ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 138
'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आप इन दिनों सुन रहे हैं 'मदन मोहन विशेष'। मदन मोहन का मनमोहक संगीत फ़िल्म संगीत के स्वर्णयुग का एक सुरीला अध्याय है। उनकी हर रचना बेजोड़ है, बावजूद इसके कि उन्होने दूसरे सफल संगीतकारों की तरह बहुत ज़्यादा फ़िल्मों में संगीत नहीं दिया है। उनके गीतों में हमारी संस्कृति की अनुगूँज सुनाई देती है। उनके संगीत में है रागों का अनुराग, संगीत का वह रस भरा संसार है कि जिसमें बार बार डुबकी लगाने को जी चाहता है। फ़िल्म संगीत की दुनिया से जुड़े संगीतकारों की इस दुनिया में मदन मोहन अलग ही नज़र आते हैं। संगीतकार बेशक़ एक दौर में अपनी संगीत यात्रा पूरी कर चला जाता है, लेकिन उनका संगीत काल और समय से परे होता है। मदन मोहन का संगीत भी कालजयी है और रहेगा जो साया बन हमेशा हमारे साथ चलेगा और बाँटता रहेगा हमारी ख़ुशियाँ, हमारे ग़म। मदन मोहन साहब को हम ने जिस क़दर अपने दिलों में बसा रखा है, वो कभी वहाँ से उतर नहीं पायेंगे। कुछ इसी तरह का भाव उनके उस गीत में भी है जो आज हम चुनकर लाये हैं इस महफ़िल के लिए। "ज़मीं से हमें आसमाँ पर बिठाके गिरा तो न दोगे, अगर हम यह पूछें कि दिल में बसा के भुला तो न दोगे"। मदन मोहन का संगीत न कभी आसमाँ से ज़मीं पर गिरेगा और न ही हम कभी उन्हे भुला पायेंगे। आशा भोंसले और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ों में राजेन्द्र कृष्ण का लिखा 'अदालत' फ़िल्म का यह युगल गीत आज पेश है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में।
सन् १९५८ में मदन मोहन ने कुल ८ फ़िल्मों में संगीत दिया था और ख़ास बात यह कि ये आठों फ़िल्में अलग अलग बैनर की थीं। ये ८ फ़िल्में हैं - आखिरी दाव, एक शोला, नाइट क्लब, अदालत, चांदनी, जेलर, ख़ज़ांची, और खोटा पैसा। पहले तीन फ़िल्मों में गीतकार थे मजरूह सुल्तानपुरी और बाक़ियों में राजेन्द्र कृष्ण साहब। 'अदालत' क्वात्रा फ़िल्म्स की प्रस्तुति थी जिसके निर्देशक थे कालीदास, और मुख्य भूमिकायों में थे प्रदीप कुमार, नरगिस और प्राण। इस फ़िल्म में लता जी के गाये तीन ग़ज़लों ने फ़िल्म जगत में तहलका मचा दिया था और इसी फ़िल्म के बाद से मदन मोहन साहब को फ़िल्मी ग़ज़लों का शहज़ादा कहा जाने लगा था। लताजी की गायी हुई ये तीन ग़ज़लें थीं "युं हसरतों के दाग़ मोहब्बत में धो लिए", "जाना था हमसे दूर बहाने बना लिए" और "उनको यह शिकायत है के हम कुछ नहीं कहते"। लेकिन आशा जी और रफ़ी साहब का गाया प्रस्तुत युगल गीत भी उतना ही पुर-असर है। नर्मोनाज़ुक रोमांटिक गीतों में यह गीत एक बेहद सम्मानीय स्थान रखता है इसमें कोई दोराय नहीं है। आज जब आशा जी और मदन साहब की एक साथ बात चली है तो विविध भारती के 'संगीत सरिता' कार्यक्रम में आशा जी, पंचम दा और गुलज़ार साहब की बातचीत का एक अंश यहाँ पेश कर रहा हूँ जिसमें मदन मोहन का ज़िक्र छिड़ा है -
"आशा: एक बात है, मदन भइया ने ग़ज़ल, ठुमरी, कजरी पर बहुत सारे गानें बनाये हैं।
पंचम: वो अख़तरी बाई, सिद्धेश्वरी बाई जैसे कलाकारों को इतना सुनते थे, और एक और बात वो खाना भी बहुत अच्छा बनाते थे, आप को पता है?
गुलज़ार: मैं तो स्वाद से बता देता था कि यह मदन भाईसाहब ने बनाया है।
पंचम: वो मेरे पिताजी के लिए बनाकर लाते थे, टिंडे-गोश्त।
आशा: मैने तो भिंडी-गोश्त खाया है!"
अब इससे पहले कि आप के मुँह में पानी आये (अगर आप नॊन-वेज हैं तो), आप को सुनवा रहे हैं यह गीत!
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. मदन साहब के लाजवाब संगीत से सजी फिल्म का है ये गीत.
2. राजा मेहंदी अली खान के हैं बोल इस दर्द भरे गीत में.
3. मुखड़े में शब्द है - "सितारे".
पिछली पहेली का परिणाम -
पराग जी ने बहुत दिनों बाद बाज़ी मारी आपके अंक हुए ६. मंजू जी बस ज़रा सा पीछे रह गयी. शरद जी, मनु जी, तपन जी और शमिख जी सब आये सही जवाब की पड़ताल करने, दिलीप जी आपने बिलकुल सही कहा मदन साहब के इस गीत की और उनके संगीत जितनी तारीफ की जाए कम है, कल स्वप्न जी नज़र नहीं आई.....आपकी कमी खली....:)
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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7 श्रोताओं का कहना है :
पहेली का जवाब है
ना आसमान न सितारे फरेब देते है - फिल्म नीला आकाश - लता जी की आवाज़ में
आभारी
पराग
पराग जी का जवाब सही लग रहा है । वैसे मैनें यह गीत बहुत कम सुना है हालांकि सर्च तो कर लिया था परन्तु तरीका ठीक नहीं लगा इसलिए इन्तज़ार करता रहा ।
फ़िल्म आपकी परछाइयां में भी एक गीत है आशा जी का : जब तक के है आकाश पे चांद और सितारे, भगवान सलामत रहे माँ बाप हमारे ।
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पराग जी को मुबारकबाद.
मै तो आज भी हमेशा की बस गीत सुनने आया था, बहुत बहुत धन्यवाद
नहीं आता.फ़िल्मी किताब है नहीं
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