Monday, August 22, 2011

वतन पे जो फ़िदा होगा....जब आनंद बख्शी की कलम ने स्वर दिए मंगल पाण्डेय की कुर्बानी को



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 727/2011/167

‘ओल्ड इज गोल्ड’ पर जारी श्रृंखला ‘वतन के तराने’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ। दोस्तों, इस श्रृंखला में देशभक्ति से परिपूर्ण गीतों के माध्यम से हम अपने उन पूर्वजों का स्मरण कर रहे हैं, जिनके त्याग और बलिदान के कारण आज हम उन्मुक्त हवा में साँस ले रहे हैं। आज के अंक में हम 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के नायक और प्रथम बलिदानी मंगल पाण्डेय के अदम्य साहस और आत्मबलिदान की चर्चा करेंगे, साथ ही गीतकार आनन्द बक्शी का इन्हीं भावों से ओतप्रोत एक प्रेरक गीत भी सुनवाएँगे।

कानपुर के बिठूर में निर्वासित जीवन बिता रहे पेशवा बाजीराव द्वितीय का निधन 14जनवरी, 1851 को हो गया था। उनके दत्तक पुत्र नाना साहब को पेशवा का पद प्राप्त हुआ। अंग्रेजों ने नाना साहब को पेशवा बाजीराव का वारिस तो मान लिया था, किन्तुपेंशन देना स्वीकार नहीं किया। तत्कालीन राजनीतिक परिस्थिति के जानकार नाना साहब अन्दर ही अन्दर अंग्रेजों के विरुद्ध क्रान्ति की योजना बनाने लगे। तीर्थयात्रा के बहाने उन्होने स्थान-स्थान पर अंग्रेजों के विरुद्ध क्रान्ति के लिए लोगों को संगठित करना प्रारम्भ कर दिया। दूसरी ओर तात्या टोपे ने अंग्रेजों की फौज के भारतीय सिपाहियों के बीच अपनी पैठ बना ली और उन्हें भी सशस्त्र क्रान्ति के लिए तैयार कर लिया। अंग्रेजों को इस महाक्रान्ति की भनक भी नहीं थी। ठीक ऐसे ही समय एनफ़िल्ड राइफलों में प्रयोग की जाने वाली कारतूसों की खोल पर गाय और सूअर की चर्वी मिलाने के प्रसंग ने भारतीय सैनिकों को उद्वेलित कर दिया। इस घटना के बाद भी अंग्रेज़ बेखबर थे। इधर क्रान्ति की तिथि 31मई, 1857 निश्चित कर गुप्त रूप से पूरे देश में सूचना दे दी गई।

बंगाल के बैरकपुर छावनी में 24वीं पलटन का एक सिपाही था- मंगल पाण्डेय। 29मार्च,1857 को परेड के दौरान एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में बन्दूक लेकर पंक्ति से बाहर निकला और अन्य सिपाहियों को धर्मयुद्ध में शामिल होने का आह्वान करने लगा। सूचना मिलते ही अंग्रेज़ मेजर ह्यूसन आया और वहाँ खड़े अन्य सिपाहियों को मंगल पाण्डेय को गिरफ्तार करने का आदेश दिया, किन्तु कोई भी सिपाही आगे न बढ़ा। उत्तेजित मंगल पाण्डेय ने निशाना साध कर 1857 क्रान्ति की पहली गोली मेजर ह्यूसन पर चला दी और क्रान्ति की वेदी पर पहली बलि चढ़ गई। कुछ ही क्षण में लेफ्टिनेंट बाघ और सार्जेंट हडसन वहाँ आए। मंगल पाण्डेय ने एक तोप की आड़ लेकर इन पर भी गोलियों की बौछार कर दी। एक गोली लेफ्टिनेंट बाघ के घोड़े को लगी और वह वहीं गिर पड़ा। अचानक मंगल पाण्डेय ने तलवार निकली और द्वन्द्वयुद्ध के लिए ललकारा। तलवार-युद्ध में दोनों अंग्रेज़ अधिकारी शिथिल पड़ने लगे और दोनों घटनास्थल से भागने में ही अपनी भलाई समझी। अब जनरल हियरसे वहाँ आया और अन्य सिपाहियों को मंगल पाण्डेय को पकड़ने का आदेश दिया, परन्तु इस बार भी उन्होने उत्तर दिया- ‘गिरफ्तार करना तो दूर, हम इस पवित्र ब्राह्मण को हाथ भी नहीं लगाएंगे’। शरीर पर लगे चोटों और द्वन्द्वयुद्ध की शिथिलता के कारण मंगल पाण्डेय भी निढाल होता जा रहा था। जनरलहियरसे या किसी अंग्रेज़ की गोली से मरने अथवा अंग्रेजों की कैद में मरने के बजाय उसने आत्मघात कर देश पर बलिदान हो जाना उचित समझा। उसने बन्दूक अपनी ओर कर गोली चला दी। गोली सीने के बजाय मंगल पाण्डेय की भुजाओं को छेदती हुई निकल गई और वह अचेत होकर गिर पड़ा। उसे गिरफ्तार कर कोर्ट मार्शल किया गया और 8अप्रैल, 1857 को फाँसी की सजा सुनाई गई।

