Thursday, July 30, 2009

लिखे जो ख़त तुझे वो तेरी याद में...शशि कपूर का रोमांस और रफी साहब का अंदाज़-ए-बयां



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 156

भी दो दिन पहले हम ने आप को प्रेम-पत्र पर लिखा एक मशहूर गीत सुनवाया था फ़िल्म 'संगम' का। रफ़ी साहब का गाया एक और ख़त वाला मशहूर गीत है फ़िल्म 'कन्यादान' का "लिखे जो ख़त तुझे वह तेरी याद में हज़ारों रंग के नज़ारे बन गये"। यह गीत भी उतना ही लोकप्रिय हुआ जितना कि फ़िल्म 'संगम' का गीत। इन दोनों गीतों में कम से कम दो बातें सामान थी, एक तो रफ़ी साहब की आवाज़, और दूसरा शंकर जयकिशन का संगीत। "ये मेरा प्रेम-पत्र" फ़िल्माया गया था राजेन्द्र कुमार पर और फ़िल्म 'कन्यादान' का यह गीत है शशी कपूर के अभिनय से सजा हुआ। जी हाँ, 'दस चेहरे एक आवाज़ - मोहम्मद रफ़ी' के अंतर्गत आज हम जिस चेहरे पर फ़िल्माये गीत से आप का रु-ब-रु करवा रहे हैं, वो शशी कपूर ही हैं। फ़िल्म 'कन्यादान' बनी थी सन् १९६८ में जिसमें शशी कपूर के साथ नायिका की भूमिका में थीं आशा पारेख। मोहन सहगल की यह फ़िल्म एक पारिवारिक सामाजिक फ़िल्म थी जिसका आधार था शादी, झूठ, तथा पुराने और नये ख़यालातों में द्वंद। फ़िल्म तो कामयाब थी ही, उसका गीत संगीत भी ज़बरदस्त कामयाब रहा। इस फ़िल्म के गीतों को हसरत जयपुरी और कवि नीरज ने लिखे हैं। आज का प्रस्तुत गीत नीरज का लिखा हुआ है। नीरज की फ़िल्मी रचनायें संख्या में बहुत ही सीमित हैं, लेकिन उनके लिखे हर एक गीत का असर इतना व्यापक हुआ करता था कि गीत सीधे दिल में बस जाता था। तभी तो आज ४० सालों के बाद भी इस गीत को सुनते हुए उसी ताज़गी का अहसास होता है।

मोहम्मद रफ़ी साहब ने इस गीत को रुमानीयत के सजीले रंग से कुछ इस क़दर भर दिया है कि हर एक प्यार करनेवाले की ज़ुबाँ पर चढ़ गया था यह गीत उस ज़माने में। रफ़ी साहब की आवाज़ कुदरत की देन है, पर जो बात उन्हे दूसरे गायकों से अलग करती है वह है उनकी गायकी जो बेहद निराली थी और यही अदायगी दूसरे गायकों को उनसे मीलों पीछे छोड़ देती थी। उनकी गायकी का अंदाज़ ऐसा था कि सरगम के सौ धारे निकल पड़े, मंद मंद पुरवाई चलने लग जायें, बाग़ों में सैंकड़ों गुंचे खिल उठे, समां शराबी शराबी हो जाये! बाबुल गाया तो आँखें गीली कर दी, भजन गाया तो मन को श्रद्धा और भक्ति भाव से भर दिया, और ग़ज़ल गाया तो रुमानी लम्हात से भर दिया दिल को। उनकी अदायगी हर गीत में अपना ख़ास हस्ताक्षर छोड़ देती थी। उनके गाये किसी भी गीत को सुन कर फ़िल्म के नायक का चेहरा ख़ुद ब ख़ुद ज़हन में आ जाता है। फिर चाहे वो शम्मी कपूर हो या दिलीप कुमार, धर्मेन्द्र हो या फिर शशी कपूर। यहाँ तक कि ऐसा भी कहा गया है कि हास्य अभिनेता जौनी वाकर का अगर कोई नकल कर सकता है तो वो हैं केवल रफ़ी साहब, और वह भी गीतों के ज़रिये। सच, रफ़ी साहब सही मायने में एक पार्श्व-गायक रहे हैं। असरदार और सफल पार्श्व-गायक वही है जिसके गाये गीत को सुनकर आप परदे पर अभिनय करते हुए नायक की कल्पना कर सकें। रफ़ी साहब के गाये गीतों को सुनते हुए फ़िल्म का नायक आँखों के सामने आ ही जाता है। जैसे कि फ़िल्म 'कन्यादान' के इस गीत को सुनते हुए शशी कपूर के वो 'मैनरिज़्म्स' यकायक आँखों के सामने तैरने लग जाते हैं। तो लीजिए, फिर देर किस बात की, शशी कपूर के सजीले अंदाज़ को कीजिए याद रफ़ी साहब की आवाज़ के साथ। गीत के बोल इतने अच्छे हैं कि इनके बारे में कुछ कहने की ज़रूरत नहीं, बस सुनते जाइये।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा दूसरा (पहले गेस्ट होस्ट हमें मिल चुके हैं शरद तैलंग जी के रूप में)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

