ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 777/2011/217
'जहाँ तुम चले गए' - इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है जगजीत सिंह को श्रद्धांजली स्वरूप यह लघु शृंखला। कल हमारी बात आकर रुकी थी जगजीत जी के नामकरण पर। आइए आज उनके संगीत की कुछ बातें बताई जाएं। बचपन से ही जगजीत का संगीत से नाता रहा है। श्रीगंगानगर में उन्होंने पण्डित शगनलाल शर्मा से दो साल संगीत सीखा, और उसके बाद छह साल शास्त्रीय संगीत के तीन विधा - ख़याल, ठुमरी और ध्रुपद की शिक्षा ग्रहण की। इसमें उनके गुरु थे उस्ताद जमाल ख़ाँ जो सैनिआ घराने से ताल्लुख़ रखते थे। ख़ाँ साहब महदी हसन के दूर के रिश्तेदार भी थे। पंजाब यूनिवर्सिटी और कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के वाइस चान्सलर स्व: प्रोफ़ सूरज भान नें जगजीत सिंह को संगीत की तरफ़ प्रोत्साहित किया। १९६१ में जगजीत बम्बई आए एक संगीतकार और गायक के रूप में क़िस्मत आज़माने। उस समय एक से एक बड़े संगीतकार और गायक फ़िल्म इंडस्ट्री पर राज कर रहे थे। ऐसे में किसी भी नए गायक को अपनी जगह बनाना आसान काम नहीं था। जगजीत सिंह को भी इन्तज़ार करना पड़ा। वो एक पेयिंग् गेस्ट बन कर रहा करते थे और शुरुआती दिनों में उन्हें विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाने को मिला करते। उन्हें पहली बार निर्माता सुरेश अमीन नें अपनी गुजराती फ़िल्म 'धरती न छोडूं' में बतौर पार्श्वगायक गाने का मौका दिया। ग़ज़लों की दुनिया में उनका किस तरह से पदार्पण हुआ यह हम कल के अंक में आपको बतायेंगे, फ़िलहाल बात करते हैं आज प्रसारित होने वाले गीत की।
आज प्रस्तुत है १९८४ की फ़िल्म 'रावण' से विनोद सहगल का गाया "इश्क़ से गहरा कोई न दरिया"। वैसे तो इस गीत को लिखा है सुदर्शन फ़ाकिर नें, पर गीत की प्रेरणास्रोत है ग़ालिब का मशहूर शेर "ये इश्क़ नहीं आसां, बस इतना समझ लीजिए, एक आग का दरिया है और डूब के जाना है"। गीत शुरु होने से पहले भी अभिनेता विकास आनन्द (जिन पर यह गीत फ़िल्माया गया है) इसी शेर को कहते हैं। बड़ा ही ख़ूबसूरत गीत है - "इश्क़ से गहरा कोई न दरिया, डूब गया जो उसका पता क्या, लैला जाने, मजनूं जाने, हीर यह जाने, रांझा जाने, तू क्या जाने दीवाने ये बातें तू क्या जाने"। जॉनी बक्शी निर्मित व निर्देशित 'रावण' के मुख्य कलाकार थे स्मिता पाटिल, विक्रम, गुलशन अरोड़ा और ओम पुरी। संगीत के लिए जगजीत सिंह और चित्रा सिंह को लिया गया था। इस फ़िल्म के अन्य गीतों में शामिल हैं भूपेन्द्र के गाये "मसीहा" और "ज़िन्दगी मेरी है", चित्रा सिंह की गाई "चुनरिया" और जगजीत सिंह का गाया "अजनबी"। गायक विनोद सहगल के बारे में यह कहना चाहेंगे कि एक अच्छी आवाज़ के होते हुए भी वो पहली श्रेणी के ग़ज़ल गायकों में शामिल नहीं हो सके, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। टेलीफ़िल्म 'मिर्ज़ा ग़ालिब' में उन्होंने दो ग़ज़लें गाईं पर जगजीत सिंह की ग़ज़लों को ही ज़्यादा सुना गया। विनोद सहगल नें जिन फ़िल्मों में गीत गाये हैं, उनमें शामिल हैं 'सरदार करतारा' (१९८०), 'बेज़ुबान' (१९८२), 'लौंग दा लश्कारा' (१९८६), 'राही' (१९८७), 'जग वाला मेला' (१९८८), 'बिल्लू बादशाह' (१९८९), 'यारां नाल बहारां' (१९९१), 'इन्साफ़ का ख़ून' (१९९१), 'शहीद उधम सिंह' (२०००) और 'बदला' (२००३)। इस फ़िल्मोग्राफ़ी से यह पता चलता है कि जगजीत सिंह को जब भी फ़िल्म में संगीत देने का मौका मिला उन्होंने विनोद सहगल को गाने का मौका दिया। तो आइए आज सलाम करें जगजीत सिंह और विनोद सहगल की जोड़ी को।
चलिए अब खेलते हैं एक "गेस गेम" यानी सिर्फ एक हिंट मिलेगा, आपने अंदाजा लगाना है उसी एक हिंट से अगले गीत का. जाहिर है एक हिंट वाले कई गीत हो सकते हैं, तो यहाँ आपका ज्ञान और भाग्य दोनों की आजमाईश है, और हाँ एक आई डी से आप जितने चाहें "गेस" मार सकते हैं - आज का हिंट है -
जगजीत चित्रा की युगल आवाज़ में ये एक पारंपरिक ठुमरी है
पिछले अंक में
वाह क्षिति जी बहुत दिनों बाद आमद हुई...वेल्कम
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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5 श्रोताओं का कहना है :
बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाये.
पता नहीं कितनी बार सुना है इसको.मेरी पसंदीदा ठुमरी.
फिल्म स्ट्रीट सिंगर में सहगल साहब ने इसे गाया था बाद में जगजीत सिंह और चित्रा सिंह ने आविष्कार फिल्म के लिए इसे गाया था.
आप इस ठुमरी को पंडित भीमसेन जोशी की आवाज में भी सुन सकते हैं.
जितनी बार इसे सुना जाये मन नहीं भरता.
बेशक बहुत ही प्यारी ठुमरी है यह.अब कहूँ कि सहगल साहब से ज्यादा मुझे यह 'इनदोनो' पति पत्नी की आवाज मे अच्छी लगी तो प्लीज़ मुझे पिटाई मत लगाना.पं.जोशी जी ने भी गई है मुझे मालूम नही था. आज ही बाबाजी के शरण मे जाती हूँ और इसे मांग लाती हूँ.गूगल बाबा की पोटली मे सब मिल जाता है.हा हा हा
देर से ही सही सबको दिवाली की ढेर सारी शुभकामनाये और.........
'जो राह चुनी तूने उस राह पे राही चलते जाना रे'
बहुत ही प्यारी ठुमरी है| धन्यवाद|
Ye Ishq nhi aasan..ghalib ka sher nhi hai..jigar moradabadi ki likhi hui gazal hai-ik lafz e mohabbat ka
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