Monday, November 28, 2011

एक दिन तुम बहुत बड़े बनोगे...और दिल से बहुत बड़े बने दादु हमारे



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 797/2011/237

'मेरे सुर में सुर मिला ले' शृंखला की सातवीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। रवीन्द्र जैन के लिखे और स्वरबद्ध किए गीतों की इस शृंखला में आइए आज आपको बतायें कि दादु को बम्बई में पहला मौका किस तरह से मिला। "झुनझुनवाला जी नें मुझे कहा कि तुम अभी थोड़ा धैर्य रखो, यहाँ बैठ के काम करो, अपने घर में जगह दी, और काम करता रहा, उनको धुनें बना बना के सुनाता था, उन्होंने एक फ़िल्म प्लैन की 'लोरी', जिसके लिए हम बम्बई गानें रेकॉर्ड करने आए थे, जिसका मुकेश जी नें दो गानें गाये। मुकेश जी का एक गाना मैं आपको सुनाता हूँ, जो कुछ मैं कलकत्ते से यहाँ लेके आया था - "दुख तेरा हो कि दुख मेरा हो, दुख की परिभाषा एक है, आँसू तेरे हों कि आँसू मेरे हों, आँसू की भाषा एक है"।" दोस्तों, 'लोरी' फ़िल्म तो रिलीज़ नहीं हुई, और दादु के संगीत की पहली फ़िल्म आई 'कांच और हीरा'। लेकिन उससे पहले उनका पहला गाना जा चुका था फ़िल्म 'पारस' में। इस बारे में दादु बताते हैं - "जी हाँ, जी हाँ, 'पारस' में मेरी रमेश सिप्पी साहब से मुलाक़ात हुई थी, संजीव ने मिलाया मुझे उनसे, संजीव यानि हरि भैया, संजीव कुमार जी। तो 'पारस' की शूटिंग् चल रही थी, तो मैंने कहा कि 'हरि भाई, मैं बम्बई आ गया हूँ, अब क्या करना है, यू हैव टू हेल्प मी आउट'। उन्होंने कहा कि ठीक है, आप 'पारस' की शूटिंग् के बाद शाम को हमारी सिप्पी साहब से मीटिंग् करवाई, और मैं कलकत्ते से जो कुछ गानें लाया था, उनको सुनाये। तो उन्होंने कहा कि ज़रूर हम साथ में काम करेंगे, और सिप्पी साहब को जो गाना पसंद आता था, उनके लिए १० रुपय मुझे देते थे कि यह गाना मेरा हो गया। तो उनमें से कौन कौन से गानें थे वो भी मैं आपको बताउँगा, जो पॉपुलर हुए हैं। तो पहला गाना रेकॉर्ड किया हमने, वो एक शायर की कहानी बना रहे थे जो एक गायक भी है, और उसमें रफ़ी साहब नें अपनी आवाज़ से नवाज़ा। १४ जनवरी का ज़िक्र है यह १९७१ का। रफ़ी साहब, मैं अब तक नहीं समझ पाया कि वो एक बेहतर कलाकार थे या एक बेहतर इंसान। दोनों ही ख़ूबियों के मालिक थे।"

तो दोस्तों, इस तरह से रवीन्द्र जैन का पहला गाना रफ़ी साहब की आवाज़ में रेकॉर्ड हुआ और रवीन्द्र जैन के पारी की शुरुआत हो गई और एक बड़े कलाकार बनने का सपना भी, बिल्कुल उनके उस गीत के बोलों की तरह कि "एक दिन तुम बहुत बड़े बनोगे, चाँद से चमक उठोगे"। दोस्तों, क्यों न आज के अंक में इसी गीत को सुना जाये। यह है १९७८ की फ़िल्म 'अखियों के झरोखों से' का हेमलता और शैलेन्द्र सिंह का गाया यह बहुत ही लोकप्रिय गीत। यह फ़िल्म अंग्रेज़ी फ़िल्म 'ए वाक टू रेमेम्बेर' का हिन्दी रीमेक थी जिसमें सचिन और रंजीता नें अभिनय किया था। वैसे इस फ़िल्म का सबसे लोकप्रिय गीत फ़िल्म का शीर्षक गीत ही रहा है जो हेमलता के करीयर का सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में से एक रहा। रवीन्द्र जैन द्वारा स्वरबद्ध गीत ज़्यादातर लोक-संगीत और शास्त्रीय संगीत पर आधारित हुआ करते थे, पर क्योंकि इस फ़िल्म का पार्श्व शहरी था, नायक-नायिका कॉलेज में पढ़ने वाले नौजवान थे, इसलिए इस फ़िल्म में आधुनिक संगीत की ज़रूरत थी। और दादु नें अपनी गुणवत्ता को कायम रखते हुए पाश्चात्य संगीत पर आधारित धुनें बनाई, और उन्होंने इस बात को साबित किया कि मेलडी और स्तर को बनाए रखते हुए भी आधुनिक संगीत दिया जा सकता है। प्रस्तुत गीत में तो अंग्रेज़ी के शब्दों तक का प्रयोग किया है दादु नें। याद है न "विल यू फ़ॉरगेट मी देन, हाउ आइ कैन..."? और हम भी कैसे भुला सकते हैं रवीन्द्र जैन जी के सुरीले गीतों को! आइए सुना जाए यह गीत।



पहचानें अगला गीत -हिरेन नाग निर्देशित इस फिल्म में ये गीत गाया था येसुदास ने

पिछले अंक में


खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

फेसबुक-श्रोता यहाँ टिप्पणी करें
अन्य पाठक नीचे के लिंक से टिप्पणी करें-

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

2 श्रोताओं का कहना है :

The news day का कहना है कि -

Realy nice articles on your blog.
https://thenewsday.in/want-to-start-running/

Pawansharmajournalist का कहना है कि -

Best Article

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ

ओल्ड इज़ गोल्ड शृंखला

महफ़िल-ए-ग़ज़लः नई शृंखला की शुरूआत

भेंट-मुलाक़ात-Interviews

संडे स्पेशल

ताजा कहानी-पॉडकास्ट

ताज़ा पॉडकास्ट कवि सम्मेलन