ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 502/2010/202
'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कल से हमने शुरु की है संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के धुनों से सजी लघु शृंखला 'एक प्यार का नग़मा है'। कल हमने गीतकार आनंद बख्शी की रचना सुनी थी लता मंगेशकर की आवाज़ में। और बख्शी साहब और लता जी, दोनों ने ही लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ अपना सब से ज़्यादा काम किया है। आज हम जिस गीत को लेकर उपस्थित हुए हैं, उसे लिखा है राजेन्द्र कृष्ण साहब ने। रफ़ी साहब की आवाज़ में फ़िल्म 'इंतक़ाम' का यह गीत है "जो उनकी तमन्ना है बरबाद हो जा, तो ऐ दिल मोहब्बत की क़िस्मत बना दे, तड़प और तड़प कर अभी जान दे दे, युं मरते हैं मर जानेवाले, दिखा दे जो उनकी तमन्ना है बरबाद हो जा"। इसमें कोई शक़ नहीं कि लक्ष्मी-प्यारे के इस गीत को रफ़ी साहब ने जिस अंदाज़ में गाया है, उससे गीत का भाव बहुत ख़ूबसूरत तरीक़े से उभरकर सामने आया है, लेकिन इस गीत को समझना थोड़ा मुश्किल सा लगता है। गीत के शब्दों को सुनते हुए दिमाग़ पर काफ़ी ज़ोर लगाना पड़ता है इसमें छुपे भावों को समझने के लिए। लेकिन इससे इस गीत की लोकप्रियता पर ज़रा सी भी आँच नहीं आई है और आज भी बहुत से लोगों का यह फ़ेवरीट रफ़ी नंबर है। यहाँ तक कि सुरों की मल्लिका लता मंगेशकर का भी। जी हाँ, अभी हाल ही में रफ़ी साहब की पुण्य तिथि पर जब किसी ने लता जी को ट्विटर पर उनके फ़ेवरीट रफ़ी नंबर के बारे में जानना चाहा, तो उन्होंने इसी गीत का ज़िक्र किया था। ख़ैर, हम बात कर रहे थे इस गीत के बोलों का मतलब ना समझ पाने की। तो साहब, अगर बोलों को समझे बग़ैर भी गीत लोकप्रिय हो जाता है तो इसका श्रेय गीतकार को ही जाना चाहिए। राजेन्द्र कृष्ण एक अण्डर-रेटेड गीतकार रहे हैं। आज भी जब किसी भी कार्यक्रम में गुज़रे ज़माने के गीतकारों के नाम लिए जाते हैं, तब इनका नाम मुश्किल से कोई लेता है, जब कि इन्होंने न जाने कितने सुपर डुपर हिट गीत ५० से ७० के दशकों में लिखे हैं।
"जो उनकी तमन्ना है बरबाद हो जा" फ़िल्म के नायक संजय ख़ान पर फ़िल्माया गया गीत है, जो एक 'बार' में शराब के नशे में गा रहे होते हैं। १९६९ में प्रदर्शित 'इंतक़ाम' फ़िल्म का निर्माण शक्तिमान एण्टरप्राइज़ेस के बैनर तले हुई थी और इसका निर्देशन किया था आर. के. नय्यर ने। फ़िल्म के नायक का नाम तो हम बता ही चुके हैं, दूसरे मुख्य किरदारों में थे साधना, अशोक कुमार, और हेलेन। इस फ़िल्म के सभी गानें मक़बूल हुए थे, मसलन "हम तुम्हारे लिए तुम हमारे लिए", "आ जानेजाँ", "गीत तेरे साज़ का तेरी ही आवाज़ हूँ", "कैसे रहूँ चुप के मैंने पी ही क्या है होश अभी तक है बाक़ी" आदि। और आइए अब रुख़ किया जाए प्यारेलाल जी के उसी इंटरव्यू की तरफ़ जिसका एक अंश हमने कल पेश किया था। आज जिस अंश को हम पेश कर रहे हैं उसमें है रफ़ी साहब का ज़िक्र।
कमल शर्मा: रफ़ी साहब से म्युज़िक के अलावा, कभी जैसे किसी गाने की रेकॊर्डिंग् होनेवाली है, कभी जैसे थोड़ी सी फ़ुरसत मिली, बात वात होती थी कि नहीं?
