Tuesday, October 4, 2011

रातों को जब नींद उड़ जाए....सलिल दा के संगीत की मासूमियत और लता



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 757/2011/197

मस्कार साथियों, लता जी अपने आप में एक ऐसी किताब हैं जिसको जितना भी पढ़ो कम ही है. गाना चाहे कैसा भी हो अगर उनकी आवाज आ जाए तो क्या कहना? गाने में शक्कर अपने आप घुल जाती है. ओ.पी.नय्यर को छोड़कर लता मंगेशकर ने हर बड़े संगीतकार के साथ काम किया, मदनमोहन की ग़ज़लें और सी रामचंद्र के भजन लोगों के मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ चुके हैं. जितना भी आप सुनें आपका मन नही भरेगा.

ओ.पी.नय्यर साहब के साथ लता जी ने कभी काम नहीं करा.एक बार लता जी ने हरीश भिमानी जी से कहा "आप शायद जानते होंगे, कि मैंने नय्यर साहब के लिए गीत क्यों नहीं गाये!". हरीश जी ने कहा कि मैंने सुना है कि बहुत पहले, नय्यर साहब के शुरुआत के दिनों में, फिल्म सेन्टर में एक रिकॉर्डिंग करते समय आप "सिंगर्स बूथ" में गा रही थीं और वह 'मिक्सर' पर रिकॉर्डिस्ट और निर्देशक के साथ थे और आपने 'इन्टरकोम' पर उन्हें कुछ अपशब्द कहते हुए सुना और वहीँ के वहीं हेडफोन्स उतार कर स्टूडियो से सीधे घर चल दीं, किसी को बताये बगैर. बस फिर उनके लिए कभी गाया ही नहीं.

"अच्छा...?" लताजी ने कुछ इस तरह से पूछा कि, "इतना ही सुना या आगे का दिलचस्प हिस्सा भी जानते हैं'?"

"हाँ, यह भी सुना था कि बाद में हालांकि आपको पता चला कि वह अपशब्द यूँ ही आदतन बोले गए थे, पर आपके अहं ने आपको उनके साथ सुलह करने की इजाजत नहीं दी."

लता जी कुछ देर शांत रहीं और फिर बोलीं, "मैंने जिंदगी में नय्यर साहब के लिए न कभी कोई गीत गाया है, न ही गाने के लिए कभी किसी स्टूडियो में गयी हूँ. इसकी वजह कुछ और थी."

१९५०-५१ में निर्माता दलसुख पंचोली ‘आसमान’ फिल्म में ओमकार प्रसाद नय्यर को प्रस्तुत कर रहे थे और लता जी से गाने के लिए हामी भरा ली थी. रिहर्सल की तारीख और समय भी तय हो गए. जिस दिन रिहर्सल थी उसी दिन लता जी की बहुत सारी रिकॉर्डिंग्स थीं और लता जी लेट हो गयीं और रिहर्सल में न जा सकीं और देर रात नय्यर साहब को फोन करना ठीक नहीं समझा. सुबह स्टूडियो चली गयी और वहीँ खो गयी. इस तरह दो-तीन दिन बीत गए.

नय्यर साहब को इसमें निरादर महसूस हुआ और उन्होंने वजह जानने की जगह पंचोली साहब से शिकायत करी. यह बात लता जी तक पहुँचते- पहुँचते विकृत रूप धारण कर चुकी थी. इसके बाद कभी व्यावसायिक सम्बन्ध बनाने की नौबत ही नहीं आयी.

वह गाना था ‘मोरी निंदिया चुराए गयो..’ जो बाद में गायिका राजकुमारी ने गाया था.

ओ.पी.नय्यर के निधन पर लता जी ने इस तरह अपनी श्रद्धांजलि दी थी, "इस फ़िल्म इंडस्ट्री में बहुत दिग्गज संगीतकार हुए हैं. ओपी नैयर का भी नाम उनमें बेशक आता है. उनको लोग कभी भूल ही नहीं सकते. मुझे लगता है जिस कलाकार का काम अच्छा होता है वो कभी ख़त्म नहीं होता है, वो हमेशा जीवित रहता है."

लता जी ने सलिल चौधरी के साथ पहला गाना जो रिकॉर्ड करा था वो फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ से था. ‘आ जा रे निंदिया तू आ’. इस गाने की विशेषता यह है कि इस गाने को बिना किसी संगीत के रिकॉर्ड करा गया था और मीना कुमारी खास तौर पर इसी गाने के आयी थीं.

तो आज का गाना है सलिल दा का संगीतबद्ध करा, फिल्म ‘मेम दीदी’ से. इस गाने के बोल लिखे थे ‘शैलेन्द्र’ ने.

रातों को जब नींद उड़ जाए घड़ी घड़ी याद कोई आए
किसी भी सूरत से बहले न दिल
तब क्या किया जाए बोलो क्या किया जाए

ये तो प्यार का रोग है रोग बुरा
जिसे एक दफ़ा ये लगा तो लगा

चंदा को देख, आग लग जाए
तनहाई में चाँदनी न भाए
ठंडी हवाओं में काँपे बदन
तब क्या किया जाए बोलो क्या किया जाये

ये तो प्यार का रोग है रोग बुरा
जिसे एक दफ़ा ये लगा तो लगा

होंठों पे एक नाम आए जाए
आँखों में एक छब मुस्काए
दर्पण में सूरत पराई दिखे
तब क्या किया जाए बोलो क्या किया जाए

ये तो प्यार का रोग है रोग बुरा
जिसे एक दफ़ा ये लगा तो लगा

सखियों के बीच दिल घबराए
डर हो कहीं बात खुल जाए
लेकिन अकेले में धड़के जिया
तब क्या किया जाए बोलो क्या किया जाये

ये तो प्यार का रोग है रोग बुरा
जिसे एक दफ़ा ये लगा तो लगा




इन ३ सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. एक बार फिर शैलेन्द्र और सलिल दा की टीम है गीत के निर्माण में.
२. लता की चंचल आवाज़.
३. गीत में एक आभूषण का जिक्र है जिसके साथ उत्तर प्रदेश के शहर बरेली का नाम अक्सर आया है बहुते से गीतों में.

अब बताएं -
फिल्म का नाम बताओ - ३ अंक
किस पेड का जिक्र है मुखड़े में - २ अंक
फिल्म की नायिका कौन हैं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम-
वाह राजेंद्र भाई बहुत बधाई एकदम सही जवाब

खोज व आलेख- अमित तिवारी
विशेष आभार - वाणी प्रकाशन


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

फेसबुक-श्रोता यहाँ टिप्पणी करें
अन्य पाठक नीचे के लिंक से टिप्पणी करें-

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

2 श्रोताओं का कहना है :

विजय का कहना है कि -

पहली बार सुना ये गाना

Kshiti का कहना है कि -

film - Parakh

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ

ओल्ड इज़ गोल्ड शृंखला

महफ़िल-ए-ग़ज़लः नई शृंखला की शुरूआत

भेंट-मुलाक़ात-Interviews

संडे स्पेशल

ताजा कहानी-पॉडकास्ट

ताज़ा पॉडकास्ट कवि सम्मेलन