1. एक बेहद दर्द भरा नगमा रफी साहब का गाया.
2. कलाकार हैं -"धर्मेन्द्र".
3. मुखड़े में शब्द है -"चिंगारी".

सुनिए/ सुनाईये अपनी पसंद दुनिया को आवाज़ के संग -
गीतों से हमारे रिश्ते गहरे हैं, गीत हमारे संग हंसते हैं, रोते हैं, सुख दुःख के सब मौसम इन्हीं गीतों में बसते हैं. क्या कभी आपके साथ ऐसा नहीं होता कि किसी गीत को सुन याद आ जाए कोई भूला साथी, कुछ बीती बातें, कुछ खट्टे मीठे किस्से, या कोई ख़ास पल फिर से जिन्दा हो जाए आपकी यादों में. बाँटिये हम सब के साथ उन सुरीले पलों की यादों को. आप टिपण्णी के माध्यम से अपनी पसंद के गीत और उससे जुडी अपनी किसी ख़ास याद का ब्यौरा (कम से कम ५० शब्दों में) हम सब के साथ बाँट सकते हैं वैसे बेहतर होगा यदि आप अपने आलेख और गीत की फरमाईश को hindyugm@gmail.com पर भेजें. चुने हुए आलेख और गीत आपके नाम से प्रसारित होंगें हर माह के पहले और तीसरे रविवार को "रविवार सुबह की कॉफी" शृंखला के तहत. आलेख हिंदी या फिर रोमन में टंकित होने चाहिए. हिंदी में लिखना बेहद सरल है मदद के लिए यहाँ जाएँ. अधिक जानकारी ये लिए ये आलेख पढें.


पिछली पहेली का परिणाम -

दिशा जी बहुत बहुत मुबारक आखिर आप का भी खाता खुल ही गया २ अंकों के साथ. एरोशिक (?) जी आपके जवाब सही होते हैं पर थोडा और जल्दी अगर आयेंगें तो टक्कर दे पायेंगें दिग्गजों को. मनु जी, सुमित जी, शरद जी, मंजू जी, शमिख जी, और अन्य सभी श्रोताओं का आभार.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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22 श्रोताओं का कहना है :

'ada' का कहना है कि -

Jaane kya dhoondti rehti hai ye aankhen mujh mein Raakh ke dher mein, shola hai na chingari hai

'ada' का कहना है कि -

film : shola aur shabnam
awaaz wahi purnoor Rafi sahab ki
aur nayak ? haaayyyyyy... DDDDarmendra

'ada' का कहना है कि -

Sharad ji,
yunki ab lagta hai manzil aahi gayi hai .... ha ha ha
main itni khush ho rahi hun pata chala ki sujoy ji ne koi aur hi gana soch rakha hai....
to mera kya hoga kaliyaaaa.....

