Sunday, October 11, 2009

दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अँखियाँ प्यासी है....राग केदार पर आधारित था ये भजन



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 229

भारतीय शास्त्रीय संगीत इतना पौराणिक है कि इसके विकास के साथ साथ कई देवी देवताओं के नाम भी इसके साथ जुड़ते चले गए हैं। शिवरंजनी और शंकरा की तरह राग केदार भी भगवान शिव को समर्पित है। जी हाँ, आज हम इसी राग केदार की बात करेंगे। केदार एक महत्वपूर्ण राग है। भारतीय शास्त्रीय संगीत की रागदारी में जितने भी मौलिक स्तंभ हैं, राग केदार के अलावा शायद ही कोई राग होगा जिसमें ये सारी मौलिकताएँ समा सके। राग केदार की खासियत है कि यह हर तरह के जौनर में आसानी से घुलमिल जाता है जैसे कि ध्रुपद, धमार, ख़याल, ठुमरी वगेरह। पारंपरिक तौर पर राग केदार के प्रकार हैं शुद्ध केदार, मलुहा केदार और जलधर केदार। इनके अलावा केदार के कई वेरियशन्स् हैं जैसे कि बसंती केदार, केदार बहार, दीपक केदार, तिलक केदार, श्याम केदार, आनंदी केदार, आदम्बरी केदार, और नट केदार। केदार राग केवल उत्तर भारत तक ही सीमीत नहीं रहा, बल्कि इसका प्रसार दक्षिण में भी हुआ, कर्नाटक शैली में यह जाना गया हमीर कल्याणी के नाम से। फ़िल्म संगीत में इस राग का प्रयोग बहुत सारे संगीतकारों ने किया है। १९७१ की फ़िल्म 'गुड्डी' में वाणी जयराम की आवाज़ में वसंत देसाई ने कॊम्पोज़ किया था "हमको मन की शक्ति देना"। अनोखे संगीतकार ओ. पी. नय्यर ने १९६१ की फ़िल्म 'एक मुसाफ़िर एक हसीना' में "आप युंही अगर हम से मिलते रहे देखिए एक दिन प्यार हो जाएगा" को इसी राग पर स्वरबद्ध कर एक कालजयी रचना का निर्माण किया था। नय्यर साहब की आदत थी कि कहीं से अमूमन किसी शास्त्रीय गायक को कोई राग गाते हुए सुन लिया तो झट से उसका इस्तेमाल अपने गीत में कर देते थे। उनके इस अदा का मिसाल उस्ताद अमीर ख़ान साहब भी दे चुके हैं। ख़ैर, आगे बढ़ते हैं, बर्मन दादा ने फ़िल्म 'मुनीमजी' में लता से गवाया था "साजन बिना नींद ना आए", और छोटे नवाब पंचम ने फ़िल्म 'घर' के लिए कॊम्पोज़ किया "आपकी आँखों में कुछ महके हुए से राज़ हैं"। नौशाद साहब ने १९४९ की फ़िल्म 'अंदाज़' में लता से गवाया था "उठाए जा उनके सितम", यह गीत भी राग केदार पर ही अधारित है।