प्यारेलाल: उनको ख़ुश करना हो तो हम दोनों क्या करते थे, कभी कभी आए तो चुप बैठे हैं, तो हमें उनको ख़ुश करना हो तो क्या है कि रफ़ी साहब चाय लेके आते थे, तो उनके लिए चाय जो बनती थी वह किसी को नही देते थे, वो ख़ुद पीते थे। वो थर्मस में आती थी, दो थर्मस। लेकिन वो कैसी चाय बनती थी मैं बताऊँ आपको, दूध को, दो सेर दूध के एक सेर बनाते थे जिसमें बदाम और पिस्ता डालते थे, और उसके बाद में चाय की पत्ती, कोई ख़ास पत्ती थी, वो उनकी बीवी बनाती थीं, और वो चाय लेकर आते थे। और अगर आप थोड़ी देर भी रखेंगे तो मलाई इतनी जम जाती थी। तो हम लोग क्या करते थे कि अगर ख़ुश करना है रफ़ी साहब को तो ख़ुश करने के लिए हम उनको बोलते थे 'थोड़ी चाय मिल जाएगी?' तो ऐसा करते थे कि जैसे कोई छोटा बच्चा है, तो अगर मस्ती कर रहा है कुछ, अरे भाई उसको चॊकलेट दे ना चॊकलेट, तो बोलने का एक स्टाइल होता है ना, तो उनका ज़हीर था उनका साला, 'अरे ज़हीर, चाय देना इनको चाय'। मतलब ये बच्चे लोग हैं ना चाय पिलाओ। बोलने का एक ढंग होता था और चाय पीने के बाद बोलना होता था 'वाह मज़ा आ गया', बस!
दोस्तों, हमने रफ़ी साहब के ख़ास चाय के बारे में जाना, लेकिन आज के गीत का जो आधार है, वह चाय नहीं बल्कि शराब है। रफ़ी साहब कभी शराब को हाथ नहीं लगाते थे, लेकिन जब भी किसी नशे में चूर किरदार के लिए कोई गीत गाते थे तो ऐसा लगता था कि जैसे वो ख़ुद भी शराब पीकर गा रहे हैं। यही तो बात है रफ़ी साहब जैसे महान गायक की। किसी भी मूड के गीत में कैसा रंग भरना है बहुत अच्छी तरह जानते और समझते थे रफ़ी साहब। तभी तो लक्ष्मी-प्यारे ने जब भी कोई ऐसा गीत बनाया जो उन्हें लगा कि सिर्फ़ रफ़ी साहब ही गा सकते हैं, उन्होंने कभी किसी दूसरे गायक से नहीं गवाया, कई बार तो निर्माता निर्देशक से भी बहस करने से नहीं चूके, और अगर रफ़ी साहब विदेश यात्रा पर रहते तो उनके आने का इंतज़ार करते थे कई दिनों तक, लेकिन किसी और से गवाना उन्हें मंज़ूर नहीं होता था। एल.पी की कई ऐसी फ़िल्में हैं जिनमें और बाक़ी गीत दूसरे गायकों ने गाये, लेकिन कोई ख़ास गीत सिर्फ़ और सिर्फ़ रफ़ी साहब से ही गवाया गया। पेश-ए-खिदमत है "जो उनकी तमन्ना है बरबाद हो जा"।
क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्म 'इंतक़ाम' का लता का गाया "कैसे रहूँ चुप कि मैंने पी ही क्या है" इतना लोकप्रिय हुआ था कि अमीन सायानी द्वारा प्रस्तुत बिनाका गीतमाला का चोटी का गीत बना था। यही नहीं, लगातार चार वर्षों तक लक्ष्मी-प्यारे के गीत बिनाका गीतमाला के चोटी के पायदान पर विराजे जो अपने आप में एक रेकॊर्ड रहा है।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०२ /शृंखला ०१
ये धुन उस गीत के प्रीलियूड की है, सुनिए -
अतिरिक्त सूत्र -पहले राम और सीता के किरदारों पर लिखा गया था यह युगल गीत, लेकिन वह फ़िल्म नहीं बनी। बाद में एक अन्य फ़िल्म में इसे शामिल किया गया।
