Sunday, November 27, 2011

ले तो आए हो हमें सपनों के गाँव में...दादू की धुनों पर खूब सजी हेमलता की आवाज़



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 796/2011/236

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी संगीत-रसिकों को सुजॉय चटर्जी और सजीव सारथी का प्यार भरा नमस्कार! आज रविवार, छुट्टी का यह दिन आपनें हँसी-ख़ुशी मनाया होगा, ऐसी हम उम्मीद करते हैं। और अब शाम ढल चुकी है भारत में, कल से नए सप्ताह का शुभारम्भ होने जा रहा है, फिर से ज़िन्दगी रफ़्तार पकड़ लेगी, दफ़्तर के कामों में, दैनन्दिन जीवन के उलझनों में फिर एक बार हम डूब जाएंगे। इन सब से अगर हमें कोई बचा सकता है तो वह है सुरीला संगीत। और इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जो शृंखला चल रही है वह भी बड़ा ही सुरीला है, क्योंकि जिन कलाकार पर यह शृंखला केन्द्रित है, वो बहुत ज़्यादा सुरीले हैं, स्तरीय हैं। रवीन्द्र जैन के लिखे और स्वरबद्ध किए गीतों से सजी शृंखला 'मेरे सुर में सुर मिला ले' की आज है छठी कड़ी। दोस्तों, पिछले अंक में हमने दादु से सुनते हुए आए कि कैसे वो कलकत्ता छोड़ बम्बई का रुख़ किया। बम्बई में कैसे उन्हें पहली फ़िल्म मिली, यह कहानी हम आपको कल की कड़ी में बताएँगे। आज कुछ और बात करते हैं। दोस्तों, रवीन्द्र जैन नें कई नवोदित गायक गायिकाओं को अपनी फ़िल्मों में गाने का मौका दिया है जिनमें हेमलता, जसपाल सिंह, येसुदास, सुरेश वाडकर, चन्द्राणी मुखर्जी आदि शामिल हैं। आइए आज हेमलता से सुनें दादु के बारे में - "मैंने १४ मूल भाषाएँ सीखी हैं, कुल ३८ भाषाएँ पढ़ीं हैं। संगीत नौशाद साहब से सीखा, उस्ताद र‍इस ख़ाँ से ग़ज़ल सीखा, फिर मदन मोहन जी, कल्याणजी भाई, रवीन्द्र जैन जी से भी बहुत सीखा है। दादु (रवीन्द्र जैन) मेरे बाबा के शिष्य हुआ करते थे कलकत्ते से। तो उनके क्लास के बाद वो मुझसे अपने गाने गवाया करते थे। और वो मुझे हर गीत के लिए १ रुपय देते थे। पहले ५० पैसे रेट था, फिर मैंने रेट बढ़ा दिया, बर्फ़ के गोले महंगे हो गए थे न! वो सिखाते थे मुझे, उनकी बंदिशें। जब यहाँ आकर मुझे लोगों को अपनी वॉयस सुनानी पड़ती थी, मैं उन्हीं के ये सब गानें गाती थी। यूं तो मुझे फ़िल्मों के गानें याद रहते थे, रफ़ी साहब और मुकेश जी के गानें भी याद होते थे, लता जी के गानों की तो हिसाब ही नहीं थी। दादु इस इन्डस्ट्री में ७० के दशक के शुरु में आए, तब तक १००/१५० गानें मैं गा चुकी थी।"

रवीन्द्र जैन और हेमलता की जोड़ी नें हमें कई यादगार गीत दिए हैं, जिनमें सब से ज़्यादा लोकप्रिय और सदाबहार रहा है फ़िल्म 'अखियों के झरोखों से' का शीर्षक गीत। पर आज के अंक में हम इस गीत को नहीं बल्कि 'राजश्री' की ही एक अन्य फ़िल्म 'दुल्हन वही जो पिया मन भाये' का एक और ख़ूबसूरत गीत "ले तो आए हो हमें सपनों के गाँव में, प्यार की छाँव में बिठाए रखना, सजना ओ सजना"। 'दुल्हन वही...' १९७७ की फ़िल्म थी जिसके निर्माता थे ताराचन्द बरजात्या और निदेशक थे लेख टंडन। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे रामेश्वरी और प्रेम किशन। फ़िल्म तो लो-बजट फ़िल्म थी, पर इसके गीत बहुत मशहूर हुए थे। प्रस्तुत गीत के अलावा फ़िल्म के अधिकांश गीत भी हेमलता नें ही गाए जिनमें शामिल हैं "अब रंज से, ख़ुशी से, बहारों से क्या", "जहाँ प्रेम का पावन दियरा जरे", "मंगल भवन अमंगल हारी", पुरवैया के झोंके आये, चंदन बन की महक भी लाये" और "श्यामा ओ श्यामा"। एक गीत हेमलता, येसुदास और बनश्री सेनगुप्ता नें गाया था "ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हो दामन में जिसके, क्यों न ख़ुशी से वो दीवाना हो जाये", और रवीन्द्र जैन की आवाज़ में भी एक गीत था "अचरा के फुलवा लहके आये हम तोरे दुवार"। सर्वश्रेष्ठ संवाद के लिए व्रजेन्द्र गौड़ को और सर्वश्रेष्ठ पटकथा के लिए लेख टंडन, व्रजेन्द्र गौड़ और मधुसुदन कालेकर को उस वर्ष का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार दिया गया था। तो आइए सुनते हैं हेमलता और रवीन्द्र जैन की जोड़ी का यह सुन्दर गीत।



पहचानें अगला गीत - गीत में अंग्रेजी पंक्तियाँ का भी प्रयोग हुआ है

पिछले अंक में
विज जी बहुत धन्येवाद इस जानकारी के लिए

खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी


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