राग केदार पर आधारित आज जिस गीत को हम आप तक पहुँचा रहे हैं वह है फ़िल्म 'नरसी भगत' का। हेमंत कुमार, सुधा मल्होत्रा और मन्ना डे के गाए इस भजन को संगीतकार रवि ने स्वरबद्ध किया था गीतकार गोपाल सिंह नेपाली के बोलों पर - "दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अखियाँ प्यासी रे"। दोस्तो, रवि द्वारा स्वरबद्ध घनश्याम की इस भजन से मुझे याद आया कि रवि ने विविध भारती के 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम में अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए एक घटना का उल्लेख लिया था जिसका ताल्लुख़ 'घनश्याम' के एक भजन से ही था। "मैं केवल अपने घर पर ही गाता था। एक दिन मेरे पिताजी ने मुझे डाँटा कि घर में ही आँय आँय करता रहता है, बाहर क्यों नहीं गाता? उन दिनों मैं एक ही भजन गाता था "तुम बिन हमरी कौन ख़बर ले गोवरधन गिरिधारी"। मैं स्कूल में भी गाता था इसे। मेरे क्लासमेट्स् मेरा मज़ाक उड़ाते थे, मेरा नाम 'गोवरधन गिरिधारी' रख दिया था लड़कों ने। फिर एक दिन मेरे पिताजी मुझे सत्संग ले गए और मैनें यह भजन सुनाया। जो लोग वहाँ बैठे थे, सब ने मेरे पिताजी से पूछा कि इस हीरे को अब तक कहाँ छुपा रखा था? उस दिन के बाद से मैं पिताजी के साथ हर बुधवार को सत्संग जाने लगा। तो जब मैं वहाँ गाने लगा तो वहाँ के हारमोनियम बजाने वाले को अच्छा नहीं लगा क्योंकि उसका इम्पोर्टैन्स कम हो गया। मुझे सबक सीखाने के लिए उसने क्या किया कि कुछ ऊँचे सुर लगाने लगा हारमोनियम पर, जिसके ताल से ताल मिलाने के लिए मैं भी ऊँचे स्केल पर गाने लगा और बुरी तरह नाकामयाब रहा। उस समय तो मैं नहीं समझ पाया कि यह क्या हुआ। घर वापस आने के बाद पिताजी ने मुझे डाँटते हुए कहा कि अचार खाता रहता है दिन भर। मुझे अहसास हुआ कि यह सब उस हारमोनियम वादक की वजह से हो रहा है। मैने यह निर्णय लिया कि अब मैं वहाँ तभी जाउँगा जब मेरा अपना हारमोनियम होगा और मैं ख़ुद उसे बजाउँगा। जब पिताजी से हारमोनियम की बात की तो उन्होने ख़ुश हो कर मुझे हारमोनियम ख़रीद कर दिया और एक टीचर के पास भेजा उसे सीखाने के लिए। टीचर तो सा रे गा मा से शुरू करना चाहते थे लेकिन मैने उनसे कहा कि आप मुझे बस "तुम बिन हमरी कौन ख़बर ले गोवरधन गिरिधारी" सीखा दीजिए। उसके बाद मैं एक महीने तक प्रैक्टिस करता रहा और फिर सत्संग गया। सब ने मेरी तारीफ़ की कि मैं ख़ुद हारमोनियम भी बजा रहा था और गा भी रहा था।" दोस्तों, रवि जी के इस भजन से जो लगाव रहा, शायद वही वजह रही होगी कि घन्श्याम का आशिर्वाद उन पर रहा और उन्होने आगे चलकर फ़िल्म 'नरसी भगत' के लिए इस कालजयी भजन की रचना की - "दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अखियाँ प्यासी रे, मनमंदिर की ज्योति जगा दो घट घट बाती रे"। हाल ही में यह भजन चर्चा में आ गई थी फ़िल्म 'स्लम्डॊग करोड़पति' के ज़रिए। इस फ़िल्म में इस गीत को एक सूरदास भजन बताया गया, लेकिन हक़ीक़त यही है कि यह नेपाली जी की रचना है। इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे शाहू मोडक और निरुपा राय। तो सुनवाते हैं आपको हेमंत दा, मन्ना दा और सुधा मल्होत्रा का एकसाथ गाया हुआ यह एकमात्र भजन यह बताते हुए कि इस शीर्षक से १९४० में भी एक फ़िल्म बनी थी जिसका निर्माण विजय भट्ट और शंकर भट्ट ने किया था अपने 'प्रकाश पिक्चर्स' के बैनर तले और जिसमें संगीतकार थे शंकर राव व्यास।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. भारत रत्न से सम्मानित इस महान संगीतकार ने जीते हैं एक से अधिक बार ग्रैमी सम्मान भी.
२. राग है जग सम्मोहिनी (शुभ कल्याण) जिस पर आधारित है ये गीत.
३. शैलेन्द्र है गीतकार यहाँ.

पिछली पहेली का परिणाम -

शरद जी बधाई १४ अंकों के साथ आप तेजी से आगे बढ़ रहे हैं....दूसरी बार विजेता बनने की डगर पर. दिलीप जी मेल अवश्य मिली होगी कृपया दुबारा देखें

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

फेसबुक-श्रोता यहाँ टिप्पणी करें
अन्य पाठक नीचे के लिंक से टिप्पणी करें-

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

8 श्रोताओं का कहना है :

Parag का कहना है कि -

Haaye ro woh din kyon naa aaye

Parag का कहना है कि -

फिल्म अनुराधा के इस गीत को गाया है लता जी ने
हाए रे वोह दिन क्यों ना आये

शरद तैलंग का कहना है कि -

मेरे विचार से अनुराधा फ़िल्म का ही गीत ’सांवरे सांवरे काहे मोसे करो जोरा जोरी है : संगीत : पं. रविशंकर

डॉ० अनिल चड्डा का कहना है कि -

परागजी ने ठीक कहा है । फिल्म अनुराधा का गीत हाय रे वो दिन क्यों न आये, जो पंडित रवि शंकर द्वारा संगीतबद्ध किया गया था तथा शैलेन्द्र द्वारा लिखा गया था, राग शुभ कल्याण पर आधारित है ।

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

हेमंत दा, और मन्ना दा के साथ स्वयं लताजी. एक कालजयी गीत जो बरसों से भारत के जनमानस में श्रेष्ठतम भजनों में से एक.

आपका मेल मिला. आपकी जर्रः नवाज़ी. ज़रूर ....

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

मना दा के गले का जोनर हेमंत दा से एकदम अलग था. इसीलिये, ये भजन जब दोनों ने अलग अलग गाया, आप को अलग अलग अनुभूतियां होती हैं. जहां मना दा के स्वर की मींड और तरलता आपको मोहती हैं, वहीं हेमंतदा की धीर गंभीर हृदय के अंतरंग से निकलती आवाज़ से आप भक्तोरस में डूब जाते हो. साथ में अमृतमयी लता का सात्विक,शैशव सुर बोनस में आपको पुष्य नक्षत्र की चांदनी बिखेर जाती है.

आपका भी जवाब नहीं.

Shamikh Faraz का कहना है कि -

पराग जी को मुबारकबाद.

Anonymous का कहना है कि -

Mr. Dilip Kavathekar, if you are talking about 'darshan do', then it is Sudha Malhotra, not Lata Mangeshkar.

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ

ओल्ड इज़ गोल्ड शृंखला

महफ़िल-ए-ग़ज़लः नई शृंखला की शुरूआत

भेंट-मुलाक़ात-Interviews

संडे स्पेशल

ताजा कहानी-पॉडकास्ट

ताज़ा पॉडकास्ट कवि सम्मेलन