शरद तैलंग का कहना है कि -

अजीब इत्तफ़ाक है सबेरे से ही यह गीत गुनगुना रहा था । ’ज़िन्दगी हँस के गुज़रती तो बहुत अच्छा था
खैर हँस के न सही रो के गुज़र जाएगी । राख बरबाद मुहब्बत की बचा रक्खी है , बारहा इसको जो छेडा तो बिखर जाएगी’ । अदा जी बधाई !

Disha का कहना है कि -

आप भूल गये है ४ अंक हो गये है. मोहम्मद रफी की पहली पहेली का जवाब भी हमने ही दिया था.
दीवाना मुझसा नहीं इस अम्बर के नीचे

Disha का कहना है कि -

adaa ji badhae

erohsik का कहना है कि -

Jaane Kya Dhoondhti Rehti Hai Ye Aankhen Mujh Mein Raakh Ke Dhher Mein Shola Hai Na Chingari Hai

Film: Shola Aur Shabnam
Year: 1961
Music: Khaiyyam
Lyrics: Kaifi Azmi

Kish

manu का कहना है कि -

hnmn
yahi geet hai...

स्वप्न मञ्जूषा का कहना है कि -

disha ji,
aapke 4 ank hi hue hain....
bilkul..
main bhi nahi bhooli hun kaise bhoolungi bhala mera jawab is muye GOOGLE account ki wajah se gaya hi nahi jaise aaj bhi ho raha hai. ab main uske 'CHHAKAR' mein hi nahi rehti seedha NAME enter karti hun, abhi koshish kar rahi hun hua to theek nahi to....kya kar sakte hain ho ho ho ho

Manju Gupta का कहना है कि -

जवाब है -चिंगारी जब भड़के तो सावन उसे बुझाए ...........

erohsik का कहना है कि -

Sujoyji,

jaldi aane ki koshih jari hai, parantu office ka kaam izzazat nahi deta...

Need Help to type in Hindi??

'Ada'ji ko dher saari badhai

Kish "Rashoki Ramaaku"

Unknown का कहना है कि -

jaane kya dhoondti hai wo aankhe mujhme raakh k dher mein shola hai na chingari hai......
bahut he dard bhara pyaara geet......

Unknown का कहना है कि -

Manju Gupta ji
chingari koi bhadke....... kishore ji ne gaaya hai..........

Unknown का कहना है कि -

aur shayad hero bhi koi aur hai.......

Unknown का कहना है कि -

erohsik ji
yadi aap hindi mein likhna seekhna chahte ho to

http://uninagari.kaulonline.com/index.htm

is link par click kijiye

Unknown का कहना है कि -

ya hind yugm k home page par aaiye, wahan par aapko hindi mei likhne k liye box milega, aapko bus english mei likhna hoga hindi mei apne aap change ho jaayega

yadi koi problem ho to aap mujhe sumit306210@gmail.com par mail kar sakte hain..

Unknown का कहना है कि -

अच्छा अब मै चलता हूँ

सुमित भारद्वाज

Shamikh Faraz का कहना है कि -

अदा जी के लिए कहना चाहूँगा की
"छा गए गुरु छा गए"

erohsik का कहना है कि -

सुमितजी,

बहुत बहुत धन्यवाद

एरोह्सिक

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

लिखे जो खत तुझे गीत के अंतरे तक पहुंचने से पहले जिस इंटरल्युड से गुज़रना पडता है, वही नायक की मनस्थिति का बखूबी बयां करता है.गीत की धुन और वाद्य संरचना इस गीत के स्थाई भाव को , उसके एम्बियेंस को और नीरज जी के लिखे हुए बोलों के अहसास को सीधे आपके दिलों में उतार देतें है.

गुज़श्तः दिनों के संगीत में यही तो खासियत होती थी, जो आज अमूमन नही पायी जाती.

रफ़ी जी के बारे में आपने क्या बेहतरीन अशार लिखे हैं!! उन हज़ारों रंग के नज़ारों का इंतिखा़ब करने को जी चहता है.

Manju Gupta का कहना है कि -

सुमित जी ,
आपने सही कहा है .धन्यवाद

Manju Gupta का कहना है कि -

सुमित जी ,
आपने सही कहा है .धन्यवाद

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