़याल मैंने पेश किया था फ़िल्म 'हमदर्द' में, १५ दिन बैठके लत दीदी और मन्ना दा, १५ दिन बैठके उसका प्रैक्टिस किया था।" और दोस्तों, पता है संगीतकार अनिल विश्वास की आत्मकथा ग्रन्थ का शीर्षक भी है "ऋतु आए ऋतु जाए"। अनिल दा की संगीत यात्रा में फिल्म 'हमदर्द' के इस गीत का क्या महत्त्व था, यह पुस्तक के शीर्षक से स्वतः सिद्ध हो जाता है। 'आवाज़' मंच पर भी इस गीत का ज़िक्र इससे पहले दो बार आ चुका है। पहली बार संगीतकार तुषार भाटिया के साक्षात्कार में उन्होंने इस गीत की चर्चा की थी, और अनिल दा की सुपुत्री शिखा विश्वास वोहरा के साक्षात्कार में भी उन्होंने अपनी पसंदीदा गीतों में इसका शुमार किया था। तो इन्हीं बातों पर आज का यह अंक सम्पन्न करने की कृष्णमोहन मिश्र को दीजिए अनुमति, नमस्कार!

पहेली 08/शृंखला 15
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.

सवाल १ - किस संगीतकार के लिए था मन्ना का ये क्लास्सिक गीत - २ अंक
सवाल २ - कौन थी नायिका इस फिल्म की - ३ अंक
सवाल ३ - गीतकार का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
प्रतीक जी और अमित जी ३ शानदार अंकों की बधाई. अनजाना जी और हिन्दुस्तानी जी भी आये सही जवाब के साथ. अवध जी आपकी बात से कौन नहीं सहमत होगा

खोज व आलेख- कृष्णमोहन मिश्र



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