Thursday, June 4, 2009

छोड़ गए बालम मुझे हाय अकेला छोड़ गए....एक टीस सी छोड़ जाता है "बरसात" का ये गीत



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 101

दोस्तों, कल हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की हीरक जयंती मनायी। और उससे एक दिन पहले यानी कि २ जून को फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध फ़िल्मकार राज कपूर साहब की पुण्यतिथि भी थी। 'शोमैन औफ़ दि मिलेनियम' राज कपूर को हम श्रद्धांजली अर्पित कर रहे हैं हिंद युग्म के इसी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के माध्यम से। आज से लेकर अगले सात दिनों तक यह शृंखला समर्पित रहेगी राज कपूर की पुण्य स्मृति को। अर्थात, अगले सात अंकों में आप सुनने जा रहे हैं राज साहब की फ़िल्मों के सदाबहार गानें। राज कपूर की हर एक फ़िल्म अमर हो गयी है अपने सुमधुर गीत संगीत की वजह से। उनकी कोई भी फ़िल्म चाहे बौक्स औफ़िस पर चले या ना चले, लेकिन उनके हर फ़िल्म का संगीत राज करता है लोगों के दिलों में आज तक। और यही कारण है कि हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में एक पूरा का पूरा हफ़्ता मनाने वाले हैं 'राज कपूर विशेष'। गाने सुनवाने के साथ साथ हम आपको राज साहब से जुड़ी कई बातें भी बताएँगे, और अगर आपको भी उनके बारे मे कोई दिलचस्प बात का पता हो तो हमारे साथ ज़रूर बाँटें।

१४ दिसम्बर १९२४ को पेशावर मे जन्मे राज कपूर का पूरा नाम था रणबीर राज कपूर। पिता पृथ्वीराज कपूर और माँ रमा देवी के चार संतानों में राज सबसे बड़े थे। शम्मी कपूर और शशी कपूर उनके दो भाई थे और उनकी एक बहन थीं उर्मिला सियाल। पिता थियटर और फ़िल्मों से जुड़े हुए ही थे, और शायद इसी वजह से राज मे भी फ़िल्मों के प्रति लगाव पनपा। उन्होने अपना फ़िल्मी कैरियर 'क्लैपिंग बॉय' की हैसीयत से शुरु किया फ़िल्मकार किदार शर्मा के पास। ११ वर्ष की आयु मे वो पहली बार किसी फ़िल्म के परदे पर नज़र आये, फ़िल्म थी 'इन्कलाब', साल था १९३५। अगले १२ साल तक कई फ़िल्मों में छोटे मोटे रोल करने के बाद राज कपूर को नायक के रूप मे अपना पहला ब्रेक मिला किदार शर्मा की ही फ़िल्म 'नील कमल' मे जो बनी थी १९४७ मे। इस फ़िल्म में मधुबाला उनकी 'हीरोइन' बनीं। इसके बाद अगले ही साल, यानी १९४८ मे राज कपूर ने इतिहास रचा अपने समय का सबसे कम उम्र का फ़िल्म निर्माता व निर्देशक बनकर। जी हाँ, १९४८ मे राज कपूर ने स्थापना की 'आर.के. फ़िल्म्स' की और बना डाली फ़िल्म 'आग' जिसमे वो पहली बार नरगिस के साथ नज़र आये थे। इस जोड़ी का ज़िक्र हम अगले अंक मे भी करेंगे। 'आग' तो ज़्यादा नहीं चली, लेकिन 'आर.के' बैनर की गाड़ी ज़रूर चल पड़ी। 'आग' के पिट जाने के बाद राज कपूर ने अपनी पूरी की पूरी टीम ही बदल डाली। संगीतकार राम गांगुली के जगह आ गये शंकर-जयकिशन, गीतकार के रूप मे लिया गया शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी को, और मुकेश और लता मंगेशकर बने 'आर.के. फ़िल्म्स' के मुख्य गायक और गायिका। इस नयी टीम को लेकर १९४९ मे राज कपूर ने बनायी 'बरसात'। नायिका के रूप मे राज कपूर ने लौन्च किया वहीदन बाई की बेटी निम्मी को। यह फ़िल्म इतनी कामयाब रही कि इस फ़िल्म से जुड़े हर कलाकार के लिए यह फ़िल्म मील का पत्थर साबित हुआ। शंकर जयकिशन और शैलेन्द्र - हसरत की यह पहली फ़िल्म थी और पहली ही फ़िल्म मे इन्होनें ऐसे गानें बनाये कि हर गली, हर चौराहे, और हर घर में बस इसी फ़िल्म के गीतों की गूँज सुनायी देने लगी। भले ही लताजी का पहला हिट गीत फ़िल्म 'महल' मे आ चुका था, लेकिन 'बरसात' मे उनके गाये तमाम गीतों की लोकप्रियता ने उन्हे शीर्ष पर पहुँचा दिया। तो आइए 'राज कपूर विशेष' के अंतर्गत आज का गीत सुनते हैं इसी फ़िल्म 'बरसात' से जिसे मुकेश और लता ने गाया है, "छोड़ गये बालम, मुझे हाये अकेला छोड़ गये"। गीत राग भैरवी पर आधारित है, आपको शायद पता हो कि यह राग शंकर जयकिशन का सबसे चहेता राग रहा है, इतना ज़्यादा कि जयकिशन ने अपनी बेटी का नाम भी भैरवी रखा है। गीत को ग़ौर से सुनिएगा दोस्तों क्यूंकि इस गीत के इंटरलिउड़ म्युज़िक आपको राज कपूर की एक अन्य फ़िल्म 'श्री ४२०' के "प्यार हुआ इक़रार हुआ" मे भी सुनायी देता है।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. राज कपूर की एक और बेहद सफल फिल्म का गीत.
२. राग भैरवी पर ही आधारित इस गीत में स्वर है मुकेश का.
३. पहले अंतरे की दूसरी पंक्ति में शब्द है -"इकरार".

