Monday, September 26, 2011

उड़ के पवन के रंग चलूंगी....उन्मुक्त भावनाओं की उड़ान और लता



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 752/2011/192

"मेरी आवाज ही पहचान है...." की दूसरी कड़ी में मैं अमित तिवारी आप सब लोगों का तहेदिल से स्वागत करता हूँ. लता जी एक ऐसा नाम है जिसे किसी पहचान की जरूरत नहीं है. लता नाम लेते ही आँखों में जो सूरत आती है वो लता दीदी की होती है. आज कुछ और बातें उनके बारे में.

लता जी अपने छोटे भाई और बहनों को छोड़ कर किसी को कभी भी 'तुम' नहीं कहतीं - चाहे वो उम्र में कितना ही छोटा क्यों न हो. सबको सम्मान देना आता है. बात है भी सही, अगर आप दूसरों को सम्मान दोगे तो आपको भी मिलेगा.

लता जी की एक और खासियत थी कि वो अपनी रिकॉर्डिंग केवल तभी कैंसिल करती थीं जब उन्हें लगता था कि उनका गला गाने के साथ न्याय नहीं कर पायेगा. सुबह उठ कर, रियाज़ करते वक्त,जहाँ उनको अपनी आवाज उन्नीस-बीस लगी, वहीं उनका फोन आ जाता था कि 'आज तो माफ ही करें'.

देवानन्द ने एक बार कहा था कि 'ऐसा आज तक नहीं सुना गया कि लता जी किसी बड़े म्यूजिक डायरेक्टर या बैनर के लिए, किसी नए प्रोड्यूसर या कम्पोजर की रिकॉर्डिंग केंसिल करी हो."

यानी अपनी गुणवत्ता पर रत्ती-भर भी संदेह हो तो रिकॉर्डिंग न करने से जरा भी नहीं झिझकती थीं.

सीखने की ललक उनमें हमेशा से रही. सिखाने वाला कौन है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.वाशिंगटन, अमेरिका में उनके एक शो से पहले उनकी आवाज में एक छोटा सा प्राक्थन रिकॉर्ड करा जाना था. हरीश भिमानी ने उसे लिखा था.लता जी ने कहा "हरीश जी, आपने यह लिख तो दिया पर में कुछ ठीक बोल नहीं पा रही हूँ". उन्होंने अपनी आवाज में रिकॉर्ड करा हुआ टेप बजा दिया.बोलीं, "मुझे बोलने में बड़ी तकलीफ होती है और यह सुनने में भी कुछ अच्छा नहीं काग रहा. आप बताइए, कैसे बोलना." लताजी फिल्म जगत में अपने स्थान से अच्छी तरह से वाकिफ होने के बावजूद आडम्बरहीन हैं. सीखने को हमेशा तत्पर रहती हैं.

"मेरी सबसे पहली यादें होंगी थालनेर नाम के एक छोटे से गाँव की. वहाँ मेरी नानी माँ का छोटा सा घर था, जो मुझे बहुत अच्छा लगता. वहाँ मुझे ज्यादा रहने को तो नहीं मिला, लेकिन जब कभी जाती, तब मुझे नानी माँ से गाने सुनने में बड़ा मज़ा आता." लता जी हरीश भिमानी से बात करते करते जैसे खो गयीं थी.

नानी माँ रात को कहानियाँ भी सुनाती थीं, जिनमे बीच-बीच में गीत आते थे. और फिर लताजी ने खानदेश की विशिष्ट हिन्दी मिश्रित मराठी भाषा में एक लोकगीत का टुकड़ा सुनाया:

“शक्कर का गारा खुन्दाई दे शिपाई जान,
बरफी का होटा बंधाई दे शिपाई जान;
शेवन्ती देहली बंधाई दे शिपाई जान,
जिलेबी की खिड़की लगाई बंधाई दे शिपाई जान;”

(शकर का गारा (सीमेंट), बरफी का चौबारा, शेवन्ती फूल की दहलीज़ और जलेबी की खिड़की बना दो ).

आज भी मीठा उन्हें उतना ही अच्छा लगता है, जितना चटपटा और तीखा. पसंदीदा है पूरन पोळी. यह पश्चिम भारत की बहुत ही प्रसिद्ध मिठाई है, जिसे बनाने के लिए चने की दाल का प्रयोग किया जाता है. आप किसी महाराष्ट्रीय घर में खाने के लिए जाओ और आपको न मिले संभव ही नहीं है. लता जी के घर में जब भी कोई तीज-त्यौहार होता है , पूरन पोळी जरूर बनती है.

नानी ने गीत ही नहीं, रसोई भी सिखाई. नानी से उन्होंने गरबा भी सीखा. जब हरीश जी ने आश्चर्य से पूछा, “गरबा? लेकिन वो तो गुजरात का है!”

“हूँ अड़घी गुजरातण छू!” उन्होंने तपाक से विशुद्ध गुजराती में कहा (कि “मैं आधी गुजराती हूँ!”)
“क्या मतलब”, हरीश जी ने पूछा.
“मतलब मेरी माई (लताजी की माताजी) गुजराती हैं. उनका तो गोत्र नाम भी ‘गुजराती’ पड़ गया था. यानी अगर ‘मातृभाषा’ शब्द का अर्थ ‘माता की भाषा’ किया जाये , तो मेरी मातृभाषा गुजराती है”
“यह...यह तो मैं जानता ही नहीं था!” हरीश जी ने बोला.
“तो जानिए!” लताजी ने कुछ शरारत के स्वर में कहा.

आज की पसंद है सुमित चक्रवर्ती जी की. उन्होंने फरमाइश करी है १९६७ की फिल्म शागिर्द के गाने ‘उड़ के पवन के रंग चलूँगी’. जब लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी ने मजरूह सुल्तानपुरी को खुशी का एक गाना लिखने को कहा तब इस गाने का जन्म हुआ. इस गाने को शायरा बानो जी के ऊपर फिल्माया गया था. इस फिल्म को समीर गांगुली ने निर्देशित करा था. आप सब भी उड़ने के लिए तैयार हो जाइये इस गाने के साथ...



इन ३ सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. लता जी की चुलबुली आवाज़ है गीत में.
२. एक बार फिर पारंपरिक भजन से प्रेरित गीत है.
३. नलिनी जयवंत है नायिका, मुखड़े में शब्द है -"दर्द"

अब बताएं -
गीतकार बताएं - ३ अंक
संगीतकार कौन हैं - २ अंक
किस राग पर आधारित है - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम-
हिन्दुस्तानी और इंदु जी को बधाई...गीत सुन पाए या नहीं ?

खोज व आलेख- अमित तिवारी
विशेष आभार - वाणी प्रकाशन


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5 श्रोताओं का कहना है :

इन्दु पुरी का कहना है कि -

मैं ठहरी एकदम नास्तिक औरत. भजनों का मुझसे क्या काम.फिर भी लगता है सी.रामचंद्र जी ने संगीत दिया होगा. अमित भैया ! अब आ जाओ .

इन्दु पुरी का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
Amit का कहना है कि -

इंदू जी मैं यहीं हूँ. सवालों के जवाब नहीं दे सकता क्योंकि इस बार आप लोगों को मैं ही तंग कर रहा हूँ.
जो दूसरों का भला चाहता हो वो भला कैसे नास्तिक हो सकता है? और आप तो हैं ही ऐसिच :)

Pratibha Kaushal-Sampat का कहना है कि -

गीतकार बताएं - Kavi Pradeepji

Pratibha
Ottawa, CANADA

Hindustani का कहना है कि -

lyrics: Meera Bai

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