Tuesday, August 18, 2009

मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने...सपनों के सौदागर गुलज़ार साहब को जन्मदिन पर समर्पित एक गीत



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 175

"एक मूड, कुछ बोल, एक मीठी सी धुन, बस, इतनी सी जान होती है गाने की। हाँ, कुछ गानों की उम्र ज़रूर बहुत लम्बी होती है। गीत बूढ़े नहीं होते, उन पर झुर्रियाँ नहीं पड़ती, बस सुनने वाले बदल जाते हैं"। दोस्तों, क्या आप को पता है कि गीत की यह परिभाषा किन के शब्द हैं? ये हैं अल्फ़ाज़ उस अनूठे गीतकार, शायर, लेखक, और निर्देशक की जिनकी कलम से निकलते हैं ऐसे ग़ैर पारम्परिक उपमायें और रूपक जो सुनने वालों को हैरत में डाल देते हैं। कभी इन्होने बादल के पंखों में मोती जड़े हैं तो कभी सितारों को ज़मीन पर चलने को मजबूर कर दिया है, कभी सर से आसमान उड़ जाता है, और कभी जिगर की गरमी से बीड़ी जलाने की भी बात कह जाते हैं। यह उन्ही के गीतों में संभव है कि कभी छाँव छम से पानी में कूद जाए या फिर सुबह शाम से खेलने लगे। इस अनोखे और अनूठे शख़्स को हम सब गुलज़ार के नाम से जानते हैं। आज उनके जन्मदिवस पर हम उन्हे दे रहे हैं ढेरों शुभकामनायें एक लम्बी उम्र की, बेहतरीन स्वास्थ्य की, और इसी तरह से लगातार लिखते रहने की। गुलज़ार साहब का लिखा जो गीत आज हम चुन लाए हैं वह है फ़िल्म 'आनंद' का। दोस्तों, आप को याद होगा, हाल ही में हमने आप को इस फ़िल्म का एक गीत सुनवाया था जिसे गीतकार योगेश ने लिखा था। उस कड़ी में हम ने आप को इस फ़िल्म से जुड़ी तमाम बातें बतायी थी। आज इसी फ़िल्म से गुलज़ार साहब का लिखा, सलिल दा का स्वरबद्ध किया और मुकेश जी का गाया हुआ गीत सुनिए "मैने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने, सपने सुरीले सपने".

फ़िल्म 'आनंद' की तमाम बातें तो आप जान ही गये थे उस कड़ी में, इसलिए आज हम यहाँ उनका दोहराव नहीं करेंगे, बल्कि आज गुलज़ार साहब की कुछ बातें कर ली जाए। क्या ख़याल है? गुलज़ार एक बहु-आयामी कलाकार हैं। एक उमदा शायर और सुरीले गीतकार होने के साथ साथ एक सफ़ल फ़िल्म निर्माता व निर्देशक भी हैं। एक लम्बे समय से इस फ़िल्म जगत में होने के बावजूद उनके अंदर एक गम्भीरता है जो उन्हे एक अलग ही शख्सियत बनाते हैं। गुलज़ार साहब लिखते हैं कि "दर्द का तानाबाना बुनने वाले ने एक जुलाहे से पूछा, ऐ जुलाहे, जब कोई धागा टूट गया या ख़तम हो गया, एक नए धागे से जोड़ दिया तुमने, और जब कपड़ा तैयार हो गया तो एक भी गांठ नज़र नहीं आया। मैने भी तो एक रिश्ता बुना था जुलाहे, पर हर गांठ उसमें साफ़ दिखती है।" यह तो था एक रंग, ज़िंदगी का एक पहलू, लेकिन प्रस्तुत गीत में गुलज़ार साहब ने इस दुनिया को जल्द ही अलविदा कहने जा रहे एक नौजवान की जो सात रंगों वाले सुरीले सपने की बात कही है, वह सचमुच अनोखा है, दिल को छू लेने वाला है। जिस तरह से उन्होने बड़ी आसानी से यह लिख दिया है कि "छोटी छोटी बातों की हैं यादें बड़ी", इस बात में कितनी गहराई है, कितनी सच्चाई है, यह बात कोई ख़ुद महसूस किए बग़ैर नहीं लिख सकता। कोई भी गीतकार या शायर तभी लोगों के दिलों में उतर सकता है जब उसने ख़ुद ज़िंदगी को बहुत करीब से देखा हो, जिया हो। ज़िंदगी के तरह तरह के अनुभव ही एक अच्छे लेखक को जन्म देता है। गुलज़ार ऐसे ही एक लेखक और शायर हैं। उनकी क्या तारीफ़ करें, आज 'डिस्कोथेक्स्‍' में नौजवान पीढ़ी उनके लिखे "बीड़ी जल‍इ ले" पर थिरक रहे हैं। एक वरिष्ठ शायर का इस तरह से नवीनतम पीढ़ी के दिलों तक उतर पाना और वह भी अपने लेखन के स्तर को गिराये बिना, यह अपने आप में एक मिसाल है। इस तरह के मिसाल बहुत कम ही दिखाई देते हैं। तो दोस्तों, गुलज़ार साहब को जन्मदिन की फिर एक बार शुभकामनायें देते हुए आइए सुनते हैं फ़िल्म 'आनंद' की वही कालजयी रचना।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. इस गीत के संगीतकार ने गायक महेन्द्र कपूर को पहली बार किसी फ़िल्म में गवाया था।
२. यह गीत उस फ़िल्म का है जिस शीर्षक से सन् १९३७ में कानन बाला और पहाडी सान्याल अभिनीत एक मशहूर फ़िल्म बनी थी न्यु थियटर्स के बैनर तले।
३. लता जी के गाए इस गीत में शहनाई साज़ का व्यापक इस्तेमाल हुआ है।

