ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 104
'राज कपूर विशेष' की चौथी कड़ी मे आप सभी का स्वागत है। राज कपूर कैम्प की एक मज़बूत स्तम्भ रहीं हैं लता मंगेशकर। दो एक फ़िल्मों को छोड़कर राज साहब की सभी फ़िल्मों की नायिका की आवाज़ बनीं लताजी। राज कपूर और लताजी के संबंध भी बहुत अच्छे थे। इसी सफल फ़िल्मकार-गायिका जोड़ी के नाम आज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह शाम! दोस्तों, २ जुन १९८८ को राज कपूर इस दुनिया को हमेशा के लिए छोड़ गये थे। इसके कुछ ही दिन पहले लताजी का एक कॊन्सर्ट लंदन मे आयोजित हुआ था जिसका नाम था 'लता - लाइव इन इंगलैंड'। इस कॊन्सर्ट की रिकार्डिंग मेरे पास उपलब्ध है दोस्तों, और उसी मे लताजी ने राज कपूर की दीर्घायू कामना करते हुए जनता से क्या कहा था वो मैं आपके लिए यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ - "भाइयों और बहनों, हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री के प्रोड्युसर, डायरेक्टर, हीरो, और किसी हद तक मैं कहूँगी म्युज़िक डायरेक्टर भी, राज कपूर साहब बहुत बीमार हैं दिल्ली में, मैं आप लोगों से यह प्रार्थना करूँगी कि आप लोग उनके लिए ईश्वर से प्रार्थना करें कि उनकी तबीयत ठीक हो जायें। हम लोगों ने कम से कम ४० साल एक साथ काम किया है, और हमारा मन वही है, रोज़ ही हमें मालूम हो रहा है कि आज तबीयत कैसी है, कैसी है, बस यही दुआ चाहते हैं सबसे की वो ठीक हो जायें"। जब लताजी की ये बातें चल रही थीं उस कॊन्सर्ट मे, वहीं 'बैकग्राउंड' में राज कपूर की रिकार्डेड आवाज़ भी साथ साथ गूँजती सुनाई दे रही थी जिसमें वो लताजी की तारीफ़ें कर रहे थे। और उनकी वो तारीफ़ें ख़त्म हुई इस पंक्ति से - "ख़ूशनसीब हूँ मैं कि अब तक मुझमें साँस हैं, जान है, और इनसे कह सकता हूँ कि सुन साहिबा सुन प्यार की धुन, मैनें तुझे चुन लिया तू भी मुझे चुन"। यह सुनते ही लताजी के साथ साथ पूरा स्टेडियम हँस पड़ा। दोस्तों, लताजी और तमाम लोगों की प्रार्थना ईश्वर ने नहीं सुनी और राज साहब हमेशा के लिए हमसे दूर चले गये। इस जाते हुए बसंती पवन को कोई नहीं रोक सका। राज कपूर की याद में आज इस शृंखला मे सुनिए सन् १९६० की फ़िल्म 'जिस देश मे गंगा बहती है" फ़िल्म का गीत लताजी की आवाज़ में - "ओ बसंती पवन पागल ना जा रे ना जा"। शैलेन्द्र का गीत और शंकर जयकिशन का संगीत। गीत आधारित है राग बसंत मुखारी पर और फ़िल्माया गया है फ़िल्म की नायिका पद्मिनी पर।
गीत सुनने से पहले लताजी और जयकिशन से जुड़ा एक क़िस्सा आपको बताना चाहेंगे। हुआ युँ कि 'बरसात' की प्लानिंग ज़ोर शोर से चल रही थी। एक दिन राज कपूर ने १९ वर्षीय जयकिशन से कहा कि वो लता के घर जाकर उसे अपने साथ ले आये क्यूंकि वो 'बरसात' के गानों की रिकॉर्डिंग करना चाहते हैं अपने चेम्बूर के स्टूडियो मे। लता उस समय तारदेव मे एक कमरे के एक मकान मे रहती थीं जो चेम्बूर से लगभग १५ मील दूर था। तो जयकिशन उनके घर जा पहुँचे और दरवाज़े पर खड़े हो गये। ख़ूबसूरत और जवान जयकिशन को देखकर लता पहले यह समझीं कि वो राज कपूर के कोई रिश्तेदार होंगे। जयकिशन ने भी अपना परिचय नहीं दिया और लता को लेकर पृथ्वी स्टूडियो पहुँच गये। जयकिशन लता को रिकॉर्डिंग रूम मे ले गये और हारमोनियम को अपने पास खींचकर लता को धुन समझाने लगे। लता तो बिल्कुल हैरान रह गयीं यह देखकर कि १९ साल का वो लड़का ना तो राज कपूर का कोई रिश्तेदार था और ना ही उनका कोई संदेशवाहक, बल्कि वो था फ़िल्म का संगीतकार! तो लीजिए राज कपूर, शैलेन्द्र और शंकर जयकिशन की याद में सुनिए लताजी की मधुर आवाज़ में आज का यह गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. राज की सफलतम फिल्मों में से एक.
