ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 434/2010/134
'रिमझिम के तराने' शृंखला की चौथी कड़ी में आज प्रस्तुत है एक ऐसा गीत जिसमें है जुदाई का रंग। एक तरफ़ अपने प्रेमिका से दूरी खटक रही है, और दूसरी तरफ़ सावन की झड़ियाँ मन में आग लगा रही है, मिलन की प्यास को और भी ज़्यादा बढ़ा रही है। इस भाव पर तो बहुत सारे गानें समय समय पर बने हैं, लेकिन आज हमने जिस गीत को चुना है वह बड़ा ही सुरीला है, उत्कृष्ट है संगीत के लिहाज़ से भी, बोलों के लिहाज़ से भी, और गायकी के लिहाज़ से भी। यह है हेमन्त कुमार का गाया और स्वरबद्ध किया, तथा गीतकार गुलज़ार का लिखा हुआ फ़िल्म 'बीवी और मकान' का गीत "सावन में बरखा सताए, पल पल छिन छिन बरसे, तेरे लिए मन तरसे"। मैं यकीन के साथ तो नहीं कह सकता लेकिन मैंने कही पढ़ा है कि इस गीत को फ़िल्म में शामिल नहीं किया गया है। अगर यह सच है तो बड़े ही अफ़सोस की बात है कि इतना सुंदर गीत फ़िल्माया नहीं गया। ख़ैर, 'बीवी और मकान' १९६६ की फ़िल्म थी जिसका निर्देशन किया था ऋषी दा, यानी कि ऋषीकेश मुखर्जी ने, तथा फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे बिस्वजीत और कल्पना। फ़िल्म तो असफल रही, लेकिन इसके गानें पसंद किए गए। हेमन्त दा के गाए सावन के इस गीत के अलावा रफ़ी साहब का गाया "जहाँ कहाँ देखा है तुम्हे, जागे जागे अखियों के सपनों में" और मन्ना डे व महमूद का गाया "अनहोनी बात है, बस मुझको मोहब्बत हो गई है" फ़िल्म के दो अन्य लोकप्रिय गीत हैं। आज के प्रस्तुत गीत के बारे में आपको बताना चाहेंगे कि इस गीत का एक बंगला संस्करण भी है लता मंगेशकर की आवाज़ में। गीत के बोल भी बिलकुल वही है जो हिंदी वर्ज़न का है। बंगला गीत के बोल हैं "आषाढ़ श्राबोण माने ना तो मोन, झोड़ो झोड़ो झोड़ो झोड़ो झोड़ेछे, तोमाके आमार मोने पोड़ेछे"।
यह सच बात है कि किसी भी संगीतकार को धुनें बनाते समय फ़िल्म की सिचुएशन को ध्यान में रख कर ही काम करना पड़ता है। लेकिन एक अच्छा संगीतकार व्यावसायिक बंधनों के बावजूद भी अपनी प्रतिभा का छाप छोड़ ही जाता है। फ़िल्म में किसी गीत को भले ही उस अभिनेता के अभिनय या फिर उसकी फ़िल्मांकन की वजह से याद रखा जाता होगा, लेकिन परदे की दुनिया से हट कर किसी गीत को इसलिए भी याद रखा जाता है क्योंकि वह कर्णप्रिय है। मीठी धुन, दिलकश आवाज़ और अर्थपूर्ण बोल उसे यादगार बना देते हैं, बिलकुल आज के इस गीत की तरह। आज के दौर के संगीत को सुन कर ऐसा लगता है जैसे साज़ों का कोई कुंभ लगा हो। गीत मासूम बच्चे की तरह खो सा जाता है इस भीड़ में। हेमन्त दा के संगीत में अनावश्यक साज़ों की भीड़ नहीं है। उनके संगीत में कुछ भी अर्थहीन नहीं लगता। उनके गानें अर्थपूर्ण बोलों और सुरीले धुनों का वह संगम है जिसमें बार बार डुबकी लगाने का मन करता है। गीत वही है जो कानों से होकर सीधे दिल में उतर जाए, पोर पोर को स्पंदित कर दे, मानव मन के गहरे अंधेरे में दबे भावों को जगा दे। फिर चाहे वह रूमानीयत की बात हो तो उतने ही शोख़ी से भर दे, और संजीदगी की बात हो तो उतने ही अंदर तक उतर जाए। वैसे आज के गीत में गुलज़ार साहब ने जुदाई की पीड़ा को उभारा है सावन के फुहारों के बीच। नायक सावन से ही पूछ रहा है कि तू ही बता दे सावन कि कहीं पर तू अगन बुझाता है तो कहीं अगन लगाता है, ऐसा क्यों? चलिए आप इस गीत सुनिए और ख़ुद ही इसके बोलों का आनंद उठाइए।
क्या आप जानते हैं...
कि संगीतकार शंकर-जयकिशन के शंकरसिंह रघुवंशी को आमतौर पर लोग हैदराबादी समझते हैं, लेकिन वो मूलत: वहाँ के नहीं हैं। उनके पिता रामसिंह रघुवंशी मध्य प्रदेश के थे और काम के सिलसिले में हैदराबाद जाकर बस गए थे।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. किस गायिका ने रफ़ी साहब के साथ इस युगल गीत में आवाज़ मिलायी है -३ अंक.
२. इस हिट फिल्म के निर्देशक बताएं, जो एक कामियाब अभिनेता के भाई भी हैं - २ अंक.
३. शैलेन्द्र ने लिखा है ये गीत, संगीतकार बताएं - १ अंक.
४. मुखड़े में शब्द है -"याद", फिल्म का नाम बताएं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह वाह, सब के सब बहुत बढ़िया जवाब लेकर आये हैं इस बार बधाई सभी को
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी

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5 श्रोताओं का कहना है :
गायिका का नाम : गीता दत्त
फिल्म के निर्देशक थे विजय आनंद
फिल्म: काला बाज़ार
रिमझिम के तराने ले के आई बरसात
याद आई उनसे वोह पहली मुलाक़ात
अवध लाल
माफ कीजिये.
जल्दी में ऐसा हो जाता है.
सही शब्द हैं, "याद आई किसी से वोह पहली मुलाक़ात"
अवध लाल
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atari breakout
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