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
हमने पहेली को थोड़ा मुश्किल किया लेकिन शरद तैलंग जी ने फिर भी बाजी मार ली। इन्हें मिलते हैं 2 अंक। बिलकुल सही जवाब। शामिख फ़राज़ और निर्मला कपिला जैसे कुछ नये श्रोता भी दिख रहे हैं। लग रहा है आगे का मुक़ाबला और भी दिलचस्प होने वाला है।

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.



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6 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

गीत : आवारा हूँ आवारा हूँ
फ़िल्म : आवारा
घरवार नहीं संसार नहीं मुझसे किसी को प्यार नहीं
उस पार किसी से मिलने का इक़रार नही ...

neelam का कहना है कि -

शरद जी ,
प्रणाम
आवारा हूँ ,या गर्दिश में भी आसमान का तारा हूँ
गर्दिश में भी आसमान का तारा हूँ
गर्दिश में भी आसमान का तारा हूँ
बेहद खूबसूरत बात जो आप ने नहीं बताई ,
सुजोय दा,सजीव जी शरद जी को पूरे प्राप्तांक न दिए जाएँ |

rachana का कहना है कि -

शरद जी आप की दाद देती हूँ क्या ही खूब पहचाना है मेरे ख्याल से भी यही है .
सादर
रचना

manu का कहना है कि -

या गर्दिश में हूँ आसमान का तारा हूँ,,,
सही गीत...

Shamikh Faraz का कहना है कि -

आवारा हूँ या गर्दिश में आसमान का तारा हूँ.
आवारा हूँ या गर्दिश में आसमान का तारा हूँ.
घरबार नहीं संसार नहीं मुझसे किसी को प्यार नहीं.

Unknown का कहना है कि -

Mera juta hai japani yeh patlon inglishtani

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