२. इस युगल गीत में मन्ना डे ने दी थी राज कपूर को आवाज़.
३. मुखड़े में शब्द है -"हमसफ़र".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी, लगातार तीसरा सही जवाब और आपके अंक हो गए हैं- 6. लगे रहिये, नीरज जी जानकारी के लिए धन्येवाद. शमिख जी, संगीता जी, मनु जी थोडी सी और फुर्ती दिखाईये. पराग जी यदि कोई ग़लतफ़हमी रह गयी हो तो माफ़ी चाहेंगें, यदि आप आवाज़ पर साइड में लगे राज कपूर के पोस्टर पर भी देखेंगें तो वहां भी यही लिखा है कि राज साहब पर फिल्माए गए गीत होंगें, फिल्माए जाने का मतलब ये ज़रूरी नहीं है कि उसी कलाकार ने गीत की लिप्सिंग की हो, "जिंदगी ख्वाब है" गीत में राज साहब मौजूद हैं, ठीक वैसे ही जैसे "ओ बसंती" में, जो कि पूरी तरह पद्मिनी द्वारा ही फिल्म में गाया गया है. इसे आप खेल भावना से ही लीजिये. आप शरद जी को जबरदस्त टक्कर दे सकते हैं. अभी सफ़र लम्बा है...शुभकामनायें.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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7 श्रोताओं का कहना है :
मुड मुड के न देख मुड मुड के
ज़िन्दगानी के सफ़र में तू अकेला ही नहीं है हम भी तेरे हमसफ़र है ।
फ़िल्म : श्री ४२०
अरे यह तो बहुत ही खूबसूरत है .
होए,,,,,,,,,,,
मुड मुड के न देख मुड मुड के,,,,
नादिरा की मस्त अदाएं...
सुजोय जी
मैं जो भी कह चूका हूँ वह पूरा खेल भावना से ही है, मेरी टिप्पनियोंके बाद एक हँसता हूँ चेहरा आप ने भी देखा होगा.
तो इस सप्ताह के नियम के हिसाब से गाने होंगे उन फिल्मोंसे जिसमे राज साहब ने अभिनय किया हो, चलो यह बात तो साफ़ हो गयी.
शरद जी को ८ अंकोंकी बढ़त के लिए बहुत धन्यवाद. आप का पुराने हिंदी फिल्म संगीत का ज्ञान बहुत अच्छा है.
मैं अब इस वक़्त हिन्दुस्थान से बहार स्थित हूँ इसलिए पहेली के प्रस्तुत होते ही देखना मुश्कील हो जाता है. और वैसे भी पिछले दो हफ्ते मैं कार्यालय के काम से कुछ अधिक व्यस्त था. आशा है की अब रोज हजारी लगाऊंगा.
आप का आभारी
पराग
पराग जी
पिछले लगभग ४० वर्षों से मंचों पर मन्ना दा के और खास कर राजकपूर जी की फ़िल्मों के गीत प्रस्तुत करता आ रहा हूँ शायद इसीलिए कुछ आसानी हो जाती है . मैं भी १३ जून से १६ जून तक बाहर रहूँगा तब शायद पिछड जाऊँ।
are waah sharad ji ,aap india kab aayenge hum log bhi aapko saamne sunna chaahenge
शरद जी को बधाई.
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