सवाल १ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - लता हैं गायिका, गायक बताएं - १ अंक
सवाल ३ - इस धार्मिक फिल्म के नायक बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
दोस्तों, जब भी कोई नया बदलाव होता है, तो कुछ अजीब अवश्य लगता है, पर बदलाव तो नियम है, और केवल बदलाव ही शाश्वत है, हम समझते हैं कि आप में से बहुत से लोग अपने कम्पूटर पर सुन नहीं पाते हैं और अधिकतर हिंदी ब्लॉगर पढकर ही संतुष्ट हो जाते हैं, पर आवाज़ जैसा मंच तो सुनने सुनाने का ही है, तो यही समझिए कि पहेली की रूप रेखा में ये बदलाव सुनने की प्रथा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भी है, तो इंदु जी जल्दी से अपने स्पीकर को ठीक करवा लें, आप पढ़ने के साथ साथ श्रवण और दृश्य माध्यमों से भी जुड़ें, यही हमारे इस मंच की सफलता मानी जायेगी....खैर, हमें जवाब मिले हैं, सही जवाब....तो पहेली के ढांचा ठीक ही प्रतीत हो रहा है, अनाम जी ने लिखा है कि ऐसी कॉम्पटीशन से कोई फायदा नहीं जिसमे हर कोई PARTICIPATE ना कर सके. पर पार्टिसिपेट सभी कर सकते हैं, हाँ अगर आपकी समस्या इंदु जी जैसी कुछ है तो इसका समाधान तो फिलहाल आपको ही निकालना पड़ेगा...आपने दूसरी बात लिखी कि
और अगर कोई हर पहेली में अगर ४ अंक वाला आंसर भी दे तो १००वे एपिसोड तक ४०० ही अंक हुए, तो हम माफ़ी चाहेंगें कि ये लिखने में हुई भूल थी, जिससे आप शंकित हो गए, दरअसल पहेली अब ५०१ वें से १००० वें एपिसोड तक खुली है और इसमें जितनी मर्जी बार चाहें आप ५०० का आंकड़ा छू सकते हैं. भूल सुधार ली गयी है. और कोई श्रोता यदि इस विषय में अपनी राय देना चाहें तो जरूर दें. अब बात परिणाम की - शरद जी खाता खोला २ अंकों के साथ. श्याम कान्त जी और पी सिंह जी आप दोनों को भी १-१ अंकों की बधाई. मनु जी आप तनिक लेट हो गए जवाब देते देते, वैसे अंदाजा एकदम सही था. शंकर लाल जी (अल्ताफ रज़ा ?), बिट्टो जी, अमित जी और अंशुमान जी, better luck next time :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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9 श्रोताओं का कहना है :
gayak hain Kumar Sanu
Film-- DEEDAR
Aap har din comptetition Kathin karte jaa rahe hain.
Isse wohi jeetega jo Films ka atyadhik jaankaar hoga.
Chaahenge ki HINT ab achchi milegi.
Will be waitng for your action !!!!
doston, bahut aasaan hai aaj ka sawaal, thodi koshish keejiye. prelude ke baad mukhde ke pehle shabd ka thoda sa ansh bhi aa gaya hai. all the best!!!
Q2- Mohd.Rafi
sir, ye bataiye ye anya film hai vo dharmik hai yaa jo nahi bani vo dharmik hai.
Q2-Mahendra kapoor
गीतकार : भरत व्यास
(आज ज़रा देर से आया सोचा था उत्तर आ गया होगा किन्तु अभी भी नही आया था)
यह गीत मेरे विचार में लता दीदी के साथ मन्ना दा (डे) ने गाया है.
अवध लाल
3. jeevan
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