एक साधारण सिपाही के इस दुस्साहस से जनमानस में और अंग्रेजों की फौज में भी मंगल पाण्डेय के प्रति इतनी श्रद्धा हो गई थी कि बैरकपुर छावनी का कोई भी जल्लाद फाँसी देने को तैयार नहीं था। अन्ततः अंग्रेजों को कलकत्ता (अब कोलकाता) से चार जल्लादों को बुलाना पड़ा। 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के इस पहले बलिदान की गाथा देश भर की छावनियों में तेजी से फ़ेल गई। क्रान्ति के लिए निर्धारित तिथि से पहले ही क्रान्ति की शुरुआत हो गई। इसका परिणाम यह हुआ कि हमे स्वतन्त्रता के लिए 90वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम असफल अवश्य हुआ, किन्तु मंगल पाण्डेय के बलिदान से असंख्य स्वतन्त्रता सेनानियो ने प्रेरणा ग्रहण की। स्वयं को देश पर बलिदान करते समय मंगल पाण्डेय के हृदय से जो उद्गार निकल रहे थे, उन्हीं भावों को गीतकार आनद बक्शी ने आज प्रस्तुत किये जाने वाले गीत में पिरोया है। 1963 मेंप्रदर्शित फिल्म ‘फूल बने अंगारे’ के इस गीत को कल्याणजी आनन्दजी के संगीत निर्देशन में मोहम्मद रफी ने गाया है। आइए सुना जाए, देशभक्ति भावों से परिपूर्ण यह प्रेरक गीत-



और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-

सूत्र १ - प्रमुख अभिनेता ही निर्देशक थे फिल्म के.
सूत्र २ - गीत में भारत की विश्व को दी गयी उपलब्धियों का वर्णन है.
सूत्र ३ - एक अंतरे का पहला शब्द है - "काले" .

अब बताएं -
गीतकार बताएं - ३ अंक
गायक बताएं - २ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
कल अमित जी पहली बार में चूक गए पर आश्चर्य कि किसी ने उनकी इस गलती का फायदा नहीं उठाया, वरन ऐसा लगता है कि कोई और सही गीत पहचान ही नहीं पाया

खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

फेसबुक-श्रोता यहाँ टिप्पणी करें
अन्य पाठक नीचे के लिंक से टिप्पणी करें-

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

3 श्रोताओं का कहना है :

Amit का कहना है कि -

INDEEWAR

इन्दु पुरी का कहना है कि -

काले गोरे का भेद में क्यों करूं भला?हर दिल से जो नाता जोड़ लेती हूँ तब ये जरूरी नही रहता.यकीन न हो तो इस गाने के संगीतकार 'कल्याणजी आनंदजी' से पूछ लो.फिर न कहना ............ऐसिच है यह तो हा हा हा

इन्दु पुरी का कहना है कि -

और ये क्या है भई............ब्लॉग पर आते ही इतना शोर ! इसे बंद करने का ओप्शन कहाँ हैं?

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ

ओल्ड इज़ गोल्ड शृंखला

महफ़िल-ए-ग़ज़लः नई शृंखला की शुरूआत

भेंट-मुलाक़ात-Interviews

संडे स्पेशल

ताजा कहानी-पॉडकास्ट

ताज़ा पॉडकास्ट कवि सम्मेलन