ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 725/2011/165
भारत नें हमेशा अमन और सदभाव का राह चुनी है। हमनें कभी किसी को नहीं ललकारा। हज़ारों सालों का हमारा इतिहास गवाह है कि हमनें किसी पर पहले वार नहीं किया। जंग लड़ना हमारी फ़ितरत नहीं। ख़ून बहाना हमारा धर्म नहीं। लेकिन जब दुश्मनों नें हमारी इस धरती को अपवित्र करने की कोशिश की है, हम पर ज़ुल्म करने की कोशिश की है, तो हमने भी अपनी मर्यादा और सम्मान की रक्षा की है। न चाहते हुए भी बंसी के बदले बंदूक थामे हैं हम प्रेम-पुजारियों नें। अंग्रेज़ी सरकार नें 200 वर्ष तक इस देश पर राज किया। 1857 से ब्रिटिश राज के ख़िलाफ़ आवाज़ उठनी शुरु हुई थी, और 90 वर्ष की कड़ी तपस्या और असंख्य बलिदानों के बाद 1947 में ब्रिटिश राज से इस देश को मुक्ति मिली।
भारत के स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख सेनानियों में एक महत्वपूर्ण नाम है नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का। उनके वीरता की कहानियाँ हम जानते हैं, और उन पर एकाधिक फ़िल्में भी बन चुकी हैं। ऐसी ही एक फ़िल्म आई थी 'नेताजी सुभाषचन्द्र बोस' और इस फ़िल्म में एक जोश पैदा कर देने वाला गीत था हेमन्त कुमार, सबिता चौधरी और साथियों की आवाज़ों में। सलिल चौधरी के संगीत में इसके गीतकार थे कवि प्रदीप। कवि प्रदीप की कलम से निकले कई ओजस्वी गीत। उन्होने न केवल गहरे अर्थपूर्ण गीत लिखे,बल्कि अनेक गीतों को दक्षता के साथ गायन भी किया। फ़िल्म 'जागृति' का "आओ बच्चों तुम्हें दिखायें" हमेशा इस देश की महान संस्कृति और इस देश के वीरों की शौर्यगाथा सुनाता रहेगा। 'नेताजी सुभाषचन्द्र बोस' फ़िल्म के जिस गीत को आज की कड़ी के लिए हमनें चुना है, उसके बोल हैं "झंकारो झंकारो झननन झंकारो, झंकारो अग्निवीणा,आज़ाद होके बंधुओं जियो, ये जीना क्या जीना"।
जहाँ भारतीय कांग्रेस कमेटी स्वाधीनता को अध्याय दर अध्याय के रूप में चाहते थे, जबकि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश सरकार की कोई शर्त मंज़ूर नहीं था। फिर भगत सिंह का शहीद होना और कांग्रेस नेताओं का भगत सिंह की ज़िंदगी को न बचा सकने की व्यर्थता नें नेताजी को इतना क्रोधित कर दिया कि उन्होंने 'गांधी-इरविन पैक्ट' के ख़िलाफ़ आंदोलन छेड़ दिया। नेताजी को गिरफ़्तार कर लिया गया और भारत से भी निकाला गया। इस देश-निकाले को अमान्य करते हुए नेताजी देश वापस आये और फिर से गिरफ़्तार हुए। नेताजी दो बार 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के प्रेसिडेण्ट भी चुने गए,पर महात्मा गांधी के विचारधारा से एकमत न हो पाने की वजह से उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। कांग्रेस से मिलकर उन्होंने कांग्रेस को सीधी चुनौती दे दी। उनका यह मानना था कि सत्याग्रह से कभी स्वतंत्रता हासिल नहीं हो सकती। नेताजी नें अपनी पार्टी 'ऑल इण्डिया फ़ॉरवार्ड ब्लॉक' का गठन किया और ब्रिटिश राज से सीधा टक्कर ले लिया। ब्रिटिश सरकार को दाँतों तले चने चबवाया और 11 बार गिरफ़्तार हुए। कई बार अंग्रेज़ों की आँखों में धूल झोंक कर वो फ़रार भी हो गए थे। देशवासियों के लिए उनका एक ही पैग़ाम और निवेदन था - "तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा"। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वो सोवियत यूनियन, नाज़ी जर्मनी और इम्पीरियल जापान का दौरा किया और भारत की आज़ादी के लिए उनसे गठबंधन की गुज़ारिश की। जापान की मदद से उन्होंने ''आज़ाद हिंद फ़ौज' का गठन किया जिसके जंगबाज़ बनें भारतीय युद्ध-बंदी, ब्रिटिश मलय और सिंगापुर के प्लैण्टेशन वर्कर्स। बर्मा से होते हुए अपनी फ़ौज को लेकर उन्होने इम्फाल के रास्ते भारत में प्रवेश किया पर असफल हुए। कहा जाता है कि ताइवान में 18 अगस्त 1945 में एक प्लेन-क्रैश में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन इसमें भी घोर संशय है। आइए आज 18 अगस्त को हम नेताजी को श्रद्धा सुमन अर्पित करें और सुनें उन्हीं पर बनी फ़िल्म का यह जोशीला गीत।
फिल्म – नेताजी सुभाषचन्द्र बोस : 'झंकारो झंकारो झननन अग्निवीणा....' गीतकार – प्रदीप
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - एक और अमर स्वतंत्रता सेनानी के जीवन पर है ये फिल्म भी.
सूत्र २ - गीतकार और संगीतकार एक ही व्यक्ति थे.
सूत्र ३ - गीत के एक अंतरे में देश के विभिन्न प्रान्तों का जिक्र है.
अब बताएं -
किस दिन इस अमर शहीद को अंग्रेज सरकार ने फांसी की सजा सुनाई थी (मुक़दमे की अंतिम तारीख़ आपको बतानी है)- ३ अंक
किस क्रांतिकारी की जीवनी से प्रेरित था ये अमर शहीद - ३ अंक
गीतकार बताएं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
लगता है कल की पहेली काफी मुश्किल रही सबके लिए, फिर भी अमित और क्षिति जी को बधाई सही जवाब के लिए.
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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2 श्रोताओं का कहना है :
7 October 1930,
inspired by Lenin
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