पिछली पहेली का परिणाम -
रोहित जी बधाई. आपके अंक हुए १२ और आप पराग जी के बराबर आ चुके हैं अब. HNM तो अब एक जाना माना अब्ब्रिविएशन बन चुका है :)

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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14 श्रोताओं का कहना है :

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

Bdhiya bhavpurn geet..
aur is paheli ka jawab to mujhe pata nahi mai intzaar kar raha hoon jawab ka..

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

पहला गीत फ़िल्म बजरंग बली का है.१९५६.

कल्याणजी आनंदजी नें संगीत दिया था. शायद एक गीत एस एन त्रिपठी नें भी स्वरबद्ध किया था.

समयचक्र का कहना है कि -

बहुत प्यारा गीत है जो दिलो में गुदगुदी पैदा कर देता है . बिंदास प्रस्तुति . धन्यवाद

manu का कहना है कि -

hnm...
hnm...

Parag का कहना है कि -

मोरे नैना सावन भादों - फिल्म विद्या पति का गीत है

पराग

Anonymous का कहना है कि -

hamen navrang movie ka " aadha hai chandrma, raat aadhi....." sahi lag raha hai!!!!

purvi s.

Parag का कहना है कि -

Purvi ji

"Aadha hai chandrama " Lata ji ka gaya hua nahin hai.

Anonymous का कहना है कि -

ji, parag ji,
aap sahi kah rahe hain, yeh aasha ji ka gaaya hua geet hai.

purvi s.

शरद तैलंग का कहना है कि -

आज की पहेली वाकई बहुत कठिन है । मुझे पराग जी का जवाब सही लग रहा है लेकिन एक संशय है । महेन्द्र कपूर का पहला गीत ’आधा है चन्द्रमा रात आधी (फ़िल्म नवरंग ,संगीतकार : सी रामचन्द्र ) या ’चाँद छुपा और तारे डूबे (फ़िल्म सोहनी महिवाल, संगीतकार : नौशाद ) माना जाता है किन्तु फ़िल्म विद्यापति के संगीतकार कहीं कहीं आर.सी,बोराल तथा कहीं बी.बलसारा माने जाते हैं जिन्होंने महेन्द्र कपूर को फ़िल्म में पहली बार कब मौका दिया मुझे भी नहीं मालूम । " मोरे नैना सावन भादौ..’ मेरा पसंदीदा गीत है । मैं बहुत देर से किसी के सही जवाब की प्रतिक्षा कर रहा था इसलिए इस शंका को दूर करने के लिए बैठा था ।

Parag का कहना है कि -

शरद जी
१९३७ की बनी फिल्म विद्यापति के संगीतकार थे महान आर सी बोराल साहब. सांठ के दशक की इस्सी नाम की फिल्म का संगीत शायद वी बलसारा साहब का है. वैसे महेंद्र कपूर जी को पहला गीत दिया था स्नेहल भाटकर जी ने फिल्म दिवाली की रात के लिए. आज की पहेली सचमुच गूगली गेंद है. लग रहा हैं की सुजॉय जी कुछ ज्यादा ही रिसर्च कर रहे हैं इन दिनों. हा हा हा !

पराग

Manju Gupta का कहना है कि -

पता नहीं है .हाहा....

PLAYBACK का कहना है कि -

paheli ka sahi jawaab to shaam ko sajeev ji aapko bataayenge, main bas itna bataa doon ki mahendra Kapoor jab Vividh Bharati ke Ujaale Unki Yaadon Ke kaaryakram mein aaye the to unhone apna pehla geet film 'Madmast' ke liye bataaya tha :-)

शरद तैलंग का कहना है कि -

पराग जी
अब तो सारी जानकारी प्राप्त करने के बाद मैं आपको ही बधाई प्रेषित कर रह हूँ २ अंक और पाने के लिए । आपने जो गीत ’मोरे नैना सावन .. बताया उसके संगीतकार वी.बलसारा ही हैं ।

Shamikh Faraz का कहना है कि -

बहुत ही फिलोस्फिकल सॉंग है ये.

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